- रजिस्ट्रार को महाधिवक्ता और अपर महाधिवक्ता को नोटिस भेजने का आदेश

-स्वत: संज्ञान लेते हुए कोर्ट ने जारी किया नोटिस, खंडपीठ में होगी सुनवाई

रांची : राज्य के महाधिवक्ता राजीव रंजन और अपर महाधिवक्ता सचिन कुमार पर अदालत की अवमानना करने का आपराधिक मामला चलेगा। झारखंड हाई कोर्ट के जस्टिस एसके द्विवेदी की अदालत ने इस मामले में स्वत: संज्ञान लेते हुए अवमानना का मामला चलाने का निर्देश दिया है। अदालत ने रजिस्ट्रार जनरल को दोनों अधिवक्ताओं को सभी दस्तावेज के साथ नोटिस भेजने का निर्देश दिया। इसके साथ ही अदालत ने हाई कोर्ट रूल के अनुसार अवमानना का मामला चलाने के लिए मामले को खंडपीठ में भेज दिया। मंगलवार को सभी पक्षों को सुनने के बाद अदालत ने फैसला सुरक्षित रख लिया था। झारखंड में यह पहला मामला है, जब राज्य के महाधिवक्ता और अपर महाधिवक्ता के खिलाफ अवमानना का आपराधिक मामला चलाया जा रहा है।

अदालत ने महाधिवक्ता से कहा कि जो बात आप कह रहे हैं उसे शपथपत्र के माध्यम से कोर्ट में पेश करें। लेकिन महाधिवक्ता ने शपथपत्र दाखिल करने से इन्कार कर दिया और कहा कि उनका मौखिक बयान ही पर्याप्त है। इसके बाद अदालत ने महाधिवक्ता के बयान को रिकॉर्ड करते हुए इस मामले को चीफ जस्टिस के पास भेज दिया। इस दौरान अदालत कहा कि एक आम आदमी भी न्यायालय पर सवाल खड़ा करे तो यह न्यायपालिका की गरिमा के अनुरूप नहीं है। जब यह सवाल उठ गया है, तो हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस को ही निर्धारित करना चाहिए कि इस मामले की सुनवाई कौन कोर्ट करेगा। चीफ जस्टिस डा। रवि रंजन ने इस मामले की सुनवाई के लिए जस्टिस एसके द्विवेदी की अदालत में भेजा है।

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एसके द्विवेदी की बेंच में सुनवाई

जस्टिस एसके द्विवेदी की अदालत ने फैसला सुनाते हुए कहा है कि 13 अगस्त को महाधिवक्ता राजीव रंजन और अपर महाधिवक्ता सचिन कुमार ने न्यायालय पर शब्दों से हमला किया है। उनकी ओर से न सिर्फ जज की गरिमा पर आक्षेप लगाया गया, बल्कि संस्था (अदालत) की गरिमा को क्षति पहुंचाई गई। अदालत को न्याय का मंदिर माना जाता है, लेकिन एक महाधिवक्ता और अपर महाधिवक्ता ने जिस तरीके से न्याय के मंदिर को अपमानित किया है, उसे शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता। उस दिन अदालत में हुई घटना के कई अधिवक्ता साक्षी रहे हैं। अदालत में महाधिवक्ता और अपर महाधिवक्ता ने तमाशा किया, जबकि दोनों वरीय सरकारी अधिवक्ता हैं। इनके कृत्य का कोर्ट भी गवाह है कि इन्होंने अदालत और न्यायिक प्रक्रिया का अपमान किया है। दोनों के इस प्रतिकूल व्यवहार के बाद भी अदालत ने अपना पक्ष रखने और इस आचरण के खिलाफ माफी मांगने का पर्याप्त अवसर प्रदान किया। दोनों को शपथपत्र दाखिल करने को कहा गया। लेकिन दोनों ने इस पर गौर नहीं किया। इसके बाद जब सुनवाई हुई तो कोर्ट में न महाधिवक्ता मौजूद थे और न ही अपर महाधिवक्ता। सरकार का पक्ष रखने के लिए किसी दूसरे सरकारी वकील को भेज दिया गया।

नहीं दिया जवाब

कोर्ट ने कहा कि इस मामले में प्रार्थी की ओर हस्तक्षेप याचिका दाखिल कर अवमानना का मामला चलाने का आग्रह किया गया था और प्रार्थी ने महाधिवक्ता को नोटिस भी दिया था। लेकिन इसका भी जवाब न तो महाधिवक्ता ने दिया और न ही अपर महाधिवक्ता ने। अदालत ने दोनों को अपनी भूल सुधारने का मौका दिया, लेकिन इसका कोई असर नहीं दिखा। इस कारण अदालत दोनों के खिलाफ आपराधिक अवमानना का मामला चलाने का आदेश देती है, ताकि न्याय के इस मंदिर की गरिमा को धूमिल करने का प्रयास नहीं किया जा सके। अदालत ने अपने फैसले में कहा है कि अवमानना का मामला चलाने के लिए महाधिवक्ता का मंतव्य लेना जरूरी होता है। चूंकि इस मामले में महाधिवक्ता पर ही अवमानना का मामला चलाया जा रहा है इसलिए उनका मंतव्य लेने की जरूरत नहीं है।

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अब आगे क्या

इस मामले में अब खंडपीठ में सुनवाई होगी। अगर दोनों अधिवक्ता अवमानना के दोषी पाए जाते हैं तो उन्हें सजा भी मिल सकती है। लेकिन अगर महाधिवक्ता और अपर महाधिवक्ता अपना दोष स्वीकार करते हुए अदालत के समक्ष माफीनामा देते हैं तो अदालत उन्हें क्षमा भी कर सकती है।

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अदालत ने खारिज की याचिका

अदालत ने अपने आदेश में प्रार्थी देवानंद तिर्की की ओर से महाधिवक्ता और अपर महाधिवक्ता पर अवमानना का मामला चलाने के दाखिल आइए (इंटर लोकेटरी) को खारिज कर दी। अदालत ने कहा कि प्रार्थी की ओर से दाखिल आइए याचिका झारखंड हाई कोर्ट रूल के अनुसार नहीं थी। इस कारण इस याचिका को खारिज किया जाता है।

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यह है पूरा मामला

पिछली सुनवाई के दौरान महाधिवक्ता राजीव रंजन ने जस्टिस एसके द्विवेदी से कहा था कि उन्हें अब साहिबगंज की थाना प्रभारी रूपा तिर्की की मौत मामले की सुनवाई नहीं करनी चाहिए। महाधिवक्ता ने अदालत से कहा था कि 11 अगस्त को मामले की सुनवाई समाप्त होने के बाद प्रार्थी के अधिवक्ता का माइक्रोफोन ऑन रह गया था। वह अपने मुवक्किल से कह रहे थे कि इस मामले का फैसला उनके पक्ष में आना तय है। 200 प्रतिशत इस मामले की सीबीआइ जांच तय है। जब प्रार्थी के वकील इस तरह का दावा कर रहे हैं, तो अदालत से आग्रह होगा कि वह इस मामले की सुनवाई नहीं करें।

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चीफ जस्टिस को भेजा था मामला

Posted By: Inextlive