गर्भवती महिला को रिम्स के डॉक्टर्स ने दिया नया जीवन. 5-6 घंटे के ऑपरेशन में ब्रेन में फंसी 9 एमएम की निकाली गोली.


रांची (ब्यूरो)। राजधानी रांची स्थित राज्य के सबसे बड़े गवर्नमेंट हॉस्पिटल रिम्स जो असुविधाओं की वजह से हमेशा सुर्खियों में रहता है। लेकिन इस अस्पताल के कुछ ऐसे अचीवमेंट्स भी हैं जो इसे दूसरे हॉस्पिटल्स से अलग बनाता है। रिम्स में कई मेजर सर्जरी और गंभीर बीमारियों का सफलतापूर्वक इलाज किया गया है। दो दिन पहले ही रिम्स के न्यूरो सर्जन की टीम ने डॉ प्रो अनिल कुमार के नेतृत्व में एक ऐसे ही क्रिटिकल ऑपरेशन को सफलता पूर्वक अंजाम दिया है। डॉ प्रो अनिल कुमार और उनकी टीम की वजह से गंभीर रूप से घायल परदेशी तिर्की को नया जीवन मिला है। दरअसल, मांडर की रहने वाली 29 वर्षीया परदेशी तिर्की को सिर में गोली लगी थी। करीब 9 एमएम की गोली उनकी खोपड़ी को छेदती हुई ब्रेन में जा फंसी थी। जिसे डॉक्टरों के प्रयास से न सिर्फ बाहर निकाला गया, बल्कि महिला की जान भी बचा ली गई। ऑपरेशन में शामिल न्यूरो सर्जन डॉ विकास ने इस विषय को ट्विटर की मदद से सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर भी शेयर किया है, जिसके बाद डॉक्टर की पूरी टीम को लोग बधाइयां दे रहे हैं। गर्भवती थी महिला
मांडर की रहने वाले परदेशी तिर्की पर 10 फरवरी को उसके घर पर ही हमला हुआ था। आंगन में कुछ काम करते वक्त अपराधी ने महिला पर फायरिंग कर दी, जिसके बाद गंभीर अवस्था में उसे रिम्स में एडमिट कराया गया। न्यूरो सर्जन डॉ विकास ने बताया कि शुरुआती जांच में यह बात सामने आई कि महिला चार महीने की गर्भवती है। ऐसे में गोली लगने से मां और बच्चे दोनों को खतरा हो सकता था। दोनों को सुरक्षित बचाने और बुलेट निकालने की चुनौती पूरी टीम पर थी। इस ऑपरेशन में ज्यादा समय लेना ठीक नहीं था। दस फरवरी को महिला रिम्स में भर्ती हुई, शुरुआती जांच के बाद अगले ही दिन यानी कि 11 फरवरी को महिला का ऑपरेशन करने का निर्णय लिया गया। लगभग पांच से छह घंटे के सक्सेसफुल ऑपरेशन के बाद महिला की ब्रेन में फंसी गोली को निकाल लिया गया। 12 दिन हॉस्पिटल में देखभाल के बाद 23 फरवरी को महिला को डिस्चार्ज कर दिया गया। डॉ विकास ने बताया कि जाते वक्त महिला सभी डॉक्टर्स से हंसते हुए बातचीत करती हुई गई। हालांकि, उन्हें थोड़ी सावधानी बरतने की सलाह दी गई है। काफी जटिल था ऑपरेशन


डॉ विकास ने बताया कि यह ऑपरेशन काफी जटिल था। पेशेंट्स की राइट टेम्पोरल बोन में बुलेट फंसी थी। सबसे पहले सिर का ऊपरी हिस्सा हटाया गया, इसके बाद खोपड़ी खोलकर सावधानी पूर्वक इस ऑपरेशन को पूरा किया गया। बुलेट खोपड़ी की सतह से करीब दो से तीन सेंटीमीटर अंदर थी। बार-बार बुलेट के लोकेशन को देखते हुए उस तक पहुंचा गया और फिर उसे ब्रेन से बाहर निकाल दिया गया। सीमित संसाधानों के बीच भी इस ऑपरेशन के सक्सेस होने पर पूरी टीम खुश है। डॉ विकास ने बताया कि गोली लगने से मां और बच्चे दोनों को जान का खतरा था। इस प्रकार के केस रेयर ऑफ दी रेयरेस्ट ही आते हैं। सभी के टीम वर्क से ही यह संभव हो सका। गोली सिर लगी थी। जिस वजह से महिला को पैरालाइज की समस्या हो सकती थी। इसके अलावा लाइफ टाइम कोमा, आवाज का चला जाना, सूंघने की शक्ति खोने का भी खतरा बना हुआ था।

Posted By: Inextlive