रांची: झारखंड हाई कोर्ट ने कहा कि अगर संविदा पर लोग काम कर रहे हैं, तो उसी पद पर संविदा के आधार पर नियुक्ति कर उन्हें हटाया नहीं जा सकता है। जस्टिस डा। एसएन पाठक की अदालत ने उक्त आदेश देते हुए राज्य के तीन विश्वविद्यालयों में संविदा के आधार पर बहाल हुए सहायक प्रोफेसर को नहीं हटाने का आदेश पारित किया है। इस मामले में अदालत ने पूर्व में बहस पूरी होने के बाद अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। सोमवार को अदालत ने डा। प्रियव्रत पांडेय, प्रभाष गोरई सहित सात अन्य की याचिका पर को निष्पादित करते हुए उक्त आदेश पारित किया है। दरअसल, राज्य सरकार ने मार्च 2017 एक संकल्प जारी किया था। इसके बाद राज्य के सभी विश्वविद्यालय ने विज्ञापन जारी कर संविदा के आधार पर असिस्टेंट प्रोफेसर की नियुक्ति की थी।

हर साल एक्सटेंशन

हर साल प्रदर्शन के आधार पर इनकी अवधि बढ़ाई जाती थी। लेकिन जनवरी में राज्य सरकार ने नया विज्ञापन निकालते हुए कहा कि वर्ष 2017-18 में संविदा पर नियुक्त हुए असिस्टेंट प्रोफेसर की अवधि 31 मार्च 2021 को समाप्त हो रही है। इसलिए नई नियुक्ति की जाएगी। इसमें पहले से काम करने वाले लोग भी आवेदन कर सकते हैं। इसके बाद इस आदेश को हाई कोर्ट में चुनौती दी गई।

सुप्रीम कोर्ट का हवाला

सुनवाई के दौरान वरीय अधिवक्ता अजीत कुमार व अधिवक्ता विकास कुमार ने अदालत को बताया कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद झारखंड हाई कोर्ट ने ऐसे आदेश दिए हैं जिसमें कहा गया है कि अगर विशेष परिस्थितियों में संविदा पर नियुक्ति की जाती है तो दोबारा उसी पद पर संविदा से होने वाली नियुक्ति से रिप्लेस नहीं किया जा सकता। इस मामले में राज्य सरकार और विश्वविद्यालयों ने अपने जवाब में कहा है कि पूर्व में संविदा पर बहाल किए गए सहायक प्रोफेसर को नहीं हटाया जाएगा। इसके बाद अदालत ने कोल्हान विश्वविद्यालय, विनोबा भावे विश्वविद्यालय और विनोद बिहारी महतो कोयलांचल विश्वविद्यालय के सात लोगों को नहीं हटाने का आदेश पारित किया है। हालांकि इस मामले में अभी हाई कोर्ट में 229 याचिकाएं सुनवाई के लिए लंबित हैं। जबकि संविदा के आधार पर राज्य की सभी विश्वविद्यालयों में 950 लोगों की नियुक्ति हुई है।

Posted By: Inextlive