रांची : झारखंड हाई कोर्ट के जस्टिस डा रवि रंजन व जस्टिस एसएन प्रसाद की खंडपीठ में ब्लैक फंगस मामले में सुनवाई हुई। अदालत ने मरीज उषा देवी की मौत पर रिम्स निदेशक को फटकार लगाते हुए कहा कि पीडि़ता का देरी से इलाज शुरू किया गया। इसके चलते उसकी मौत हो गई। इस मामले में चिकित्सकों ने अनदेखी की है। अदालत ने कहा कि जब महिला एक महीने से रिम्स में भर्ती थी तो उसका ऑपरेशन पहले क्यों नहीं किया। अदालत ने टिप्पणी करते हुए कहा कि कोरोना काल में निजी अस्पताल सेवा की बजाय पैसा कमाने की मशीन बन गए हैं। उनमें अब संवेदना ही नहीं रही है। उन्होंने कहा कि मेडिकल कॉलेज में नए चिकित्सकों को नैतिकता का पाठ पढ़ाए जाने की जरूरत है।

निदेशक से मांगी जांच रिपोर्ट

अदालत ने पीडि़ता के मौत मामले में रिम्स निदेशक से जांच रिपोर्ट मांगी है। अदालत ने कहा कि रिम्स निदेशक अपनी टीम के साथ इस मामले की जांच करें और रिपोर्ट दाखिल करें कि आखिर किस वजह से महिला की मौत हुई है। साथ ही राज्य सरकार को सभी जिला अस्पतालों में ब्लैक फंगस से निपटने के लिए प्राथमिक उपचार की सुविधा उपलब्ध कराने का निर्देश दिया। इसके बाद अदालत ने इस मामले को निष्पादित कर दिया।

अब तक 160 ब्लैक फंगस के मरीज

सुनवाई के दौरान महाधिवक्ता राजीव रंजन ने अदालत को बताया कि राज्य सरकार ने जून माह में ब्लैक फंगस को महामारी घोषित किया था। राज्य में अब तक 160 ब्लैक फंगस के मरीज हैं। इसमें 101 मरीजों में ब्लैक फंगस होने की पुष्टि हो चुकी है, जबकि 59 अभी संदिग्ध मरीज है। राज्य सरकार ने ब्लैक फंगस से निपटने के लिए कई कदम उठाए गए हैं। सरकार ऐसे मरीजों को मुफ्त दवा उपलब्ध करा रही है। इसके इलाज के लिए आइसीएमआर के गाइडलाइन के तहत एसओपी भी बनाया गया है। सभी जिलों के उपायुक्त एवं सिविल सर्जन को उक्त एसओपी भेजी गई है।

रिम्स निदेशक को फटकार

इस दौरान रिम्स की ओर से किसी अधिवक्ता के उपस्थित नहीं होने पर अदालत ने तुरंत रिम्स निदेशक को वीसी के जरिए जुड़ने का आदेश दिया। कुछ देर बाद रिम्स निदेशक अदालत में हाजिर हुए। अदालत ने उनसे पूछा कि ब्लैक फंगस की पीडि़त महिला का क्या हुआ। रिम्स निदेशक ने कोर्ट को बताया कि कोर्ट के आदेश के बाद तीन सर्जनों की निगरानी में सर्जरी हुई। महिला की तबीयत खराब होने पर उसे आइसीयू में भर्ती कराया गया। लेकिन ब्लड प्रेशर और शुगर नियंत्रित नहीं होने की वजह से उनकी मौत हो गई। अदालत ने पूछा कि वह महिला कब भर्ती हुई थी। रिम्स निदेशक ने बताया कि लगभग एक माह पहले उक्त महिला रिम्स में भर्ती हुई थी। अदालत ने कहा कि उसकी सर्जरी में इतनी देर क्यों हुई। देरी की वजह से ब्लैक फंगस संक्रमण महिला के दिमाग तक पहुंच गया था। अगर पहले उनकी सर्जरी हो जाती तो उसका जीवन बच जाता। सभी का जीवन अनमोल होता है। कोर्ट ने माना कि कोरोना में चिकित्सकों ने काफी अच्छा काम किया। लेकिन इस मामले में मरीज की घोर अनदेखी की गई है।

स्वतंत्र एजेंसी से जांच

अदालत ने कहा हम इस मामले की जांच स्वतंत्र एजेंसी से कराना चाहते हैं। अदालत ने कहा कि रिम्स एक सरकारी संस्था है। उसमें इतनी बड़ी लापरवाही कैसे की जा सकती है। मरीजों के परिजनों को इस बात की जानकारी लेने का पूरा हक है कि चिकित्सक मरीज का कैसे इलाज कर रहे हैं। चिकित्सकों को यह समझना चाहिए कि वर्तमान में कोरोना उनका दुश्मन है न कि कोई मरीज। उन्हें मरीज को परिजनों के साथ अच्छा बर्ताव करना चाहिए। रिम्स निदेशक ने कोर्ट की बातों से सहमति जताई और कहा कि इसकी जांच की जाएगी। बता दें कि ब्लैक फंगस मरीज उषा देवी के बेटे ने रिम्स में समुचित इलाज नहीं होने पर हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस को पत्र लिखा था। इस पत्र पर कोर्ट ने संज्ञान लेते हुए इसे जनहित याचिका में तब्दील दिया था। अदालत ने महिला का इलाज का निर्देश रिम्स को दिया था।

Posted By: Inextlive