रांची : झारखंड हाई कोर्ट ने राज्य सरकार की नियोजन नीति को गलत असंवैधानिक बताते हुए इसे रद कर दिया है। सोमवार को जस्टिस एचसी मिश्र, जस्टिस एस चंद्रशेखर व जस्टिस दीपक रोशन की पीठ ने सर्वसम्मति से सरकार की नियोजन नीति को असंवैधानिक घोषित करते हुए कहा कि उक्त नीति संविधान के प्रावधानों के अनुरूप नहीं हैं। अदालत ने कहा कि इस नीति के कारण 13 अधिसूचित जिलों के सभी पद आरक्षित हो जा रहे हैं, जबकि संविधान के प्रावधानों के मुताबिक किसी भी हाल में कहीं भी नौकरियों में शत- प्रतिशत आरक्षण नहीं दिया जा सकता, इसलिए राज्य की नियोजन नीति से संबंधित अधिसूचना को निरस्त किया जाता है। इसके साथ ही अदालत ने राज्य के 13 अनुसूचित जिलों में इस नीति के तहत हुई नियुक्ति प्रक्रिया को रद करते हुए दोबारा विज्ञापन निकाल कर नियुक्ति प्रक्रिया शुरू करने का निर्देश दिया। हालांकि इस दौरान अदालत ने 11 गैर अनुसूचित जिलों में जारी नियुक्ति प्रक्रिया को बरकरार रखा है। इसके पीछे अदालत का तर्क है कि प्रार्थी ने नियोजन नीति और इसके तहत जारी विज्ञापन की शर्त को ही हाई कोर्ट में चुनौती दी थी। गैर अधिसूचित जिलों में होने वाली नियुक्ति को किसी ने भी चुनौती नहीं दी है। इसलिए उसे रद नहीं किया जा रहा। इस मामले में सभी पक्षों की बहस सुनने के बाद अदालत ने 21 अगस्त 2020 को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।

आरक्षण की अधिकतम सीमा है 50 प्रतिशत

अदालत ने अपने फैसले में कहा है कि सुप्रीम कोर्ट ने इंद्रा साहनी और आंध्रप्रदेश के चेबरू लीला प्रसाद राव के मामले में कहा है कि किसी भी हाल में शत-प्रतिशत पद आरक्षित नहीं किए जा सकते हैं। अदालत ने माना है कि अधिकतम 50 फीसद आरक्षण हो सकता है। ऐसे में नियोजन नीति के चलते 13 अधिसूचित जिलों में सभी पद 100 फीसद आरक्षित हो गए हैं, जो असंवैधानिक है। राज्य सरकार को इस तरह की नीति बनाने का अधिकार नहीं है। इसलिए नियोजन नीति को निरस्त किया जाता है। अदालत के इस फैसले से राज्य में आठ हजार से ज्यादा शिक्षकों की नौकरी जाने का अनुमान है। अदालत ने 13 अधिसूचित जिलों में अब तक हो चुकी सभी नियुक्ति को रद करने का आदेश दिया है। हालांकि अदालत ने इन जिलों में दोबारा नियुक्ति प्रक्रिया शुरू करने को कहा है।

पलामू की सोनी कुमारी ने दाखिल की थी याचिका

पलामू की रहने वाली सोनी कुमारी ने नियोजन नीति को चुनौती देते हुए हाई कोर्ट में याचिका दाखिल की थी। प्रार्थी के अधिवक्ता ललित कुमार सिंह ने अदालत को बताया कि सरकार की यह नियोजन नीति सही नहीं है और यह समानता के अधिकार का हनन है। सरकार के इस फैसले से किसी खास जिले के लोगों के लिए ही सारे पद आरक्षित हो गए हैं। संविधान के अनुसार किसी भी पद को शत- प्रतिशत आरक्षित नहीं किया जा सकता। सरकार की इस नीति से इस राज्य के लोगों को ही अपने राज्य में नौकरी के अधिकार से वंचित होना पड़ रहा है। प्रार्थी ने अदालत को बताया था कि वह गैर अनुसूचित जिले की रहने वाली है और अनुसूचित जिले में शिक्षक के पद के लिए आवेदन दिया था, लेकिन उनका आवेदन रद कर दिया गया।

जुलाई 2016 में बनी थी स्थानीय नीति

झारखंड सरकार ने 14 जुलाई 2016 को नियोजन नीति की अधिसूचना जारी की थी। इसके तहत 13 जिलों को अधिसूचित व 11 को गैर अधिसूचित जिला घोषित किया गया। इस नीति के तहत राज्य में तृतीय और चतुर्थवर्गीय पदों पर नियुक्ति के लिए विज्ञापन (विज्ञापन संख्या 21-2016) निकाला गया। इसमें 13 अधिसूचित जिलों की नौकरी में स्थानीयता और जन्म स्थान के आधार पर केवल वहीं के लोगों ही नियुक्त करने का प्रावधान किया गया था। इस कारण गैर अनुसूचित 11 जिले के अभ्यर्थी इन जिलों में नियुक्ति के लिए आवेदन भी नहीं कर सकते थे। दूसरी ओर गैर अनुसूचित जिले में सभी जिलों के लोग आवेदन कर सकते थे। सरकार ने 10 साल के लिए यह प्रावधान किया था।

Posted By: Inextlive