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फ्लैग: बीएयू वेटनरी कॉलेज के वैज्ञानिकों ने विकसित की मुर्गी की नई प्रजाति

-खोज को डायरेक्टरेट ऑफ पॉल्ट्री रिसर्च हैदराबाद व भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद की मान्यता मिली

-चिकेन खाने वालों से लेकर मुर्गी पालकों को भी होगा फायदा

-झारसिम चिकेन की प्रतिरोधक क्षमता भी ज्यादा है

-इसे बीमारियां भी नहीं होंगी। मुर्गी पालकों को फायदा होगा

ashwini.nigam@inext.co.in

RANCHI(9 Apr): चिकेन खाने के शौकीन और मुर्गी पालने वालों के लिए खुश-खबरी है। अब आप ऐसे चिकेन खा सकेंगे, जिसे स्पेशली झारखंड में ही विकसित किया गया है। जी हां, कांके स्थित बिरसा एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी के पॉल्ट्री डिपार्टमेंट के वैज्ञानिकों ने मुर्गी की एक नई प्रजाति की खोज की है, जिसे झारसिम नाम दिया गया है। इस मुर्गी का स्वाद देसी मुर्गी से किसी मायने में कम नहीं होगा। वहीं, इसका ग्रोथ भी काफी तेजी से होगा।

बीएयू में लांचिंग कल

बीएयू वेटनरी कॉलेज के साइंटिस्ट डॉ। सुशील प्रसाद ने सालों से मेहनत कर मुर्गी की इस नई प्रजाति को खोजने में सफलता पाई है। मुर्गी की इस नई खोज को डायरेक्टरेट ऑफ पॉल्ट्री रिसर्च हैदराबाद व भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद नई दिल्ली ने भी मान्यता दे दी है। क्क् अप्रैल, सोमवार को बीएयू में आयोजित एक कार्यक्रम में मुर्गी की इस नई प्रजाति को लांच किया जाएगा। इस प्रोग्राम में देशभर के जानेमाने वैज्ञानिक भाग लेंगे। खासतौर पर डायरेक्टरेट ऑफ पोल्ट्री रिसर्च हैदराबाद के डायरेक्टर डॉ। आरएन चटर्जी, इंडियन काउंसिल ऑफ एग्रीकल्चर रिसर्च के डॉ। आरएस गांधी भी मौजूद रहेंगे।

यह है खासियत

झारखंड की देसी मुर्गी पर रिसर्च कर नई प्रजाति झारसिम को विकसित किया गया है। इस मुर्गी की सबसे बड़ी खासियत यह है कि यह प्राकृतिक वातावरण में चरकर अपना भोजन प्राप्त कर लेती है। इसके साथ ही इसकी प्रतिरोधक क्षमता भी ज्यादा है। इसे बीमारियां भी नहीं होंगी। इससे मुर्गी पालकों को पालने में भी आसानी होगी।

7 साल लगे खोज में

बिरसा एग्रीकल्चर यूनिविर्सटी के वेटनरी कॉलेज के लाइव प्रोडक्शन एंड मैनेजमेंट डिपार्टमेंट में साइंटिस्ट डॉ। सुशील प्रसाद ने साल ख्009 में अखिल भारतीय समन्वित कुक्कुट परियोजना के तहत मुर्गी की इस नई प्रजाति की खोज करने के लिए काम शुरू किया था। इसके लिए देसी मुर्गी को उपयोग में लाया गया था।

बॉक्स।

देसी मुर्गी झारसिम चिकेन

एक साल भ्0-म्0 अंडे एक साल क्80 अंडे

एक साल क् किलो वजन एक साल में डेढ़ ि1कलो वजन

.बॉक्स

चिकेन आयात नहीं करना पड़ेगा

झारखंड में चिकेन और अंडे की जो खपत है, उसे पूरा करने के लिए झारखंड को आंध्र प्रदेश, ओडि़शा व पश्चिम बंगाल से आयात करना पड़ता है। ऐसे में आने वाले समय में झारसिम मुर्गी पालन से झारखंड में अंडे और चिकेन आयात के झंझट से भी छुटकारा मिल जाएगा।

Posted By: Inextlive