रांची में आधी हो गई बिक्री कई इलाकों से बड़े खरीदार नहीं आए. दस वर्षों में दो से बढ़कर पांच रुपए हुई एक पतंग की कीमत. रांची में 600 रुपए तक के पतंग कोरियन पतंगों के भी हैैं दीवाने

रांची(ब्यूरो)।स्वतंत्रता, उन्मुक्तता और शुभता का प्रतीक पतंग का क्रेज आज भी कम नहीं हुआ है। भले ही पतंग के आकार, रंग-रूप बदल गए हों, लेकिन इनकी अहमियत कहीं से भी कम नहीं हुई है। यही वजह है कि आज भी पतंगों के कारीगर बसंत के आगमन का इंतजार करते हैैं। वैसे, इस साल रांची में कोरोना को लेकर पतंगों की बिक्री आधी हो गई है। रांची में पतंगों का कारोबार पिछले 70 सालों से चल रहा है। जनश्रुति के अनुसार रामायण काल में मकर संक्रांति के दिन प्रभु श्रीराम ने अयोध्या वासियों के उल्लास और शुभ की कामना से पतंग उड़ाई थी। प्रतीक के तौर पर आज भी लोग मकर संक्रांति के दिन पतंग उड़ाते हैैं। यह सिलसिला रांची में पिछले सात दशक से कायम है।
600 रुपए की कोरियन पतंग
रांची में पतंगों के थोक विक्रेता मोहम्मद खालिद बताते हैैं कि पिछले 10 सालों में पतंग के मूल्य में काफी बदलाव हुआ है। 10 साल पहले एक पतंग की कीमत 2 रुपए थी। पिछले साल पतंग का मूल्य 4 रुपया हुई, जो इस साल बढ़कर 5 रुपए हो गया है। खालिद बताते हैैं कि रांची में 5 रुपए से लेकर 600 रुपए तक की पतंग आती है। 600 रुपए की कोरियन पतंग उपलब्ध है, जिसकी डिमांड रांची के पतंग के शौकीन लोगों में बहुत है।
गुजरात से आती है पतंग
लोहरी और मकर संक्रांति के अवसर पर पतंगों की डिमांड बढ़ जाती है। रांची में पतंग कोलकाता और गुजरात से मंगाई जाती है। ज्यादतर पतंगें गुजरात से आती हैं। प्लास्टिक की पतंगें गुजरात से और कागज की पतंगें कोलकाता से आती है। लटई उत्तर प्रदेश के बरेली से आती है। सबसे बड़ी लटई 1200 की आती है। पतंगों का सीजन लगभग एक महीने तक रहता है। इस बार कोरोना की वजह से बिक्री कम हुई है। पीपी कंपाउंड और अपर बाजार के कई पतंग के शौकीन पतंग खरीदने नहीं आये इस साल। कोरोना की वजह से और सालों की अपेक्षा इस बार पतंगों की आधी बिक्री हुई है।

हम चाइनीज धागे से होने वाले नुकसान से पहले से ही वाकिफ थे, इसलिए हम चाइनीस मांझा नहीं रखते। चाइनीस मांझे से हाथ कटने का डर रहता है। हमारे यहां सूती के मांझे की ही डिमांड होती है। वैसे इस बार पतंगों की बिक्री आधी ही हुई है, क्योंकि कोरोना के कारण कई बड़े खरीदार नहीं आए।
मो खालिद, पतंग विक्रेता, कर्बला चौक


क्या कहते हैैं पतंगबाजी के शौकीन
पतंगों के आगे सभी शौक फीके हैैं। आज गैजेट्स की भरमार है, फिर भी पतंगबाजी का शौक कम नहीं हुआ है। इस बार भी पतंगें उड़ानी हैै और पूरे उल्लास के साथ बसंत का स्वागत करना है।
प्रमोद कुमार, जेयूटी

पतंगें उड़ाने का शौक काफी पहले से रहा है। कभी छत पर जाकर, तो कभी मैदान में ही पतंगे उड़ाने का शौक रहा। इसे लेकर पहले घर पर काफी डांट भी मिलती थी, लेकिन कभी इससे अलग नहीं हुआ।
लक्ष्मण सिंह, एडवोकेट सह समाजसेवी

धीरे-धीरे पतंगों के आकार बदल गए। नई-नई डिजाइन की पतंगें आ गईं लेकिन मुझे आज भी कागज से बनी रंगीन पतंग उड़ाना पसंद है। आज भी समय निकाल कर यह शौक जरूर पूरा करता हूं।
डॉ मो जाकिर, मैनेजमेंट टीचर

रांची में पहले पतंगबाजी का उत्सव होता था। लोग अपने-अपने घरों की छत से ही पतंग उड़ाते और एक दूसरे की पतंग को काटकर खुश होते थे। अब भी पतंग उड़ाना बहुत ही अच्छा लगता है।
पंकज चटर्जी, आरकेडीएफ

Posted By: Inextlive