राजधानी रांची में प्रदूषण हर दिन रिकॉर्ड बना रहा है. अब इसका असर आम लोगों के फेफड़े पर पडऩे लगा है. रांची के अल्बर्ट एक्का चौक पर सात दिन पहले एक आर्टिफि शियल फेफ ड़ा लगाया था जो सात दिन के अंदर ही सफेद से काला पड़ गया. इनमें सफेद हेपा फि ल्टर लगाए गए हैं जो प्रदूषित हवा के संपर्क में आने पर काले पड़ जाते हैं. इससे सेहत पर वायु प्रदूषण के प्रभाव को समझने में मदद मिलेगी.


रांची (ब्यूरो)। सेंटर फ ॉर एनवायरनमेंट एंड एनर्जी डेवलपमेंट सीड, रांची नगर निगम, पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड और रांची स्मार्ट सिटी के सहयोग से यह आर्टिफिशियल लंग्स आम लोगों को जागरूक करने के लिए लगाया गया है। चौंकाने वाली बात यह है कि केवल एक हफ्ते में ही यह कृत्रिम फेफड़ा काला पड़ गया। सेंसिटिव ग्रुप के लिए खतरनाक


राजधानी रांची में सर्दी के साथ वायु प्रदूषण का स्तर फिर बढऩे लगा है। पिछले सात दिन के भीतर शहर का एयर क्वॉलिटी इंडेक्स 250 के ऊपर पहुंच गया है। एयर क्वालिटी इंडेक्स के बढऩे से सेंसिटिव ग्रुप के लिए खतरा बढ़ रहा है, क्योंकि पीएम 10 और पीएम 2.5 तेजी से खतरनाक लेवल की ओर बढ़ रहा है। पीएम 10 की वजह से आंखों और गले में इरिटेशन हो सकता है। वहीं, पीएम 2.5 की वजह से लंग्स में समस्या हो सकती है। हार्ट पर भी इसका असर पड़ सकता है। इसके अलावा खांसी और सांस लेने में तकलीफ जैसी समस्या भी होने का खतरा है।लोगों को अवेयर करने के लिए लगा है

यह डिस्पले लोगों को अवेयर करने के लिए लगाया गया है। शुरुआत में बिलबोर्ड के फेफ ड़ों का रंग सफेद था, जो कि स्वस्थ फेफ ड़ों के प्रतीक के रूप में प्रदर्शित करती है। सात दिनों के अंदर हीं प्रदूषित हवा के कारण बदलना शुरू हो गया। यह होर्डिंग डिस्प्ले अगले कई दिनों तक लगा रहेगा, इसका व्यापक उद्देश्य शहर में वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए लगाया गया है।इस तरह काला हो गया कृत्रिम फेफ ड़ाराजधानी के अलबर्ट एकका चौक पर 24 नवंबर को आर्टिफि शल फेफ ड़े लगाए गए थे। ऐसे ही फेफ ड़े पहले दिल्ली में भी लगे थे। विशेषज्ञों की मानें तो कृत्रिम फेफ ड़े जिस तरह सात दिनों में काले हो गए हैं, उससे साफ है कि रांची की हवा में कचरा जलने और वाहनों के प्रदूषण के कारण काली हो गई है। ये फेफ ड़े इसीलिए लगाए गए थे ताकि लोग अपने सामने देख सकें कि शहर की हवा उनके फेफ ड़ों को किस तरह प्रभावित कर रही है। हर दिन बदल रहा है रंग

24 नवंबर को यह आर्टिफिशियल लंग्स लगाया गया था, जिसका रंग हर दिन बदल रहा है। ये फेफ ड़े हाइ-एफि शिएंसी पार्टिक्युलेट एयर फि ल्टर के बनाए गए हैं। लगने के एक दिन बाद इन फेफ ड़ों का रंग ग्रे हुआ और धीरे-धीरे यह पूरी तरह से काला पड़ गया। लक्ष्मी नर्सिंग होम के जेनरल फिजीशियन डॉक्टर रंधीर कुमार ने बताया कि पहले लोगों के फेफ ड़े गुलाबी होते थे। जो लोग धूम्रपान करते थे, केवल उनके ही फेफ ड़ों में ब्लैक डिपहीजर काले फेफ ड़े देखने को मिलते थे, लेकिन अब अमूमन लोगों के फेफ ड़े काले हो रहे हैं। यह रांची में बढ़ते प्रदूषण के कारणहो रहा है। हेपा फिल्टर फाइबर का बना है अल्बर्ट एक्का चौक पर जो आर्टिफिशियल लंग्स बना है, वह हेपा फिल्टर फाइबर का बना होता है, जिसमें बहुत सूक्ष्म छेद होते हैं, जो धूल कण और पार्टिकुलेट मैटर को रोक लेते हैं। ऑपरेशन थियेटर में जाने वाली हवा को साफ करने के लिए इसका इस्तेमाल होता है। कुछ इसी तरह का काम फेफड़ा भी करता है। एक सामान्य व्यस्क आदमी रोजना 24 घंटे में औसतन 25,000 बार सांस लेता है। इस तरह एक व्यक्ति प्रतिदिन करीब 10,000 लीटर ऑक्सीजन सांस के रूप में लेता है। इस आधार पर हेपा फि ल्टर के पीछे लगे पंखे की गति निर्धारित की गई है। पंखा चलने पर उसमें हवा पास हो रही है, जैसे हवा फेफ ड़े में जाती है, इस हवा का जो असर इस फि ल्टर पर हो रहा है वही असर फेफ ड़े पर भी होता है।

Posted By: Inextlive