RANCHI:रांची में कोरोना से मरने वालों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। गुरुवार को सिटी के कई नामचीन लोगों का निधन हो गया। तीन लोग कोरोना संक्रमित थे। मरने वालों में रांची विश्वविद्यालय के जनजातीय भाषा विभाग के पूर्व अध्यक्ष गिरिधारी राम गौंझू भी शामिल हैं। इन्हें गुरुवार को ऑक्सीजन की जरूरत थी। परिजन उन्हें लेकर अस्पतालों की खाक छानते रहे, अंत में उनका शाम को निधन हो गया। इसके अलावा मंत्री जगरनाथ महतो के कार्यालय में पदस्थापित प्रधान आप्त सचिव अवधेश पासवान की मौत कोरोना से हो गई। रांची में संक्रमित होने के बाद वे बिहार चले गए थे, जहां उनका निधन हो गया। वहीं, रांची के कांके थाना में तैनात एएसआई इश्तियाक अहमद खान की भी कोरोना संक्रमण से मौत हो गई। हालांकि, उनकी एक रिपोर्ट निगेटिव भी आई थी।

सीएम ने जताया शोक

मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने रांची विश्वविद्यालय के क्षेत्रीय व जनजातीय भाषा विभाग के पूर्व अध्यक्ष डॉ गिरिधारी राम गौंझू के निधन पर गहरा दुख व्यक्त किया है। मुख्यमंत्री ने कहा कि राज्य की नागपुरिया संस्कृति, नृत्य, गीतों पर किताब लिखकर उन्होंने स्थानीय विरासत और पहचान को सहेजने का काम किया था। झारखंड उनके योगदान को सदैव स्मरण रखेगा।

रामेश्वर ने भी शोक जताया

झारखंड प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष व मंत्री डॉ रामेश्वर उरांव ने भी डॉ गौंझू के निधन पर गहरी संवेदना प्रकट की है। उन्होंने कहा डॉ गौंझू ने कई नागपुरी साहित्य की रचना की और नागपुरी साहित्य को समृद्ध करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। एक साहित्यकार के रूप में उन्होंने जीवनपर्यंत जल, जंगल, जमीन के लिए संघर्ष किया और आदिवासियों तथा वनों में रहने वाले वनवासियों के अधिकार को लेकर जागरूक करते रहे। इधर, लोक सेवा समिति के अध्यक्ष मो नौशाद ने भी उनके निधन पर शोक जताया। डॉ गौंझू कई वर्षो से समिति से जुड़े थे। उन्हें झारखंड रत्न से सम्मानित भी किया गया है।

नहीं रहे जाने-माने अधिवक्ता बंशी प्रसाद

रांची के वरिष्ठ अधिवक्ता बंशी प्रसाद का भी गुरुवार को निधन हो गया। सिटी में वह बंशी बाबू के नाम से मशहूर थे। सिविल मामलों में वह काफी प्रख्यात वकील थे। वह कैथी लिपि के चुनिंदा जानकारों में थे। गुरुवार को ही उनका अंतिम संस्कार चुटिया के स्वर्णरेखा नदी तट पर स्थित श्मसान घाट में किया गया। बंसी प्रसाद का जन्म रांची में एक जून 1934 को हुआ था। उन्होंने डाल्टनगंज जिला स्कूल से 1951 में मैट्रिक की परीक्षा पास की। इसके बाद पटना विश्वविद्यालय से स्नातक की उपाधि हासिल की। स्नातक करने के बाद वे रांची में कल्याण विभाग में इंस्पेक्टर के पद पर बहाल हो गये। 1965 में उनका स्थानांतरण हजारीबाग कर दिया गया लेकिन रांची नहीं छोड़ने के मोह के कारण उन्होंने नौकरी से इस्तीफा दे दिया।

1968 में शुरू की वकालत

इसके बाद उन्होंने छोटानागपुर लॉ कॉलेज से गोल्ड मेडल के साथ विधि की परीक्षा पास कर ली और 1968 में देवी बाबू वकील के सानिध्य में रांची सिविल कोर्ट में वकालत शुरू की। वे ऐसे वकील थे कि बिहार, छत्तीसगढ़ और मघ्य प्रदेश के कई सीनियर वकील कानून संबंधी पेचीदगियों को सुलझाने के लिए उनके पास सलाह लेने के लिए आया करते थे। कैथी लिपि के दस्तावेजों में जब कोई अड़चन आती थी, तब भी लोग उसे सुलझाने के लिए बंशी बाबू के पास जाते थे। सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस एम वाई इकबाल ने रांची सिविल कोर्ट परिसर में बार एसोसिएशन द्वारा आयोजित एक कार्यक्त्रम में कहा था कि बंशी बाबू मेरे भी गुरु रहे हैं। मैंने इनसे बहुत कुछ सीखा है।

Posted By: Inextlive