RANCHI:राजधानी बनने के बाद विकास संबंधी योजनाओं की बाढ़ आ गई। करोड़ों रुपए की योजनाओं से शहर को साफ, सुंदर और समृद्ध बनाने के प्रयास किए जा रहे हैं। लेकिन गंभीर मुद्दा यह है कि कुछ विकास योजनाएं धरती पर उतर रही हैं जबकि अधिकतर योजनाओं के नाम पर केवल खानापूर्ति का खेल कर अधिकारी-ठेकेदार गठबंधन वाले लोग अपनी जेबें भर रहे हैं। नगर विकास विभाग ने भी कुछ दिनों पूर्व ऐसी योजनाओं की समीक्षा शुरू की जो कागज से धरातल पर उतरते ही विवादों में पड़ गई। योजनाएं पूरी भी नहीं हुई और उनपर करोड़ों रुपए खर्च हो गए। हरमू नदी, स्लॉटर हाउस, सीवरेज ड्रेनेज सिस्टम, कांटाटोली फ्लाईओवर, शहरी जलापूर्ति सहित कई योजनाओं और उनकी डीपीआर में गड़बडि़यों की बात सामने आ चुकी है। इन योजनाओं में गड़बड़ी की कई बार गैर सरकारी एजेंसियों ने शिकायत दर्ज कराई है। विपक्ष से लेकर लोकल पार्षदों ने भी विरोध जताया है लेकिन मामला ढाक के तीन पात की तरह ही रह गया है। कई योजनाओं में हुई गड़बडि़यों को लेकर पीआईएल भी हो चुका है।

कांटाटोली प्लाईओवर निर्माण अटका

कांटाटोली फ्लाईओवर का काम रुकने के बाद वहां जाम सबसे बड़ी समस्या बन गई है। जबकि उसी जाम से निजात पाने के लिए फ्लाईओवर बनाने का निर्णय लिया गया था। 2017 में कांटाटोली फ्लाईओवर बनाने का काम नगर विकास विभाग ने शुरू करवाया था। काम शुरू होते ही कई समस्याएं खड़ी हो गई। जब इन समस्याओं से निजात पाया गया, तो डीपीआर की गलती सामने आ गई। फ्लाईओवर निर्माण के लिए मूल डीपीआर की राशि 40.30 करोड़ से बढ़ाकर 82.14 करोड़ कर दी गई थी, जो मूल डीपीआर की राशि से दोगुनी थी। कई तकनीकी कमियों को देखकर फ्लाईओवर निर्माण काम रोकना पड़ा।

आज भी प्यासी है हरमू नदी

हरमू नदी करोड़ों खर्च होने के बाद बडे़ नाले में तब्दील हो गई है। सारे पैसे फूंक दिए गए लेकिन हरमू नदी आज भी प्यासी है क्योंकि उसके अतिक्रमण का शिकार होने के कारण पानी धीरे-धीरे कम होता जा रहा है। जबकि हरमू नदी सौंदर्यीकरण योजना पूर्व सीएम रघुवर दास का ड्रीम प्रोजेक्ट था। सीएम ने नदी को पुरानी जैसा बनाने का निर्देश 15 मार्च 2015 को दिया था। 85 करोड़ से दो चरणों में काम होना था। नगर विकास विभाग की एजेंसी जुडको ने काम शुरू किया। करीब 84 करोड़ रुपए खर्च कर सौंदर्यीकरण का काम कराया गया, जिसके बाद नदी कुछ माह साफ दिखी, फिर स्थिति जस की तस हो गयी है। नदी के पानी में गंदगी ही दिखाई देती है। 84 करोड़ में नदी की स्थिति नहीं सुधरी, मगर राशि खर्च करने वाले जिम्मेदारों ने खूब वारे-न्यारे किए।

सीवरेज-ड्रेनेज सिस्टम आधा-अधूरा

रांची शहर में अभी कोई सीवरेज ड्रेनेज सिस्टम नहीं है। किसी शहर के विकास का आधार सीवरेज ड्रेनेज सिस्टम को माना जाता है। शहर के विकास में सीवरेज-ड्रेनेज सिस्टम का अहम रोल होता है। रांची नगर निगम ने शहर में ड्रेनेज सिस्टम को 4 फेज में पूरा करने का लक्ष्य बनाया था। पहले फेज में हुए करोड़ों रुपए खर्च के बाद काम बंद हो गया। काम के लिए ही निगम एजेंसी तलाश रहा है। लेकिन गम्भीर बात यह है कि इस सीवरेज ड्रेनेज के चक्कर में पूरे शहर की सड़कों को काटकर नीचे पाइप डाली गई जिसके कारण नालियों का कचरा अब पास ही नहीं हो पा रहा है। नालियों में पानी और कचरा जाम होकर रह गया है।

स्लॉटर हाउस के दावे खोखले

रांची के कांके में 17 करोड़ रुपए खर्च कर स्लॉटर हाउस बनाया गया। कुछ दिन चला, मगर अचानक बंद कर दिया गया। ऑफिशियल शुरुआत नहीं हुई। करोड़ों खर्च के बाद स्लॉटर हाउस बंद पड़ा है। इस वजह से शहर में जगह-जगह धड़ल्ले से मीट का कारोबार चल रहा है। इसी कारोबार को एक जगह एकत्रित करने के लिए निगम ने कांके में स्लॉटर हाउस बनाया था। लोगों तक हाइजीन मीट पहुंचाने के लिए जनता के भरे टैक्स के रुपए को खर्च तो कर दिया गया लेकिन जनता तक सुविधाएं पहुंचने का नाम नहीं ले रही हैं।

Posted By: Inextlive