RANCHI:राजधानी रांची सहित पूरे झारखंड में कोरोना का संक्रमण बढ़ रहा है। कोरोना के खिलाफ जंग में पुलिस-डॉक्टर्स के अलावा कई ऐसे ब्यूरोक्रेट्स हैं, जो फ्रंट लाइन पर काम कर रहे हैं। झारखंड में कई ऐसे ब्यूरोक्रेट्स हैं जो खुद एमबीबीएस हैं और अब आईएस अफसर की भूमिका में हैं। कोरोना काल में कई चीजें बिल्कुल नयी हैं। हर दिन काम करने के तरीके बदल रहे हैं, इलाज के लिए भी नए प्रयोग हो रहे हैं। इन जिम्मेवारियों को संभालने में डॉक्टरों के साथ-साथ सरकार के सचिव से लेकर जिलों के डीसी तक कोरोना वॉरियर्स के रूप में काम कर रहे हैं। खास यह है कि एक डॉक्टर आईएस बनता है तो उसका सीधा फायदा राज्य को और मरीजों को मिलता है। झारखंड में भी कई ऐसे आईएएस अधिकारी हैं जो फ्रंट लाइन पर कोरोना वॉरयिर के रूप में काम कर रहे हैं।

मिल रहा है डॉक्टर होने का फायदा

डॉ नितिन मदन कुलकर्णी

डॉ नितिन मदन कुलकर्णी 1995 बैच के आईएएस हैं। उन्होंने अपना एमबीबीएस और आईएएस एक ही साल यानी 1995 में क्लियर किया था। उन्होंने नागपुर मेडिकल कॉलेज से एमबीबीएस किया था। वे कोरोना काल में झारखंड के सबसे महत्वपूर्ण यानी स्वास्थ्य विभाग के प्रधान सचिव के पद पर हैं। कोविड काल में स्वास्थ्य विभाग के ही जिम्मे सारा कुछ है। ऐसे में डॉ नितिन एमबीबीएस की पढ़ाई के दौरान मिले तजुर्बे का इस्तेमाल निश्चित रूप से करते हैं। कोविड के दौरान उन्होंने झारखंड में बेड की संख्या बढ़ाने, कोरोना संक्रमित को ट्रेस कर उनकी जांच और होम क्वारंटीन करने जैसी महत्वपूर्ण चीजों पर काफी अच्छा काम किया है। डॉक्टर नितिन मदन कुलकर्णी कहते हैं कि स्वास्थ्य विभाग जैसे महत्वपूर्ण विभाग का प्रधान सचिव होने के साथ ही डॉक्टरों और हेल्थ वर्कर्स के लिए काम करना हमारे लिए आसान हो रहा है। कोरोना वायरस को लेकर हर दिन नया अपडेट आ रहा है। इस अपडेट के लिए मुझे किसी से समझने की जरूरत नहीं है। क्योंकि जो पढ़ाई और अपडेट दूसरे डॉक्टरों द्वारा दिया जा रहा है, उनसे मैं पहले से ही परिचित हूं। डॉक्टरों के साथ उनके टेक्निकल टर्म को समझने में भी आसानी होती है। एमबीबीएस डॉक्टर होने के नाते मुझे लैबोरेट्री बनाने में मदद मिली। क्योंकि यह बीमारी नयी थी और लेबोरेटरीज के लिए जिन चीजों की जरूरत थी वह मुझे पता था और हमने 3 महीने में ही पूरे झारखंड में 7 लेबोरेटरी तैयार कर ली। सरकारी अस्पताल को अपडेट करने में भी मदद मिल रहा है।

कई फैसले लेने में होती है आसानी

डॉ अमिताभ कौशल

2001 बैच के आईएएस डॉ अमिताभ कौशल के भी जिम्मे एक अहम जिम्मेदारी है। कोविड काल में स्वास्थ्य के बाद सबसे जरूरी विभाग यानी आपदा का कार्यभार उन्होंने ही संभाला हुआ है। वे आपदा प्रबंधन के सचिव हैं। कोविड-19 के दौरान राज्य में हर हफ्ते नये नियम बनाये जा रहे हैं। ताकि कोरोना का संक्रमण लोगों के बीच कम से कम हो। इन नियम और कायदों को स्वरूप देने की प्रारंभिक जिम्मेदारी इन्हीं के कंधों पर होती है। निश्चित तौर पर अपनी एमबीबीएस डिग्री की पढ़ाई का फायदा इन्हें मिलता होगा।

सीएम के करीब भी एक डॉक्टर अधिकारी

डॉ राजीव अरुण एक्का

1994 बैच के आईएएस और सीएम हेमंत सोरेन के प्रधान सचिव राजीव अरुण एक्का यूं तो कोविड से जुड़े किसी विभाग से फिलहाल नहीं जुड़े हुए हैं। लेकिन बतौर सीएम के प्रधान सचिव वे सीएम हेमंत सोरेन के साथ कोविड से संबंधित हर अहम बैठक का हिस्सा होते हैं। निश्चित तौर पर जहां एक ब्यूरोक्रेट के साथ डॉक्टरी सलाह की जरूरत सीएम हेमंत सोरेन को पड़ती होगी, डॉ राजीव अरुण एक्का इसके लिए उपलब्ध रहते हैं।

जिले में कोरोना के खिलाफ लड़े

डॉ शांतनु अग्रहरी

2012 बैच के आईएएस डॉ शांतनु अग्रहरी कोविड काल के दौरान पलामू जिले के डीसी थे। झारखंड में कोविड ने मार्च में दस्तक दी थी। उन्होंने उस वक्त पलामू में बतौर डीसी जिले की कमान संभाली। एक वक्त ऐसा आया था, जब प्रवासी मजदूर लौट रहे थे और जिले में कोरोना संक्रमण तेजी से फैल रहा था। लेकिन अपनी प्रशासनिक सूझ-बूझ और डॉक्टरी समझ से संक्त्रमण पर काबू पाया। हालांकि कुछ दिनों पहले उनका तबादला खाद्य आपूर्ति विभाग में बतौर संयुक्त सचिव हुआ है।

अपनी बच्ची और जिले को संभाला

डॉ भुवनेश प्रताप सिंह

2012 बैच के आईएएस डॉ भुवनेश प्रताप सिंह का भी तबादला कुछ दिनों पहले प्राथमिक शिक्षा निदेशक के तौर पर हुआ है। लेकिन कोरोना जब अपना पांव धीरे-धीरे पसार रहा था, तो वे हजारीबाग जैसे अहम जिले की बागडोर थामे हुए थे। उन्होंने काफी विषम स्थिति में हजारीबाग के साथ-साथ अपने परिवार को भी संभाला था। कोरोना से जंग लड़ते-लड़ते उनकी छोटी बच्ची भी कोरोना से संक्रमित हो गयी थी। लेकिन उन्होंने अपनी प्रशासनिक कुशलता से जिला और परिवार दोनों को संभाला। उन्होंने अल अमीन मेडिकल कॉलेज (बीजापुर, कर्नाटक) से एमबीबीएस किया था। उन्होंने ओएनजीसी में जूनियर रेजिडेंट और मैक्स, दिल्ली में डॉक्टर के रूप में काम किया। उन्होंने बताया कि एक डॉक्टर होने के नाते मैंने हजारीबाग में दस सीएचसी में टेस्ट शुरू करवाया। आज हजारीबाग जिले में 12 वेंटिलीटर हैं। एक डॉक्टर होने के नाते मुझे डॉक्टरों के साथ समन्वय बनाने में बहुत मदद मिली।

एसपी के साथ-साथ डॉक्टर भी

डॉ एहतेशाम वकारिब

2015 बैच के आईपीएस डॉ ऐहतेशाम वकारिब झारखंड के एकमात्र एसपी हैं, जो एमबीबीएस भी हैं। फिलहाल इनके जिम्मे कोडरमा जिले की पुलिसिया व्यवस्था है। बतौर कोडरमा एसपी जिले में कोविड के दौरान क्राइम कंट्रोल करने में अपनी डॉक्टरी सूझ-बूझ का खूब इस्तेमाल करते हैं।

हर मोर्चे पर रहते हैं तैनात

डॉ कुमार ताराचंद

2017 बैच के आईएएस डॉ कुमार ताराचंद हजारीबाग के बरही अनुमंडल में एसडीएम के पद पर तैनात हैं। हजारीबाग का बरही अनुमंडल बिहार राज्य का बॉर्डर होने के साथ-साथ एक संवेदनशील जिला भी माना जाता है। वो लगातार फील्ड भ्रमण कर लॉ एंड ऑर्डर को संभाले हुए हैं। युवा आईएएस होने के साथ वे फील्ड में अपनी डॉक्टरी समझ का भी इस्तेमाल करते हुए कई बार देखे जा चुके हैं। उन्होंने तंजावुर मेडिकल कॉलेज तमिलनाडु से 2008 में एमबीबीएस किया और नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ एंड फैमिली वेलफेयर मुनरिका नई दिल्ली से कम्यूनिटी मेडिसिन में 2014 में पीजी किया।

Posted By: Inextlive