रांची: रांची में कोरोना की रफ्तार पर ब्रेक नहीं लग रहा है। हर दिन कोरोना के मामले बढ़ते जा रहे हैं। रांची से एक दिन में 1400 पॉजिटव केस निकलने लगे हैं। हालांकि, कई लोग इस बीमारी से रिकवर भी हो रहे हैं। फिर भी अधिकतर लोगों को कोरोना का भय बना हुआ है। हो भी क्यों नहीं, यहां की स्वास्थ्य व्यवस्था जो भगवान भरोसे है। लोगों में कोरोना से डर तो है, लेकिन रांची का हेल्थ सिस्टम देखकर लोग ज्यादा डरे हुए हैं। दरअसल, कोविड से ग्रसित होते ही राजधानी के हॉस्पिटल में बेड लेने की मशक्कत शुरू हो जाती है। किसी तरह अगर बेड मिल गई तो जैसे-जैसे ट्रीटमेंट होता जाएगा मुश्किलें बढ़ती जाएंगी। क्योंकि न तो ऑक्सीजन और न ही मेडिसीन समय पर मिल पा रही। राज्य के सबसे बडे़ हॉस्पिटल रिम्स में दवा की किल्लत लगातार बनी हुई है। दवा नहीं मिलने से मरीज तड़प-तड़प कर दम तोड़ रहे हैं।

मेडिसीन की कमी से डेली मौत

कोरोना में रामबाण माना जाने वाला रेमडेसिविर इंजेक्शन की किल्लत तो है ही इसके अलावा दूसरी मेडिसीन जो इस घातक बीमारी में इस्तेमाल की जाती हैं वो भी हॉस्पिटल और बाजारों में नहीं मिल रही है। रिम्स में इलाज करा रहे मनोज कुमार गुप्ता को समय पर दवा नहीं मिलने से उनकी जान चली गई। डॉक्टर ने उन्हें टॉक्लिजंब 400 एमजी, थाइमोसीन दो वाइल और अननिस्टाटीन मेडिसीन लेने को कहा था। उनके परिजन एक दुकान से दूसरी दुकान भटकते रहे, लेकिन दवा नहीं मिली और अंतत: मनोज की जान चली गई है। इसी प्रकार फेवीपिरावीर मेडिसीन भी डॉक्टर प्रिस्क्राइब कर रहे हैं लेकिन यह मेडिसीन मार्केट में अवेलेबल नहीं है।

मुंह से सांस देकर भी मां को नहीं बचा पाया युवक

सिटी में अब भी आक्सीजन की आपूर्ति नहीं हो पाई है। सरकार भले लाख दावे कर रही है कि हॉस्पिटल में पर्याप्त संख्या में सिलेंडर सप्लाई करा दिया गया है। लेकिन सच्चाई क्या है यह सदर हॉस्पिटल के गेट पर देख जा सकता है। जहां एक युवक अपनी मां को सांसो के लिए तड़पता देख मुहं में मुंह लगाकर सांस फूंकने की कोशिश करता रहा। तस्वीर सोए हुए सिस्टम को जगाने के लिए काफी है, लेकिन यहां का सिस्टम ही मर चुका है, जिसे जगाया नहीं जा सकता। काफी प्रयास के बाद भी युवक अपनी मां की जान नहीं बचा पाया। वहीं रिम्स के बाहर एक महिला ने आक्सीजन नहीं मिलने से दम तोड़ दिया। इसी तरह और भी कई मामले मंगलवार को सामने आए जिसमें मरीजों की जान दवा और ऑक्सीजन की कमी के कारण चली गई। दूसरीे और पैरवी और पहुंच वाले मरीजों को ऑक्सीजन युक्त बेड मिलने में ज्यादा परेशानी नहीं हो रही है। सिर्फ मिडिल क्लास लोगों को सिस्टम की मार झेलनी पड़ रही है।

मरीजों के लिए जमीन ही बेड

मंगलवार को सदर और रिम्स के बाहर मरीजों की लाइन लगी रही। प्रबंधन मरीजों को एडमिट करने में लाचार और बेबस दिखे। मरीज के परिजन डॉक्टर से गुहार लगाते रहे कि उनके पेशेंट को बेड मिल जाए, इलाज शुरू हो। लेकिन प्रबंधन सिर्फ दिलासा के अलावा और कुछ न दे सका। रिम्स के ट्रॉमा सेंटर के बाहर एंबुलेंस की कतार लगी रही। हर एंबुलेंस के अंदर मरीज बेहतर इलाज के लिए घंटों तड़पते रहे। कुछ मरीजों को एंबुलेंस वाले जमीन पर ही लेटा कर चले गए। संक्रमित व्यक्ति के बेटे ने बताया कि राज हॉस्पिटल में इलाज हो रहा है, लेकिन मंगलवार को रिम्स रेफर कर दिया गया। यहां लाने पर भर्ती नहीं होने से जमीन पर ही लेट गए। उसी तरह सदर हॉस्पिटल में एक मरीज बेड नहीं मिलने की स्थिति में जमीन पर लेटा दिखा।

Posted By: Inextlive