सिटी के किसी थाने में नहीं है साइबर डेस्क. थाने में तैनात पुलिस वालों को साइबर अपराध की प्रोपर ट्रेनिंग भी नहीं. पीडि़तों को लगाना पड़ता है साइबर सेल का चक्कर. थाना में आवेदन लेकर भेज दिया जाता है साइबर सेल. हर महीने राजधानी में 80 से ज्यादा मामले आते हैैं ठगी के.


रांची(ब्यूरो)। सिटी में साइबर अपराध के शिकंजे में फंसने वालों की तादाद तेजी से बढ़ रही है। हर दिन कोई न कोई व्यक्ति साइबर ठगी का शिकार होता है। थाने में मामले भी पहुंचते हैैं, लेकिन पीडि़त व्यक्ति को लोकल थाने से कोई मदद नहीं मिलती है। सिर्फ आवेदन रख लिया जाता है और पीडि़त को साइबर सेल जाने की सलाह दे दी जाती है। इस तहर पहले से पीडि़त व्यक्ति सिस्टम की लचर व्यवस्था के आगे घूमता रहता है। दरअसल, राजधानी के पुलिस स्टेशन में अब तक साइबर ठगी से निपटने के लिए स्पेशल साइबर डेस्क बनाया ही नहीं गया है। पुलिस स्टेशन के पुलिसकर्मी उतने दक्ष भी नहीं कि साइबर अपराध के मामले को खुद को ही सुलझा दें। इन पुलिसकर्मियों को साइबर अपराधियों से निपटने की ट्रेनिंग भी नही दी गई है। इस कारण कोई व्यक्ति जब अपनी समस्या लेकर थाना आता है, तो उसे साइबर सेल जाने की सलाह देकर पुलिसकर्मी कन्नी काट लेते हैं। कई तरह के साइबर क्राइम
लोगों के खातों में सेंध लगाने, ओटीपी शेयर कर रुपए उड़ाने, लिंक भेजकर खातों से रुपए उड़ाने, नौकरी, लौटरी के नाम पर ठगी, सोशल साइट्स पर फर्जी आईडी बनाने, अश्लील आपत्तिजनक टिप्पणी जैसे असंख्य मामले अक्सर सामने आते रहते हैैं। साइबर अपराधियों को पकडऩे में पुलिस को भी यदा-कदा सफलता मिलती रहती है। लेकिन पुलिस सिर्फ छोटे खिलाडिय़ों को ही पकड़ पाती है। इसका मास्टर माइंड पुलिस की गिरफ्त से दूर ही रहता है। वह नए-नए बेरोजगार युवकों को ट्रेनिंग देकर अपराध के दलदल में ढकेलता रहता है। हर महीने 80 मामले राजधानी रांची में औसतन 80 मामले हर महीने साइबर ठगी के सामने आते हैं। पिछले पांच वर्षों के भीतर अलग-अलग साइबर थानों सहित अन्य थानों में साइबर फ्रॉड के पांच हजार से ज्यादा मामले दर्ज हुए हैं। इनमें सबसे ज्यादा 1491 मामले रांची में दर्ज हुए हैं। इसमें 50 करोड़ से अधिक की राशी ठगी की गई है। ये आंकड़े वैसे हैं, जिनपर एफआईआर हुए, लेकिन हजारों मामले वैसे हैं जो केवल जांच तक सिमटे हुए हैं। फाइलें खुलती गईंसाइबर ठगी के मामले तो दर्ज हो रहे, लेकिन अपराधियों को पकडऩे में पुलिस काफी पीछे है। हालांकि, हाल के दिनों में प्रतिबिंब ऐप की मदद से पुलिस अपराधियों को पकड़ कर सलाखों के पीछे भेजने मेें सफल रही है। इससे कहीं न कहीं साइबर अपराध में थोड़ा-बहुत असर जरूर पड़ा है। लेकिन साइबर अपराधी लोगों को ठगने का हर दिन कोई न कोई नया फार्मूला तैयार करते रहते हैं।


कोतवाली में भी एक्टिव नहींसाइबर क्राइम की बढ़ती चुनौती से निपटने के लिए सभी थानों में साइबर डेस्क बनाने का निर्णय लिया गया था। लेकिन यह सिर्फ कागज में ही सिमट कर रह गया। कोतवाली थाना में एक साइबर डेस्क जरूर बनाया गया था। लेकिन यह भी डिएक्टिव है। इस बारे में ज्यादातर लोगों को पता तक नहीं है। वहीं साइबर डेस्क में कभी कोई पुलिस कर्मी मौजूद भी नहीं रहता है। अन्य किसी भी पुलिस स्टेशन में साइबर डेस्क नहीं है। सभी थाना में साइबर डेस्क बनने से साइबर क्राइम के पीडि़त व्यक्ति को इधर-उधर भटकने की जरूरत नहीं होती। वो अपने नजदीकी थाने में ही साइबर डेस्क पर शिकायत कर सकता था। फिलहाल पीडि़त सभी व्यक्ति को कचहरी स्थित साइबर सेल भेज दिया जाता है।

रांची समेत आठ जिलों के लिए साइबर अपराध थाना सृजित किया गया है। प्रत्येक थाने में संबंधित जिले में कार्यरत डीएसपी मुख्यालय को वहां का थाना प्रभारी बनाया जाएगा। आवश्यकता पडऩे पर जिला में उपलब्ध पुलिस निरीक्षकों को साइबर अपराध थाना में प्रतिनियुक्ति, पदस्थापन या अतिरिक्त अनुसंधानकर्ता के रूप में प्रतिनियुक्त करने के लिए वहां के एसपी सक्षम होंगे। -अनुराग गुप्ता, डीजी, सीआईडी

Posted By: Inextlive