रांची: कोरोना महामारी ने कई ऐसे बच्चों के माता-पिता को उनसे छीन लिया है जो पहले अपने पेरेंट्स के साथ रहते थे। इस महामारी ने उन्हें अकेला कर दिया है। अब न तो उनके माता रहे हैं और न ही पिता। माता और पिता दोनों की मृत्यु कोरोना के कारण हो गया। रांची जिले में 238 ऐसे बच्चे हैं, जिनके पेरेंट्स नहीं रहे। इनमें से कई बच्चे ऐसे भी हैं जिनके दोनों पेरेंट्स नहीं हैं तो कई बच्चे ऐसे हैं जिनके एक पेरेंट्स बचे हुए हैं। रांची जिला प्रशासन ऐसे बच्चों की पूरी मदद कर रहा है। डीसी छवि रंजन ने बताया कि जिला प्रशासन उन बच्चों को पूरी सहायता उपलब्ध करा रहा है, जिन्होंने अपने पेरेंट्स को खोया है।

रांची के डीसी छवि रंजन से सीधी बातचीत

सवाल: जिनके पेरेंट्स नहीं रहे, उनको क्या मदद मिलेगी?

जवाब: ऐसे बच्चे जिनके पेरेंट्स नहीं रहे उसकी जानकारी मिलते ही जिला प्रशासन सीडब्ल्यूसी के साथ मिलकर काम करना शुरू कर देता है। इस कोरोना महामारी में जिन बच्चों के पेरेंट्स नहीं बचे और उनका कोई भी नहीं है उनको तत्काल सुविधाएं देने के लिए निवारणपुर स्थित आदिम जनजाति संघ में एक शेल्टर होम बनाया गया है। जहां बच्चों के भोजन और मनोरंजन की पूरी सुविधा उपलब्ध कराई गई है। कोई भी बच्चा जिसके पेरेंट्स नहीं हैं और उसको रहने खाने-पीने में दिक्कत हो रही है तो उन्हें इस जगह पर रखा जाता है और उनको घर वाला माहौल दिया जा रहा है।

सवाल: उन बच्चों को क्या आर्थिक मदद मिलेगी?

जवाब: जब तक बच्चे बालिग नहीं होंगे 2000 रुपए हर महीने दिए जाएंगे। कई ऐसे बच्चे भी हैं जिनके दोनों पेरेंट्स नहीं हैं, लेकिन दादा-दादी या चाचा-चाची या मामा-मामी कोई भी रिश्तेदार है जो उन बच्चों को रखने को तैयार होते हैं या बच्चे उनके साथ ही रहने को तैयार होते है। उनको राज्य सरकार की ओर से तय की गई राशि जो 2000 रुपए है वह हर महीने दी जाएगी। यह पैसा उनको तब तक दिया जाएगा जब तक वो 18 साल की उम्र पूरी न कर लें।

सवाल: ए से बच्चों की पढ़ाई की व्यवस्था क्या होगी?

जवाब: ऐसे बच्चे जिनको वर्तमान में निवारणपुर में रखा जा रहा है, उनके पढ़ने-लिखने, खेलने-कूदने की व्यवस्था भी जिला प्रशासन सरकार के दिशा-निर्देशों के अनुसार करेगा। ऐसे बच्चों को कस्तूरबा स्कूल या जो भी सरकारी स्कूल हैं, वहां एडमिशन कराया जाएगा। उनके पढ़ने की व्यवस्था जिला प्रशासन अपनी देखरेख में करेगा।

सवाल: 2000 रुपए बच्चों को कैसे दिए जाएंगे? बच्चे तो छोटे हैं?

जवाब: सरकार के दिशा-निर्देश के अनुसार जो बच्चे अनाथ हैं, और वे अपने रिश्तेदारों के घर में ही रहना चाहते हैं, उनको उनके रिश्तेदार के अकाउंट में जोड़ा जाता है। उन रिश्तेदारों के अकाउंट में ही वह पैसा उपलब्ध कराया जाएगा। रिश्तेदार ऐसे बच्चों को उनकी जरूरत की सभी तरह की सुविधाएं उपलब्ध कराएंगे। क्योंकि जो अनाथ बच्चे हैं वो बहुत छोटे हैं, उनका अकाउंट नहीं खुल सकता है, इसलिए उनके रिश्तेदार के अकाउंट में उनको जोड़ा जाता है।

सवाल: ि1जला प्रशासन कैसे पता करती है कि बच्चे अनाथ हुए हैं?

जवाब: जिला प्रशासन सीडब्ल्यूसी के साथ मिलकर बच्चों के संरक्षण के लिए काम करता है। सीडब्ल्यूसी के पास जिला प्रशासन और दूसरे कई सोर्स के माध्यम से अनाथ हुए बच्चों की जानकारी मिलती है। उसके बाद जिला प्रशासन और सीडब्ल्यूसी की टीम उन बच्चों की सोशल इन्वेस्टिगेशन रिपोर्ट बनाती है। उसके बाद नीड बेस एसेसमेंट रिपोर्ट तैयार की जाती है। यह देखा जाता है कि बच्चों के बारे में जानकारी देने वाला व्यक्ति कौन है। जिन बच्चों के बारे में जानकारी दी गई है उनका परिवारिक इतिहास क्या है। उनके पेरेंट्स की कैसे मृत्यु हुई, उन बच्चों का भविष्य क्या है। ये सारी चीजें एक प्रॉसेस के तहत की जाती है। जब पूरा प्रॉसेस कंप्लीट हो जाता है उसके बाद बच्चों को सभी तरह की सुविधाएं उपलब्ध कराई जाती हैं।

Posted By: Inextlive