रांची: रिम्स में मरीजों को बेहतर डाइट उपलब्ध कराने के उद्देश्य से प्रबंधन ने एजेंसी को टेंडर के माध्यम से हायर किया। इसके बाद एजेंसी ने मरीजों को पैक्ड खाना उनके बेड तक पहुंचाने की शुरुआत की, जिसमें मरीजों को डाइट तो विटामिन प्रोटीन वाला दिया जा रहा है, लेकिन खाना पैक करने के लिए प्लास्टिक का यूज किया जा रहा है। इससे साफ है कि मरीज अपनी बीमारी का तो इलाज करा लेंगे। लेकिन लगातार प्लास्टिक में पैक खाना खाने से उन्हें दूसरी बीमारी चपेट में ले लेगी। इसे हटाने को लेकर तत्कालीन डायरेक्टर डॉ डीके सिंह ने भी एजेंसी को आदेश दिया था, पर उनके जाते ही यह आदेश भी ठंडे बस्ते में चला गया। बताते चलें कि प्लास्टिक के इस्तेमाल पर सरकार ने बैन लगा रखा है।

मरीजों को होगा नुकसान

हॉस्पिटल में एडमिट मरीजों को एजेंसी तीन टाइम डाइट उपलब्ध कराती है, जहां मरीजों को खाना प्लेट में डालकर उसे प्लास्टिक से पैक कर दिया जाता है। वहीं खाना गर्म होने के कारण प्लास्टिक का भी अंश उस खाने में जाता है। वहीं जाने-अनजाने मरीज की डाइट के साथ उनके शरीर में जा रहा है, जिसका नुकसान मरीजों को भविष्य में झेलना पड़ सकता है। चूंकि कई मरीज हॉस्पिटल में लंबे समय तक इलाज के लिए एडमिट रहते हैं।

पहले ढक्कन वाले प्लेट में खाना

एजेंसी ने जब रिम्स में शुरुआत की तो उस समय मरीजों को ढक्कन वाले प्लेट में खाना दिया जाता था। लेकिन जैसे-जैसे समय बीतता गया तो एजेंसी ने प्लेट के ढक्कन हटा दिए। उसकी जगह पैकिंग प्लास्टिक ने ले ली। अब लंबे समय से प्लास्टिक में पैक कर खाना ही मरीजों को परोसा जा रहा है। वहीं कोरोना मरीजों को तो प्लास्टिक के डिस्पोजेबल बर्तन में खाना दिया जा रहा है।

विकल्प ढूंढने को कहा था

तत्कालीन डायरेक्टर ने प्लास्टिक को लेकर मिली शिकायत के बाद एजेंसी को प्लास्टिक का विकल्प ढूंढ्ने का आदेश दिया था। साथ ही कहा था कि इसे तत्काल बदला जाए। चूंकि मरीजों की सेहत के साथ कोई समझौता नहीं किया जाएगा। इसके बाद एजेंसी ने हामी भर दी थी। लेकिन महीनों बीतने के बाद भी विकल्प नहीं मिला। वहीं मरीजों की डाइट का ध्यान रखने वाले अधिकारियों ने भी इस पर गंभीरता नहीं दिखाई।

मॉनिटरिंग कमिटी का भी ध्यान नहीं

मरीजों की डाइट की प्रापर मॉनिटरिंग के लिए एक कमिटी का गठन किया गया था, जिसका उद्देश्य मरीजों की डाइट की निगरानी करना है। वहीं क्वालिटी की भी समय-समय पर जांच की जाएगी और प्रबंधन को रिपोर्ट भी सौंपी जाएगी। लेकिन समय बीतने के साथ ही कमिटी भी सुस्त पड़ गई, जिसका खामियाजा इलाज करा रहे मरीजों को भुगतना पड़ सकता है।

Posted By: Inextlive