छ्वन्रूस्॥ष्ठष्ठक्कक्त्र : देशभर में सीजेरियन से हो रही डिलीवरी पर भले ही सवाल उठ रहे हों लेकिन इसके कई लाभ भी हैं। अब एक किलो के नवजात को भी आसानी से बचा लिया जाता है। जबकि सामान्य प्रसव में उसे बचाना काफी मुश्किल होता है। यह बातें रविवार को बिहार के मुजफ्फरपुर से आईं स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ। रंगीला सिन्हा ने कहीं। मौका था जमशेदपुर ऑब्स्ट्रेटिक एंड गायनाकोलॉजिकल सोसायटी के 44वां वार्षिक सम्मेलन के समापन समारोह का। इस मौके पर डॉ। रंगीला सिन्हा ने कहा कि सीजेरियन सिर्फ डॉक्टर के मर्जी से नहीं होता, बल्कि अभिभावक का भी दबाव होता है।

सामान्य डिलीवरी में ज्यादा समय

सामान्य डिलीवरी में समय अधिक लगता है जो कि सरकारी अस्पतालों में होता भी है। उन्होंने कहा कि पहले एक लाख में से 700 गर्भवती व प्रसव के बाद महिलाओं की मौत होती थी लेकिन अब इसमें तेजी से सुधार आया है। इसे रोकने में सरकार काफी सफल रही है। महिलाएं भी जागरूक हुईं हैं। वह खुद जांच कराने पहुंच रहीं हैं। इस अवसर पर जमशेदपुर ऑब्स्ट्रेटिक एंड गायनाकोलॉजिकल सोसाइटी के अध्यक्ष डॉ। इंदू चौहान, डॉ। विनिता सहाय, डॉ। अंजू बाजोरिया, डॉ। रेणुका चौधरी, डॉ। मंजूला श्रीवास्तव, डॉ। अनीता सिंह, डॉ। प्रतिभा, डॉ। ¨हमाशु राय, डॉ। पल्लवी राय, डॉ। मौसमी दास गुप्ता सहित सौ से अधिक स्त्री रोग विशेषज्ञ उपस्थित थीं।

तो मृत्यु दर होगा कम

अंडमान और निकोबार से आए डॉ। एमके साहा ने कहा कि मातृत्व मृत्यु दर व शिशु मृत्यु दर पर अंकुश पाने के लिए पंजीकरण होना आवश्यक है। अंडमान और निकोबार में सौ फीसद महिलाओं का पंजीकरण होता है और इसी का नतीजा है कि वहां बेहतर परिणाम देखने को मिल रहा है। उन्होंने कहा कि वर्ष 2013 में एक लाख गर्भवती में से सिर्फ 18 की मौत हुई थी। जबकि देशभर में यह आंकड़ा 250 से भी अधिक है।

सीजेरियन पर होता दोगुना खर्च

डॉ। एमके साहा ने कहा कि सीजेरियन डिलवरी पर दोगुना खर्च आता है लेकिन सबकुछ फटाफट हो जाता है। गर्भवती को न तो दर्द बर्दाश्त करने की आवश्यकता होती है और न ही किसी तरह का रिक्स होता है। उन्होंने कहा कि सामान्य प्रसव बेबी के लिए दिक्कत पैदा करती है जबकि सीजेरियन मां के लिए।

Posted By: Inextlive