कुख्‍यात चंदन तस्‍कर वीरप्‍पन एक समय आतंक का पर्याय बन चुका था। वीरप्पन का एनकाउंटर करने वाली टीम को लीड करने वाले की कहानी भी कुख्यात चंदन तस्कर से बिलकुल कम नहीं है। वीरप्पन तक पहुंचने के लिए तीन राज्यों की पुलिस को करीब 30 सालों तक नाकों चने चबाने पड़े लेकिन फिर भी वो वीरप्‍पन तक नहीं पहुंच सके। फाइनल ऑपरेशन 'कोकून' लीड करने वाले आईपीएस के. विजयकुमार ने तो कसम ली थी कि वे जब तक उसे पकड़ नहीं लेंगे तब तक अपने सिर के बाल नहीं मुड़वाएंगे।


तीस सालों तक छानी तीन राज्यों की खाक एक इंटरव्यू के दौरान आईपीएस ऑफीसर विजय कुमार ने बताया है कि वीरप्पन को मारना उनका जुनून बन गया था। इसके लिए उन्होंने बन्नारी अम्मान मंदिर में व्रत भी लिया था। उन्होंने कसम खाई थी कि जब तक वीरप्पन खात्म नहीं हो जाता है तब तक वह अपने सिर के बाल नहीं मुड़वायेंगे। 1990 में कर्नाटक और तमिलनाडु सरकार ने उसे पकड़ने के लिए एक विशेष पुलिस दस्ते एसटीएफ का गठन किया था। विजयकुमार के मुताबिक वीरप्पन की तलाश में वह 1994 में पहली बार गये थे। 2001 में छह महीने के लिए दूसरी बार वह उसकी तलाश में गए। उस समय विजय कुमार ने अपने मिशन की सफलता के लिए मंदिर में प्रार्थना भी की थी। 2004 में एनकाउंटर में मारा गया था वीरप्पन


विजय कुमार ने बताया था कि उन्हें वीरप्पन की तलाश कई सालों से थी। पर वह हाथ नहीं आ रहा था। वीरप्पन का एनकाउंटर करने के बाद उन्होंने बन्नारी अम्मान मंदिर जाकर मुंडन कराया थी। वीरप्पन को 18 अक्टूबर 2004 को तीन साथियों के साथ तमिलनाडु के धरमपुरी जिले में आने वाले पपरापत्ति जंगल में एनकाउंटर में मारा दिया गया था। आईपीएस विजय कुमार ने बताया कि उस वक्त रणनीति यह बनी कि दुश्मन को मारने के लिए दुश्मन का ही सहारा लेना होगा। वीरप्पन कितना चालाक है। उसकी क्या योजना है। वह किन-किन बातों का ध्यान रखता है। इसकी सारी जानकारी उन्हें अपने मुखबिरों से मिलती थी। 900 से ज्यादा हाथियों को वीरप्पन ने उतरा था मौत के घाटविजय कुमार का जन्म 15 सितंबर 1950 को हुआ था। उनके पिता कृष्णन नायर एक रिटायर्ड पुलिस अफसर थे। वह अपनी मां कौशल्या के दूसरे बेटे हैं। तंजावुर में विजय के शुरुआती दिन बीते। इन्होंने सेंट जोसेफ कॉलेज तिरुचिरापल्ली से ग्रैजुएशन और मद्रास क्रिश्चियन कॉलेज से पोस्ट ग्रैजुएशन की पढाई की। के विजय कुमार को पुलिस की वर्दी शुरुआत से ही आर्कषित करती थी। वह बचपन से अपने पुलिस अफसर पिता से इंस्पायर्ड थे। यही वजह थी कि उन्होंने आईपीएस बनने की ठानी थी। वीरप्पन ने तमिलनाडु, कर्नाटक और केरल के जंगल में 900 से ज्यादा हाथियों को मार डाला था।तमिलनाडु कैडर में आईपीएस अधिकारी थे के विजय कुमार

चेन्नई के के विजय कुमार 1975 में तमिलनाडु कैडर में आईपीएस बने। इसके बाद उन्होंने स्पेशल सिक्युरिटी ग्रुप एसएसजी में सर्विस की। जब वह स्पेशल टास्क फोर्स में पोस्टेड थे तब उन्हें चंदन तस्कर वीरप्पन को ठिकाने लगाने के मिशन का चीफ बनाया गया था। वीरप्पन को काबू करने के लिए जो ऑपरेशन चले उनपर करीब 20 करोड़ रुपए से ज्यादा का खर्च आया।  तीन दशक तक तमिलनाडु, कर्नाटक और केरल के जंगल में आतंक का पर्याय रहा डकैत वीरप्पन के जीवन पर राम गोपाल वर्मा के डायरेक्शन में बनी फिल्म 'वीरप्पन' 27 मई को रिलीज़ होने वाली है।

Posted By: Prabha Punj Mishra