काल भैरव अष्टमी 7 दिसंबर को मनाई जा रही है। इस दिन काल भैरव की पूजा करने से सारी बाधांए दूर होती हैं। कुछ लोग व्रत भी रखते हैं। आइए जानें व्रत विधान और शुभ-मूहूर्त।

कानपुर (इंटरनेट डेस्क)। पुराणों के मतानुसार मार्गशीष कृष्णाष्टमी को मध्यान्ह के समय भगवान शंकर के अंश से भैरव जी की उत्पत्ति हुई थी। इसलिए मध्यान्ह व्यापिनी/प्रदोष व्यापिनी अष्टमी तिथि लेनी चाहिए।धर्म सिंधु के अनुसार यदि अष्टमी पहले दिन केवल प्रदोष व्यापिनी हो,तो अधिकांश ग्रंथों के अनुसार पहले दिन प्रदोष व्यापिनी अष्टमी वाले दिन यह पर्व मनाना चाहिए। इस बार भैरवाष्टमी दिनाँक 7 दिसम्बर 2020,सोमवार को मनाई जाएगी।

यह है शुभ-मूहूर्त
दिनाँक 7 दिसम्बर 2020 को सांय 6:48 बजे से अष्टमी तिथि आरम्भ होगी जोकि अगले दिन सांय 5:18 बजे तक ही रहेगी।इस दिन अपराह्न 2:32 बजे तक मघा नक्षत्र रहेगा तदोपरांत पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र आरम्भ होगा,जोकि अगले दिन तक रहेगा।अतएव शास्त्र प्रमाणानुसार प्रदोष व्यापिनी अष्टमी के दिन 7 दिसम्बर 2020 को ही मनाई जाएगी।अत: यह दिन "भैरवाष्टमी" के रूप में उत्सव के समान मनाया जाता है। शिव पुराण की शतरूद्र संहिता के अनुसार परमेश्वर सदाशिव ने मार्गशीष के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को भैरव रूप में अवतार लिया था। अत: उन्हें साक्षात् भगवान शंकर ही मानना चाहिए। पुराणों के अनुसार भैरव भगवान शिव का दूसरा रूप हैं, भैरव का अर्थ भयानक तथा पोषक दोनों हैं, इनसे काल भी सहमा रहता है। इसलिए इन्हें "काल भैरव" कहा जाता है। अत: रात्रि काल में भी पूजन करना एवं राहू की शांति के लिए जाप करना श्रेष्ठ रहेगा।

व्रत विधान
यह व्रत बड़ा ही श्रेष्ठ माना जाता है, इस दिन व्रत रखकर जल अध्र्य देकर भैरवजी के वाहन सहित उनका पूजन करना चाहिए। इस दिन चारों पहरों में सुबह, दोपहर, सांयकाल एवं रात्रिकाल में भगवान भैरवजी का पूजन करना चाहिए, दिन में भैरव जी के मंत्र "ऊँ भं भैरवाय नम:" का जाप करना चाहिए और भैरव सहस्त्र नाम तथा भैरव देव के चालीसों का पाठ करना चाहिए। रात्रि को जागरण करके भगवान शिव जी एवं भैरव देव जी की कथाओं का पाठ एंव श्रवण करना चाहिए, मध्य रात्रि में शंख, घण्टा, नगाड़ा आदि बजाकर काल भैरव जी की आरती करनी चाहिए।

भैरव जी की पूजा से राहू ग्रह होते शान्त
भगवान शिव के दो रूप हैं - भैरव नाथ एवं विश्व नाथ। एक रूप तो अत्यन्त विकराल, रौद्र, भयानक, प्रचण्ड तथा दूसरा रूप अत्यन्त शील, करूण, शान्त, सौम्यता का प्रतीक है। पहला रूप पापी, धर्मद्रोही तथा अपराधियों को दण्ड देने के लिए है तथा दूसरा रूप सौम्य रूप जगत की रक्षार्थ माना जाता है। भैरव जी का दिन रविवार तथा मंगलवार माना जाता है, क्योंकि इस दिन इनकी पूजा करने से भूत-प्रेत, बाधायें समाप्त हो जाती हैं, पुराणों के मतानुसार इस दिन गंगा स्नान एवं पितृों का तर्पण व श्राद्ध करने के पश्चात काल भैरव की पूजा करने से सालभर के लिए लौकिक एवं परलौकिक विघ्न टल जाते हैं और उपासक की आयु बढ़ती है। इस दिन भैरव जी की थोड़ी पूजा-उपासना से ही प्रसन्न होकर भक्त की सभी मनोकामनाओं की पूर्ति कर देते हैं। इस दिन भैरव के वाहन श्वान (कुत्ते) का पूजन करके श्वान समूह को दूध, दही, मिठाई आदि पिलानी चाहिए। इस दिन किसी असहाय व्यक्ति को शराब की बोतल दान देने से भैरव जी अति प्रसन्न होते हैं। भैरव जी की पूजा से राहू ग्रह शान्त होता है।

महाकालभैरव विशिष्ट मंत्र निम्न है:-
ॐ हं ष नं गं कं सं खं महाकालभैरवाय नमः

ज्योतिषाचार्य पं राजीव शर्मा।
बालाजी ज्योतिष संस्थान,बरेली।

Posted By: Abhishek Kumar Tiwari