दिनांक19 नवंबर 2019 मंगलवार को त्रिशुभ योग में करें कालभैरव पूजन राहू को शान्त करने के लिए काल भैरव की पूजा करें...


पूजन समय1. मध्यान्ह 2:44 बजे से अपराह्न 4:04 बजे तक2. सांय 7:02 बजे से रात्रि 8:43 बजे तकमार्गशीर्ष कृष्ण अष्टमी काल भैरव अष्टमी के रूप में मनाई जाती है।इस दिन भगवान शिव ने काल भैरव के रूप में जन्म लिया था।काल भैरव भगवान शिव का अत्यंतरौद्र भयानक विकराल एवं प्रचंड स्वरूपहै।
पुराणों के अनुसार भैरव भगवान शिव के ही दूसरे रूप हैं।इस दिन दोपहर के समय शिवजी के प्रिय गण भैरवनाथ का जन्म हुआ था।इसलिए इसमें मध्यान्ह कालीन व्याप्त तिथि मानी जाती है।दिनांक 19 अक्टूबर 2019,मंगलवार को अपराह्न 3:36 बजे तक सप्तमी तिथि रहेगी इसके उपरांत अष्टमी तिथि आरम्भ होगी जोकि अगले दिन दोपहर तक रहेगी।इस बार मंगलवार के साथ कई शुभ फल प्रद योगों अर्थात आनंद,ब्रह्म, अमृत एवं सर्वार्थसिद्धि योगों का होना विशेष शुभ फलदायी है क्योंकि भैरव जी का दिन रविवार तथा मंगलवार माना जाता है। इस दिन इनकी पूजा करने से भूत-प्रेत बाधाएं दूर होती हैं।इसलिए पड़ा काल भैरव नाम


भैरव से काल भी भयभीत रहता है,इसलिए इन्हें कालभैरव के नाम से भी जाना जाता है।भैरव अष्टमी के व्रत को गणेश विष्णु यम चन्द्रमा कुबेर आदि ने किया था।इसी व्रत के प्रभाव से भगवान विष्णु लक्ष्मी के पति बने,यह सब कामनाओं को देने वाला सर्वश्रेष्ठ व्रत है। जो इस व्रत को निरंतर करता है,महा पापों से छूट जाता है।ऐसी मान्यता है कि भैरव अष्टमी के दिन प्रातः काल स्नान कर पितरों का श्राद्ध और तर्पण करने के उपरांत यदि काल भैरव की पूजा की जाये तो उससे उपासक के वर्ष भर के सारे विघ्न टल जाते हैं।उसे लौकिक परलौकिक बाधाओं से मुक्ति मिलती है।पूजन विधिइस दिन प्रातः काल स्नानादि से निवृत होकर तर्पण कर प्रत्येक पहर में काल भैरव एवं शिव शंकर भोलेनाथ का विधिवत पूजन करके तीन बार अर्ध्य दें।अर्द्ध रात्रि में शंख,घंटा, नगाड़ा आदि बजाकर कालभैरव की आरती करें।सम्पूर्ण रात्रि जागरण करें।भगवान भैरव का वाहन श्वान, कुत्ता माना जाता है इसलिये उसका पूजन करें।दूध पिलाएं एवं मिठाई खिलाएं।व्रत कथा:-एक बार ब्रह्मा एवं विष्णु में विवाद हो गया कि विश्व का कारण एवं परम तत्व कौन है? दोनों अपने को विश्व का नियंता तथा परम तत्व कहने लगे।विवाद बढ़ने पर इसका निर्णय महऋषियों को सौंप दिया गया।महृषियों ने वेद शास्त्रों का चिंतन- मनन करके तथा विचार-विमर्श करके निर्णय दिया।कथा-जब भोलेनाथ ने धरा भैरव रूप

वास्तव में परम तत्व कोई अव्यक्त सत्ता है विष्णु एवं ब्रह्मा उसी बिभूति से बने हैं।दोनों में उसी के अंश विद्धमान हैं।भगवान विष्णु ने तो यह बात स्वीकार कर ली थी परंतु ब्रह्माजी को यह मान्य नहीं हुआ।वे महृषियों की अवज्ञा करके सभी अब भी अपने को सर्वोपरि तथा सृष्टि नियंता घोषित कर रहे थे।परम तत्व की अवज्ञा बहुत बड़ा अपमान था।यह भगवान शंकर को स्वीकार नहीं हुआ।उन्होंने तत्काल भैरव रूप धारण कर ब्रह्मा जी का गर्व चूर कर दिया।उस दिन मार्गशीर्ष की कृष्णष्टमी थी,इसलिए इस दिन को पर्व के रूप में मनाया जाता है,काल भैरव की शरण में जाने से मृत्युभय समाप्त हो जाता है।विशेष: इस दिन भैरव के वाहन श्वान का पूजन करके श्वान समूहों को दूध,दही,मिठाई आदि खिलानी चाहिए।-ज्योतिषाचार्य पंडित राजीव शर्माबालाजी ज्योतिष संस्थान,बरेलीKaal Bhairav Jayanti 2019: पापों से मुक्ति के लिए इस दिन रखें व्रत व करें इस मंत्र का जाप

Posted By: Vandana Sharma