Kaamyaab Movie Review: अंदाज अपना अपना वाले भल्ला और रोबर्ट जिन्होंने लोगों को हंसा- हंसा कर लोट- पोट कर दिया। उनके रियल नेम से किसका वास्ता। सीधे तौर पर कहें तो बॉलीवुड के ऐसे ही तमाम एक्स्ट्रा साइड एक्टर और सोफिस्टिकेटेड तरीके से कहें तो कैरेक्टर आर्टिस्ट की जिन्दगी में पहली बार किसी फिल्म मेकर ने कोशिश की है झांकने की लेकिन वह उस जीवंत चित्रण करने में असफल रहे हैं। पढ़ें पूरा रिव्यु

फिल्म : कामयाब

कलाकार : संजय मिश्रा, दीपक डोबरियाल

निर्देशक : हार्दिक मेहता

Kaamyaab Movie Review: यह फिल्म एक्टिंग के आलू की है। अब आप सोचेंगे कि ये किस चिड़िया की बात कर रहे, तो हम सही ही कह रहे। फिल्मों में साइड एक्टर्स एक आलू की तरह ही होते हैं जो हर सब्जी यानि लीड एक्टर्स के साथ खप जाते हैं। शोले के उस लोकप्रिय संवाद में बार- बार जिक्र होने वाले सांबा का रियल नाम आज भी कितनों को याद है। कितने लोगों को यह पता है कि शराबी का सबसे शानदार किरदार निभाने वाले केस्टो मुखर्जी ने रियल लाइफ में कभी शराब को हाथ भी नहीं लगाया। अंदाज अपना अपना वाले भल्ला और रोबर्ट जिन्होंने लोगों को हंसा- हंसा कर लोट- पोट कर दिया। उनके रियल नेम से किसका वास्ता। सीधे तौर पर कहें तो बॉलीवुड के ऐसे ही तमाम एक्स्ट्रा, साइड एक्टर और सोफिस्टिकेटेड तरीके से कहें तो कैरेक्टर आर्टिस्ट की जिन्दगी में पहली बार किसी फिल्म मेकर ने कोशिश की है झांकने की लेकिन वह उस जीवंत चित्रण करने में असफल रहे हैं। पढ़ें पूरा रिव्यु

क्या है कहानी

एक कैरक्टर आर्टिस्ट है जिसने अपनी जिन्दगी में 499 फिल्मों में काम कर लिया है। वह खुद को आलू मानते हैं जो कि हर फिल्म में छोटे-मोटे किरदार में खप जाते हैं। सुधीर उर्फ बांकेलाल ऐसे ही एक कैरेक्टर आर्टिस्ट हैं जो चकाचौंध से दूर अपनी एक रूम किचन की जिन्दगी में खुश है। वह दुनिया से कट चुका है। अचानक उसे एक जानकारी मिलती है कि उसने 499 फिल्मों में काम कर लिया है। उसको फितूर चढ़ता है कि उसे इस रिकॉर्ड को पूरा करना है। वह काम की तलाश में निकलता है। अब दौर बदल गया है। कास्टिंग डायरेक्टर आ चुका है बाजार में और उसके जैसे एक दो दृश्यों को करने के लिए भी हजारों की लाइन है। ऐसे में वह किस तरह इस दुनिया में खुद की जगह बनाता है और अपने वजूद की तलाश करता है। यही फिल्म का केंद्र पॉइंट हैं। एक कैरेक्टर आर्टिस्ट को तालियां तो मिलती हैं लेकिन उनके नाम का वजूद नहीं। बस उसी जिन्दगी को उकेरने की कोशिश है।

क्या है अच्छा

कंसेप्ट के लिहाज से बेहतरीन है। संजय मिश्रा और शेष कलाकारों का अभिनय भी उम्दा है। हिंदी फिल्म की दुनिया के उन तमाम लोकप्रिय कैरेक्टर जिन्हें आप कभी उनके नाम से नहीं सिर्फ कैरेक्टर नाम से जानते हैं। उन सभी के लिए यह बेहतरीन श्रधान्जली है। लगभग सभी की झलक और कैमियो फिल्म को खास बनाती है। फिल्म का क्लाइमेक्स शानदार गढ़ा गया है। फिल्म का संवाद एन्जाॅइंग लाइफ और ऑप्शन क्या है? फिल्म का पूरा मर्म समझा देता है।

क्या है बुरा

फिल्म का ट्रीटमेंट बेहद स्लो है। फिल्म एक कैरेक्टर आर्टिस्ट की जिन्दगी के उन पहलुओं को छूने में नाकामयाब होती है जिससे उनकी जिन्दगी के और भी दर्द निकल के सामने आये। घटनाएं बेहद कम हैं। फिल्म नाटकीय रूपांतर अधिक थी। मनोरंजन का जो दावा निर्देशक ने किया था। उस पर खरे नहीं उतरे। संजय मिश्रा के अलावा किसी भी किरदार में विस्तार नहीं।

अदाकारी

नि: संदेह संजय मिश्रा ने अपने किरदार को जीवंत तरीके से जिया है। दिक्कत दीपक के किरदार के साथ है। उनके पास करने के लिए कुछ खास था ही नहीं। बाकी शेष कलाकारों ने ठीक अभिनय किया है।

वर्डिक्ट

फिल्म एक सीमित वर्ग को पसंद आएगी। फेस्टिवल में दर्शक अधिक पसंद करेंगे। फिल्म का बॉक्स ऑफिस पर कामयाब होना मुश्किल है।

बॉक्स ऑफिस : 5 करोड़

रेटिंग : 2.5 स्टार

Reviewed by Anu

Posted By: Vandana Sharma