- 'काली' समेत पश्चिमी यूपी की नदियां बेहद प्रदूषित

- मुख्यमंत्री ने दिया काली को साफ कराने का आश्वासन

- कई जिलों को कर रहीं प्रभावित, पीने लायक नहीं पानी

ashok.mishra@inext.co.in

LUCKNOW: पश्चिमी यूपी को दुनिया का सबसे उपजाऊ इलाका माना जाता है। इसकी वजह है कि पश्चिमी यूपी के जनपदों में छोटी-बड़ी नदियों का जाल बिछा है। पिछले चार दशकों के दौरान आधुनिकता की दौड़ की शिकार ये नदियां भी बनीं। इनका पानी खेतों के साथ लोगों की सेहत भी बिगाड़ रहा है। अवैध स्लॉटर हाउस, शुगर मिल व अन्य उद्योग अपना कचरा नदियों में बहा रहे हैं, नतीजतन, पानी पीने लायक नहीं बचा है। मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने रविवार को केन्द्रीय जल संसाधन मंत्री उमा भारती से मुलाकात के दौरान 'काली' नदी को साफ कराने का आश्वासन दिया। मंत्रालय भी ठोस पहल कर रहा है। पश्चिमी उप्र की नदियों की हालात का जायजा लेने वाली स्वयंसेवी संस्था 'नीर फाउंडेशन' की हालिया रिपोर्ट बताती है कि किस तरह उद्योगों ने पश्चिमी उप्र की नदियों को जीवनदायिनी की जगह प्रदूषित बना दिया। फरवरी 2015 से जनवरी 2016 के बीच हुए अध्ययन पर एक रिपोर्ट

नदियों पर उद्योगों का काला साया

गंगा की सहायक नदी के रूप में जानी जाने वाली लगभग 300 किलोमीटर लंबी काली नदी (पूर्व) मुजफ्फरनगर की जानसठ तहसील के अंतवाड़ा गांव से शुरू होकर मेरठ, गाजियाबाद, बुलंदशहर, अलीगढ़, एटा व फर्रूखाबाद के बीच से होते हुए अंत में कन्नौज में जाकर गंगा में मिल जाती है। इसे नागिन के नाम से भी जाना जाता है, जबकि कन्नौज में कालिन्द्री के नाम से। कभी शुद्ध रही यह नदी आज उद्योगों (शुगर मिलों, पेपर मिल, रासायनिक उद्योग), घरेलू डिस्चार्ज, मृत पशुओं का नदी में डिस्चार्ज, शहरों, कस्बों, कमेलों व कृषि का गैर-शोधित कचरा ढोने का साधन बन गई है। मेरठ सहित कई शहरों व कस्बों का कचरा भी इसमें जा रहा है। केंद्रीय भू-जल बोर्ड की एक रिपोर्ट के अनुसार इस नदी के पानी में अत्यधिक मात्रा में लैड, मैग्नीज व लोहा जैसे भारी तत्व व प्रतिबंधित कीटनाशक अत्यधिक मात्रा में घुल चुके हैं। इसका पानी वर्तमान में किसी भी प्रयोग का नहीं है। पानी में इतनी भी ऑक्सीजन की मात्रा नहीं बची है जिससे कि मछलियां व अन्य जलीय जीव जीवित रह सकें। गौरतलब है कि इसके किनारे करीब 1200 गांव, बड़े शहर व कस्बे बसे हैं। प्रदूषण से आस-पास बसे गांवों का भूजल भी प्रदूषित हो गया है। गांवों के हैंडपम्पों के पानी में वही भारी तत्व माजूद हैं जोकि नदी के पानी में हैं। ग्रामीण इसी प्रदूषित पानी को पीकर गंभीर व जानलेवा बीमारियों की चपेट में आ रहे हैं। नदी के पानी से सिंचाई होने से भारी तत्व व कीटनाशक का प्रभाव फसलों पर भी पड़ रहा है।

दम तोड़ रही हिंडन नदी

हिंडन नदी सहारनपुर के 'पुर का टांका' गांव के निकट से निकलती है और सहारनपुर, मुजफ्फरनगर, मेरठ, बागपत, गाजियाबाद व गौतमबुद्धनगर से होते हुए करीब 260 किलोमीटर की दूरी तय करके तिलवाड़ा गांव के निकट यमुना नदी में मिल जाती है। इस बीच इसमें दो मध्यम दूरी की नदियां काली (पश्चिम) व कृष्णी भी मेरठ के पिठलोकर व बागपत के बरनावा गांवों में आकर मिलती हैं। पिछले एक दशक से हिंडन व उसकी दोनों सहायक नदियां उद्योगों का कचरा ढो रही हैं। हिंडन को हरनंदी भी कहा जाता है। इसके उद्गम से लेकर यमुना में विलय होने तक हुए अध्ययन में चौंकाने वाले तथ्य मिले हैं। नदी के पानी में लैड, क्त्रोमियम व केडमियम जैसे भारी तत्व भरपूर हैं। अंतराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिबंधित पॉप्स (परसिसटेंट ऑरगेनिक पाल्यूटेंटस) भी पाए गए हैं। हिण्डन नदी पश्चिमी उप्र के छह जनपदों में मौजूद दर्जनों गन्ना मिलों, पेपर मिलों, कमेलों, छोटे उद्योगों व शहर तथा कस्बों के गैर-शोधित सीवेज को ढोती है। हिण्डन में दो और छोटी नदियां पांवधोई व धमोला भी सहारनपुर का सीवेज निगल रही हैं। सहारनपुर, मुजफ्फरनगर, मेरठ, बागपत, गाजियाबाद व गौतमबुद्धनर में हिंडन नदी में उद्योगों, कस्बों व शहरों का करीब 98 हजार किलो लीटर कचरा सीधे व करीब 95 हजार किलो लीटर कृष्णी व काली नदी (पश्चिम) के माध्यम से आकर हर रोज गिरता है। हिंडन नदी रोजाना उद्योगों व शहरों का करीब एक लाख नब्बे हजार किलो लीटर गैर-शोधित तरल कचरा लेकर बहती है तथा इसे यमुना नदी में डाल देती है।

हिंडन की सहायक नदियां

सहारनपुर में हिंडन की तीन छोटी सहायक नदियां भी हैं। इनमें नागदेई लुप्त हो चुकी है। पांवधोई को सरकार व जनता के प्रयास से पुनर्जीवित किया जा चुका है। धमौला जो कि हिंडन में मोमनाथल गांव के पास आकर मिल जाती है, अत्यंत प्रदूषित है। हिण्डन व उसकी सहायक नदियों के किनारे बसे तमाम गांव प्रदूषण की चपेट में हैं। हिंडन की एक ओर सहायक नदी कृष्णी (78 किमी) सहारनपुर से निकलकर शामली होते हुए बागपत के बरनावा में आकर हिण्डन में मिल जाती है, प्रदूषण से त्रस्त है।

बाकी नदियों का भी बुरा हाल

मेरठ से गंगा, हिंडन, काली वेस्ट व काली ईस्ट तथा बूढ़ी गंगा नदियां होकर बहती हैं। ये सभी नदियां भयंकर प्रदूषण की चपेट में हैं। मेरठ के करीब 100 गांव इससे प्रभावित है। यमुनोत्री से निकलने वाली व शामली, बागपत, दिल्ली व गौतमबुद्धनगर जनपदों से होते हुए जाने वाली करीब 1376 किलोमीटर लम्बी यमुना नदी तो बागपत से आगे दम तोड़ रही है। बिजनौर की छौइया नदी भी काली ईस्ट की तरह की प्रदूषित है और गंगा की सहायक नदी है। इसमें बिजनौर के सभी पेपर मिल व गन्ना मिल का कचरा डाला जाता है। इसी तरह बागपत व गौतमबुद्धनगर में नदियों के किनारे बसे गांव भी खतरनाक प्रदूषण की चपेट में हैं।

प्रदेश सरकार ने की पहल

प्रदेश सरकार द्वारा हिंडन नदी को प्रदूषण मुक्त कर एक मॉडल नदी बनाने के कार्य शुरू किया गया है। इसके लिए मुख्यमंत्री अखिलेश यादव द्वारा मेरठ व सहारनपुर मंडलायुक्त के नेतृत्व में दो कमेटियों का गठन किया गया है। इन कमेटियों का कार्य हिंडन नदी को प्रदूषण मुक्त करने के लिए योजना तैयार करना तथा उस योजना को सरकार के संज्ञान में लाकर उस पर अमल कराना है।

रिपोर्ट जल संसाधन मंत्रालय को सौंपी गयी थी जिसके बाद नमामि गंगे प्रोजेक्ट में काली नदी (पूर्वी) को भी शामिल किया गया है। केन्द्र सरकार इसे साफ करने के लिए इजराइल के साथ एक एमओयू करने की तैयारी में है। इजराइल ने हाल ही में एक सौ किलोमीटर लंबी नदी साफ की है। इसके लिए एक डेलीगेशन भी इजराइल भेजा जा रहा है। उम्मीद है कि काली नदी समेत पश्चिमी यूपी की तमाम नदियों की सेहत सुधरेगी और लोगों को राहत मिलेगी।

रमन त्यागी, निदेशक, नीर फाउंडेशन

300 किलोमीटर लंबी

मुजफ्फरनगर की जानसठ तहसील के अंतवाड़ा गांव से शुरू होकर मेरठ, गाजियाबाद, बुलंदशहर, अलीगढ़, एटा व फर्रूखाबाद के बीच से होते हुए कन्नौज में गंगा में मिलती है। बता दें कि इसके किनारे करीब 1200 गांव, बड़े शहर व कस्बे बसे हैं।

लेड- इसकी अधिकता से गुदरें की कार्यप्रणाली प्रभावित होती है। एनीमिया, मुंह में जलन, मरोड़, उल्टी, पेट में दर्द, लकवा, मानसिक रोग व खून की कमी की संभावना भी रहती है।

कैडमियम- इताई-इताई बीमारी (आनुवांशिक गड़बडि़यां, घुटने की चोट, हड्डी टूटना, मोटापा), गुदरें की बीमारी, दिमागी बीमारियां, शरीर में ऐंठन, तनाव, मिचली, उल्टी, पेचिस व कैंसर आदि बीमारियां होती हैं।

क्रोमियम- इससे फेफड़ों का कैंसर तथा त्वचा एवं नाक की झिल्ली में अल्सर पैदा होने की संभावना रहती है। कीटनाशकों की अधिकता से फेफड़ों की समस्या, कैंसर, गर्भवती महिलाओं पर बुरा असर पड़ना, दिमागी बीमारियां, बच्चों की ग्रोथ में रूकावट व शरीर की आंतरिक क्रियाओं पर बुरा असर पड़ता है।

Posted By: Inextlive