दिवाली के अवसर पर पर देश के तमाम हिस्‍सों में देवी लक्ष्मी के साथ-साथ मां काली की पूजा का भी बड़ा विधान है। जानिए इसके पीछे की बड़ी वजह।


मां लक्ष्मी सौम्यता तो काली रौद्रता की प्रतीककानपुर। दिवाली के दिन पूरे भारत खासकर पश्चिम-बंगाल और उत्तर भारत के कई हिस्सों में काली पूजा काफी धूम-धाम से मनाई जाती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, देवी दुर्गा के दस रूपों में एक रूप काली की भी है। माना जाता है कि देवी काली न्यायप्रिय हैं। न्याय दिलाने के लिए वे रौद्र रूप धारण कर दुष्टों का संहार करती हैं। कार्तिक महीने के अमावस्या के दिन काली पूजा की जाती है। मान्यता है कि जब पृथ्वी पर राक्षसों का उत्पात काफी बढ़ गया, तो देवता गण परेशान हो गए। उन्होंने रक्षा के लिए देवी दुर्गा का आह्वान किया।

देवताओं की रक्षा हेतु रण में कूद पड़ीं मां काली
कहते हैं कि राक्षसों से युद्ध के दौरान देवी दुर्गा जब दुष्टों का संहार कर रही थीं, तो क्रोध की अग्नि से कारण उनका चेहरा काला पड़ गया। इसके बाद उनका स्वयं पर वश नहीं रहा और उनके रास्ते में जो भी आया, उसका वह सर्वनाश करती चली गई। तब काली के क्रोध को शांत करने के लिए देवताओं की प्रार्थना पर भगवान शंकर ने स्वयं को उनके चरणों में समर्पित कर दिया। शिव को अपने चरणों के नीचे देखकर तत्काल देवी काली की तंद्रा भंग हुई और उनका गुस्सा कम हुआ। आश्चर्य और पश्चाताप भाव में मां काली ने अपनी जिह्वा बाहर कर ली। काली के इसी रूप की पूजा की जाती है। इस दिन भक्तगण धन और सद्बुद्धि के साथ-साथ आंतरिक और बाहरी शत्रुओं से स्वयं की रक्षा के लिए मां काली से प्रार्थना करते हैं। इससे उनके जीवन में हर तरह से सुख शांति का वास होता है।

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Posted By: Chandramohan Mishra