बॉलीवुड में भाई-भतीजावाद की बहस को आगे बढ़ाते हुए सैफ़ अली ख़ान ने एक ओपन लेटर लिखा था। इस पत्र में सैफ़ ने कई मुद्दों को उठाते हुए अपनी बात कही थी। सैफ़ के पत्र के जवाब में अब कंगना रनौत भी सामने आई हैं।

कंगना के शब्दों में ही पढ़िए सैफ़ को लिखा जवाब-
भाई-भतीजावाद की बहस का विस्तार थमता नहीं दिखा रहा है। हालांकि इस बहस में हर कोई अपना तर्क एक सौहार्दपूर्ण माहौल में रख रहा है। इस बहस में मुझे कुछ दृष्टिकोण अच्छे लगे तो कुछ से मैं परेशान भी हुई। इस सुबह मैं जगी तो सैफ़ अली ख़ान का ऑनलाइन ओपन लेटर देखा।

पिछली बार मैं इस मुद्दे पर फ़िल्मकार करण जौहर के लिखे ब्लॉग से काफ़ी दुखी और परेशान हुई थी। एक इंटरव्यू में उन्होंने बताया कि फ़िल्म के बिज़नेस को बढ़ाने के लिए कई मानदंड हैं। उन मानदंडों में प्रतिभा नहीं थी।

 

भाई-भतीजावाद कोई व्यक्तिगत मुद्दा नहीं
यह अपने-अपने तर्कों को रखने का सिलसिला है न कि यह कोई व्यक्तिगत दुश्मनी का मामला है। सैफ़ आपने अपने पत्र में लिखा है, ''मैं कंगना से माफ़ी मांगता हूं और मुझे इस मामले में कोई स्पष्टीकरण नहीं चाहिए क्योंकि इस मुद्दे पर अब बहुत बात हो गई है।'' लेकिन यह मुद्दा केवल मेरे लिए नहीं है।

भाई-भतीजावाद एक चलन है जिसमें लोग एक ख़ास तरह की मानवीय भावना से काम करते हैं। यह कोई बुद्धिजीवियों वाली प्रवृत्ति नहीं है। जो काम निष्पक्ष और ईमानदारी वाले मूल्यों के बजाय केवल मानवीय स्वभावों से संचालित हो रहे हैं वहां सतही और सस्ते में फ़ायदा उठाने की प्रबल संभावना होती है। ये वास्तव में रचनात्मक नहीं होते हैं और यह सवा अरब की आबादी वाले देश में लोगों की असली क्षमता पर पानी फेरने की तरह है।

भाई-भतीजावाद कई स्तरों पर है। इसमें निष्पक्षता और तर्कशीलता के लिए कोई जगह नहीं होती है। मैंने उन लोगों से इन मूल्यों को हासिल किया है जिन्होंने सच्चाई के दम पर कामयाबी के झंडे गाड़े। ये मूल्य लोगों के जीवन में कोई गोपनीय रहस्य नहीं हैं बल्कि आम जनजीवन में यह मौजूद है। इस पर किसी का एकाधिकार नहीं है।

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पत्र के अगले हिस्से में आपने वंश और स्टार के बच्चों के संबंधों के बारे में बात की है। यहां आपने ज़ोर दिया है कि भाई-भतीजावाद एक किस्म का निवेश है और जांचे-परखे वंशानुगत गुण हैं। मैंने अपने जीवन के अहम हिस्सों को अनुवांशिकी के अध्ययन में लगाया है। मैं इस समझने में नाकाम रही कि आप अनुवांशिक रूप से हाइब्रिड घोड़े की तुलना एक कलाकार से कैसे कर सकते हैं?

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क्या आप यह समझते हैं कि कलाबोध, कड़ी मेहनत, अनुभव, एकाग्रता, उत्साह, लालसा, अनुशासन और प्रेम अनुवांशिकी ख़ासियत हैं? अगर आप सही हैं तो मुझे किसान होना चाहिए था। अगर अनुवांशिकी का संबंध इतना गहरा होता है तो मेरे भीतर हालात को समझने का पैनापन और अपनी चाहतों को पीछा करने का जो समर्पण है उससे हैरान होना चाहिए।

 

वास्तव में इस मुद्दे पर मेरी अहम बातें बाहरी लोगों को कम प्रभावित करती होंगी। अन्य क्षेत्रों की तरह इंटरटेनमेंट इंडस्ट्री के भी सभी हिस्सों में दादागिरी, ईर्ष्या, भाई-भतीजावाद और क्षेत्रवाद जैसी मानवीय प्रवृत्तियां मौजूद हैं। अगर आपको मुख्यधारा में स्वीकार्यता नहीं मिलती है तो हार मानने की ज़रूरत नहीं है। यहां करने के लिए कई रास्ते हैं।

मैं समझती हूं कि कम से कम इस बहस पर विशेषाधिकार का इल्ज़ाम लगाया जा सकता है। इस बहस में कई तरह की प्रतिक्रियाएं आईं। परिवर्तन केवल उन लोगों के कारण हो सकता है जो इसे चाहते हैं। यह सपने देखनेवालों का विशेषाधिकार है वह क्या करना चाहता है और उसे कोई मना नहीं कर सकता है।

आप बिल्कुल सही हैं- अमीरी और शोहरत के साथ रहने में उत्साह और प्रंशसा की कमी नहीं होती है। लेकिन हमे यह भी सोचना चाहिए कि हमारी रचनात्मक इंडस्ट्री को मोहब्बत हमारे मुल्क के लोगों से मिलती है क्योंकि हम उनके लिए आईने की तरह हैं- चाहे 'ओमकारा' का लंगड़ा त्यागी हो या 'क्वीन' की रानी हम साधारण किरदार के लिए असाधारण प्यार पाते हैं।

तो क्या हमें भाई-भतीजावाद के साथ शांति बनाई रखनी चाहिए? जिनके लिए भाई-भतीजावाद काम करता है वो उसके साथ शांति से रहें। मेरा मानना है कि यह तीसरी दुनिया के देशों के लिए एक निराशावादी प्रवृत्ति है। इन देशों में ज़्यादातर लोग पेट नहीं भर पाते हैं, बेघर हैं, कपड़े नहीं हैं और शिक्षा तो दूर की बात है। दुनिया कोई आदर्श स्थान नहीं है और शायद कभी न हो। हमलोग कला इंडस्ट्री में क्यों हैं, क्योंकि हम उम्मीद का दीपक थामे होते हैं।

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Posted By: Chandramohan Mishra