इलाहाबाद के दो खनन घाट को लेकर जवाहर व करवरिया बंधु के बीच थी अदावत

कंजासा खुर्द व अरैल घाट पर कई बार दोनों खेमे के बीच हुई थी जमकर फायरिंग

PRAYAGRAJ: करवरिया ब्रदर्स की तकदीर बालू खनन से चमकी थी। एक घाट महेवा से शुरू हुआ खनन का कारोबार वह बढ़ाते चले गए। एक वक्त ऐसा भी आया जब करवरिया बंधु की खनन के क्षेत्र में तूती बोलने लगी। सितारे साथ दे रहे थे, लिहाजा हर जगह सफलता मिलती गई। बालू से दौलत की बारिश हुई तो राजनीति में उतर पड़े। सियासत के क्षेत्र में भी वे उसी रफ्तार से बढ़े जितनी तेजी से खनने में बढ़े थे। झूंसी विधान सभा सीट से चुनाव जीत कर उभरे जवाहर यादव उर्फ पंडित भी बालू खनन में दखल देने लगे। बस यहीं से करवरिया बंधु व जवाहर के बीच अदावत चल पड़ी।

महेवा में मिला था पहला पट्टा

करवरिया बंधु को सबसे पहले कौशाम्बी के महेवा घाट में बालू खनन का पट्टा मिला था। इस घाट के बाद उन्होंने मुड़ कर पीछे नहीं देखा। महेवा के बाद, कटरी डेढ़ावल व पभोषा जैसे घाट पर भी इस परिवार का कब्जा हो गया। बालू खनन की दुनिया में इनका रुतबा बढ़ा तो पैसों की बारिश होने लगी। इस परिवार में दौलत का बल बढ़ा तो इच्छाएं भी बढ़ने लगीं। कौशाम्बी के साथ करवरिया बंधु ने इलाहाबाद के कंजासा खुर्द व अरैल के बालू खनन घाट को भी ले लिया। इस तरह कौशाम्बी से लेकर इलाहाबाद तक करवरिया बंधु का खनन साम्राज्य फैल गया। इनके धन, जन व बाहुबल के बूते इनकी कायनात फैलती चली गई।

फिर गर्दिश में आ गए सितारे

वर्ष 1993 में विधानसभा का चुनाव हुआ तो जवाहर पंडित को झूंसी से सपा का टिकट मिल गया। जवाहर पंडित को जीत हासिल हुई। सपा सत्ता में आई तो जवाहर का रुतबा हाई हो गया। इसी के बूते जवाहर पंडित ने भी बालू खनन में हाथ आजमाना शुरू कर दिए। बताते हैं कि जवाहर की नजर इलाहाबाद के कंजासा खुर्द व अरैल घाट पर थी। इस घाट को लेकर एक दो मर्तबा करवरिया बंधु व जवार खेमे के बीच बम्पर गोलियां भी चली थीं। इसी घटना के बाद से करवरिया बंधु व जवाहर के बीच अदावत की चिंगारी सुलगने लगी। बालू के घाट से शुरू हुई दोनों खेमें की यह अदावत अदालत तक जा पहुंची। जिसका परिणाम आज सब के सामने हैं।

बाबा के बाद नाती उतरे सियासत में

करवरिया बंधु का पैतृक आवास कौशाम्बी जिले के मंझनपुर तहसील स्थित चकनारा गांव में है। इस परिवार की सियासी हैसियत पहले से थी। इनके पिता वशिष्ट नारायण करवरिया उर्फ भुक्खड़ महराज कभी राजनीति में नहीं उतरे। लेकिन, जानकार बताते हैं कि भुक्खड़ के पिता बहुगुणा के जमाने में एक बाद चुनाव लड़े थे। इसके बाद इस परिवार में करवरिया बंधुओं ने राजनीति में कदम रखा था। बालू कारोबार से सियासत की दुनिया में उतरे करवरिया बंधुओं ने अच्छी शोहरत कमाई थी। 13 अगस्त 1996 की शाम हुई जवाहर पंडित की हत्या के बाद से करवरिया बंधु के सितारे गर्दिश में आ गए।

Posted By: Inextlive