कारगिल युद्ध से जुड़े संस्मरणों को कारगिल सेनानियों ने किया साझा

अपना सबकुछ दांव पर लगाकर करते हैं देश के सीमा की रक्षा

सरकार पड़ोसी देशों से संबंध सुधारे तो टल सकते हैं युद्ध के हालात

ALLAHABAD: जमीन से 24 हजार फीट की ऊंचाई पर दुश्मन बैठा था। उसके लिए हम पर हमला करना बेहद आसान था। बावजूद इसके जवानों ने कारगिल युद्ध में विजय प्राप्त की। अपने आप में अनूठे कारगिल युद्ध को अघोषित युद्ध की संज्ञा दी गई है, जिसमें सेना के जवानों को कई परेशानियों का सामना करना पड़ा। स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर सेवानिवृत्त कारगिल सेनानियों ने आई नेक्स्ट के सामने 'ऑपरेशन विजय' से जुड़े संस्मरणों को शेयर किया। उन्होंने आजादी के बाद सीमा पर पड़ोसी देशों से होने वाली लड़ाई को आजादी की दूसरी लड़ाई बताया। उनका कहना था कि केंद्र सरकार पड़ोसी मुल्क से मधुर राजनीतिक संबंध स्थापित कर युद्ध के हालात को टाल सकती है।

सामने थी पाकिस्तानी सेना

नौ मई 1999 को शुरू हुए कारगिल युद्ध में सेना को काफी परेशानी का सामना करना पड़ा। सिविल पॉपुलेशन के बीच हुई लड़ाई में पाकिस्तानी सेना उग्रवादी और आतंकवादी के रूप में लड़ रही थी। पहचानना मुश्किल था कि पब्लिक कौन है और पाकिस्तानी आर्मी कौन है। कारगिल लड़े सैनिकों के मुताबिक मन में डर था कि कहीं हमारी गोली से सिविलियन न मर जाए। जिन दुश्मनों को हम मार रहे थे, उन्हें पाकिस्तानी आर्मी अपना मानने को तैयार नहीं थी। जबकि, उनके युद्ध करने का तरीका प्रोफेशनल था।

आग का गोला बनी थी टाइगर हिल

सैनिकों ने बताया कि सबसे कठिन लड़ाई टाइगर हिल पर लड़ी गई। यहां हमने कई जवानों को खोया। दुश्मन ऊपर बैठा आसानी से वार कर रहा था। जब हमारी वायु सेना और बोफोर्स तोपों ने मोर्चा संभाला तब जाकर थल सेना के सिपाहियों ने टाइगर हिल पर कब्जा जमाने में सफलता प्राप्त की। इस भयंकर युद्ध में टाइगर हिल आग के गोले में बदल गई थी। इस लड़ाई में सबसे ज्यादा अस्त्र-शस्त्र बर्बाद हुए। पाकिस्तान से हुई अब तक की लड़ाईयों में यह सबसे अनोखा युद्ध था।

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इलाहाबाद ने खोया था लाल

वर्तमान में इलाहाबाद में कुल तेरह सेवानिवृत्त कारगिल सेनानी हैं। करछना के पतुलिकी गांव के लालमणि यादव इस लड़ाई में शहीद हुए थे। तुरतुक सेक्टर की हनीफ चौकी पर दुश्मनों से लोहा लेते हुए उन्होंने 13 पाकिस्तानी सैनिको को ढेर किया था, लेकिन इसी बीच एक गोला उनके सिर पर आकर गिरा और वे वीरगति को प्राप्त हुए। कारगिल सेनानी कहते हैं कि सीमा की सुरक्षा देश की दूसरी आजादी की लड़ाई से कम नहीं है।

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कोई नहीं चाहता युद्ध

कारगिल सेनानियों का कहना है कि कोई भी सैनिक युद्ध नहीं चाहता। लेकिन, देश की सुरक्षा के लिए उसे दुश्मन की जान लेनी पड़ती है। यदि आपसी ईष्र्या और द्वेष के भाव त्यागकर पड़ोसी देश आपस में विश्वसनीयता के साथ मधुर संबंध स्थापित करें तो अनचाहे युद्ध को टाला जा सकता है। तब हमारे जवानों की जान जाने से बच जाएगी। हालांकि, सेनानियों को दुख है कि केंद्र और राज्य सरकार उनके बलिदान को नहीं समझती। राजनीतिक बयानों के जरिए उन्हें आहत किया जाता है। सरकारी विभागों में बाबू और अधिकारी उन्हें प्रताडि़त करते हैं।

वर्जन

जनता में देशभक्ति की प्रेरणा और सेना के प्रति सम्मान जगाने के लिए हमने शहीद वाल का निर्माण कराया है। यहां आजादी की लड़ाई में शहीद इलाहाबाद की गुमनाम शख्सियतों का उल्लेख किया गया है। कारगिल शहीद लालमणि यादव का चित्र भी यहां लगा है।

श्याम सुंदर सिंह पटेल, पूर्व सूबेदार और कारगिल सेनानी

आज का युवा सेना में नही जाना चाहता। जो लोग भर्ती रैलियों में जाते हैं, वे मजबूरी में जाते हैं। सेना को काबिल युवाओं की जरूरत है। युवाओं को सेना में जाने के लिए सही गाइडेंस प्रदान करने के लिए हमारी ओर से जन कल्याण सेवा समिति का संचालन किया जा रहा है।

ईश्वर चंद्र तिवारी, पूर्व सूबेदार और कारगिल सेनानी

पाकिस्तान ने हमारे साथ धोखा किया था। बर्फबारी के दौरान सीमा का जो हिस्सा छोड़ दिया जाता है वहां पाकिस्तानी सैनिक बंकरों में चोरी छिपे हथियार लेकर बैठे थे। इन सबसे अनजान पेट्रोलिंग पर गए कई सैनिकों को अपनी जान गवानी पड़ी थी।

एके तिवारी, पूर्व हवलदार और कारगिल सेनानी

मेरे साथ दो बेटे भी कारगिल की लड़ाई में शामिल थे। वे एकदम नए थे। मैंने उन्हें कहा कि देश सेवा में प्राणों की चिंता मत करना। उन्होंने भी जान लड़ा दी। आज उनकी पोस्टिंग अलग-अलग इलाकों में है। दुख तब होता है जब सैनिकों के साथ सरकारी तंत्र भेदभाव का व्यवहार करता है।

पीएन ओझा, पूर्व सूबेदार मेजर और कारगिल सेनानी

Posted By: Inextlive