इंडिया ने आक्रामक रवैया अपनाते हुए कारगिल से घुसपैठियों को बाहर खदेड़ दिया. इंडियन डिफेन्स फोर्सेस की एडवांस्ड टेक्नालाजी और गवर्नमेंट की सधी हुई डिप्लोमेटिक एप्रोच के चलते पाकिस्तान को अपने सैनिकों को वापस बुला लेना पड़ा. हालाकि पाकिस्तान ने उस समय यह नही माना कि कारगिल वार में उसके सैनिक इनवाल्व थे.


1947 से आज तक इंडिया और पाकिस्तान चार बार लड़ाई के मैदान में आमने सामने हो चुके हैं. इसके बाद आज तक दोनों देश कई सारे प्राक्सी वार्स के चलते एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप करते रहे हैं. कभी कश्मीर तो कभी बांग्लादेश के मुद्दे पर गोलियां बरसा चुके ये देश आज भी एक अच्छे रिश्ते को नहीं जी पा रहे हैं. 1999 में दोनों देशों के बीच हुई कारगिल की लड़ाई के 12 सालों बाद भी इसका असर कम होता नहीं दिखता. कैसे हुआ था कारगिल वार आइये डालते हैं एक नजर- तत्कालीन प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने फरवरी 2009 में खुद को पाक साफ बताते हुए कहा कि जनरल मुसर्रफ ने 1999 में सोंचे समझे तरीके से इंडिया पर हमला किया था.
"My brother Musharraf attacked Kargil. I had no clue about that military operation. It came to my notice when Vajpayee called me and said what have you done? He said he had just returned from Pakistan a few days back and went back with such good feelings and you have attacked us. I called Musharraf and found this to be true" Nawaz Sarif.


कारगिल युद्ध की शुरूआत मई 1999 मे तब हुई जब 3 मई को पहली बार कुछ लोकलाइट्स को इलाके में घुसपैठिये दिखाई दिये. इसके तुरन्त बाद एक सर्च पेट्रोल को इलाके में भेजा गया जिसमें 5 जवानों को मार दिया गया. घटना से आर्मी हरकत में आई और आप्रेशन शुरू हो गया. इस सबके बीच पाकिस्तान सरकार ने कभी नही माना कि वह इस युद्ध में इनवाल्व है.आपरेशन लगभग 3 महीने चला जिसमें सरकारी आकड़ों के मुताबिक दोनों ओर से कुल 980 जवान मारे गये. इन्डिया के 527 जवान मारे गये और 1363 घायल हुए जबकि पाकिस्तान के 453 जवान मारे गये और 665 से ज्यादा मारे गये. हालाकि पाकिस्तान की ओर से आकड़ों की कभी कोई क्लिअर पिक्चर नहीं मिल पाई. 26 जुलाई को इंडिया की ओर से युद्ध विराम की घोषणा कर दी गई. नवंबर 2010 में पाकिस्तान आर्मी ने कारगिल में शहीद 453 सैनिकों के नाम अपने वेबसाईट पर डाले. साथ ही भारत-पाकिस्तान नियंत्रण रेखा पर भारत की तरफ के पहाड़ों और ऊंचाइयों पर कब्जे के लिए जो अभियान चलाया गया था उसका कोड नेम ऑपरेशन कोह-ए-पैमा (पहाड़ों का समाधान) बताया गया है. जिन सैनिकों के नाम पाकिस्तान ने वेबसाइट पर डाले वही नाम भारत सरकार के कारगिल युद्ध रिकार्ड में भी है.

मारे गये सैनिकों की लिस्ट के सबसे पहले चरण में कैप्टन करनाल शेर और हवलदार ललाक जान के नाम हैं. ये दोनों कारगिल में 7 जुलाई 1999 को मारे गए थे. वेबसाईट में दोनों को मरणोपरांत पाकिस्तान के सर्वोच्च सैन्य पुरस्कार निशान-ए-हैदर से सम्मानित  दिखाया गया है. इस सूची में शहीद सैनिकों के नाम के अलावा उनकी रैंक, यूनिट, तैनाती और मौत का कारण सभी का पूरा ब्योरा दिया गया है. इस लड़ाई में मारे गए अधिकतर सैनिक उत्तरी लाइट इंफैंटरी के थे. पाकिस्तानी सेना ने इसके कारगिल युद्ध प्रदर्शन को देखते हुए इसे नियमित रेजिमेंट बना दिया. जबकि इसके पहले यह एक अर्धसैनिक बल था.मरे हुए सैनिकों की इंफार्मेशन, ऑपरेशन का कोड नेम, पोस्थमस दिए गए ब्रेवरी मेडल्स, उत्तरी लाइट इंफैंटरी को रेगुलर रेजिमेंट बनाने जैसी बातें पाकिस्तानी सेना के कारगिल वार में रोल को अच्छी तरह डिस्क्राइब करती हैं. इंटरनेशनल लेवल पर इससे इंडिया बेनिफिट में ही है क्यूकि हमेशा पाकिस्तान को संदेह भरी निगाहों से ही देखा जाएगा.

Posted By: Divyanshu Bhard