Karwa Chauth 2019 यह व्रत कार्तिक कृष्ण की चन्द्रोदयव्यापिनी चतुर्थी को किया जाता है। करवाचौथ का व्रत तृतीया के साथ चतुर्थी उदय हो उस दिन करना शुभ है। तृतीया तिथि ‘जया तिथि’ है। इससे पति को अपने कार्यों में सर्वत्र विजय प्राप्त होती है।


करवा चौथ इस वर्ष गुरुवार  17 अक्टूबर 2019 को पड़ रहा है। सुहागन महिलाओं के लिए चौथ महत्वपूर्ण है। बीएचयू, ज्योतिष विभाग, के शोध छात्र, ज्योतिषाचार्य पं गणेश प्रसाद मिश्र के अनुसार गौरी माता का एक रूप चौथ माता का है। मंदिरों में चौथ माता के साथ श्रीगणेशजी की प्रतिमा स्थापित की जाती है।


करवा चौथ माता सुहागन स्त्रियों के सुहाग की रक्षा करती हैं। उनके दाम्पत्य जीवन में प्रेम और विश्वास की स्थापना करती हैं। इस व्रत में शिव-शिवा, स्वामिकार्तिक और चन्द्रमा का पूजन करना चाहिये और नैवेद्य में ( काली मिट्टी के कच्चे करवे में चीनी की चासनी ढालकर बनाये हुये) करवे या घी में सेंके हुए और खाँड मिले हुए आटे के लड्डू अर्पण करने चाहिये। इस व्रत को विशेषकर सौभाग्यवती स्त्रियाँ अथवा उसी वर्ष में विवाही हुई लड़कियाँ करती हैं और नैवेद्य के 13 करवे या लड्डू और 1 लोटा, 1 वस्त्र और 1 विशेष करवा पति के माता -पिता को देती हैं।यह संकल्प करके बालू( सफेद मिट्टी) की वेदीपर पीपल का वृक्ष लिखें और उसके नीचे शिव-शिवा और षण्मुख की मूर्ति अथवा चित्र स्थापन करके इस मंत्रत्र का जाप करें ...' नम: शिवायै शर्वाण्यै सौभाग्यं संतति शुभाम्।प्रयच्छ भक्तियुक्तानां नारीणां हरवल्लभे।।'

से शिवा(पार्वती) का षोडशोपचार पूजन करें और 'नम: शिवाय' से शिव तथा 'षण्मुखाय नम:' से स्वामिकार्तिक का पूजन करके नैवेद्य का पक्वान्न(करवे) और दक्षिणा ब्राह्मण को देकर चन्द्रमा को अर्घ्य दें और फिर भोजन करें। श्रीमद्भागवत महापुराण के अनुसार चन्द्रमा को औषधि का देवता माना जाता है। चन्द्रमा अपनी हिम किरणों से समस्त वनस्पतियों में दिव्य गुणों का प्रवाह करता है। समस्त वनस्पति अपने तत्वों के आधार पर औषधीय गुणों से युक्त हो जाती  हैं, जिससे रोग-कष्ट दूर हो जाते हैं और जिससे अर्घ्य देते समय पति-पत्नी को भी चन्द्रमा की शुभ किरणों का औषधीय गुण प्राप्त होता है। दोनों के मध्य प्रेम एवं समर्पण बना रहता है।चन्द्रमा को अर्घ्य दान- रात्रि 7:58 के बादलोकाचार-

सरगी का उपहारयह  सास की ओर से दिया गया आशीर्वाद है। मां का स्थान सर्वोपरि है। अत: मां अपनी बहू को सूर्योदय से पूर्व ही कुछ मीठा खिला देती है, जिससे पूरे दिन मन में प्रेम और उत्साह रहे तथा भूख-प्यास का एहसास न हो।प्रात: काल शिव-पार्वतीजी की पूजा का विधान


प्रात: काल से ही श्रीगणेश भगवान, शिवजी एवं मां पार्वती की पूजा की जाती है, जिससे अखंड सौभाग्य, यश एवं कीर्ति प्राप्त हो। शिवजी के मंत्रों तथा मां गौरी के मंत्रों का जाप-पाठ आदि करके उन्हें प्रसन्न करते हैं, जिससे पति को दीर्घायु प्राप्त होने का वर मिले।निर्जला व्रत का विधानकरवाचौथ के व्रत में निर्जला व्रत रखने का विधान है अर्थात इस व्रत में पूरे दिन जल भी ग्रहण नहीं करते। हम अपनी कठोर उपासना, व्रत से भगवान को प्रसन्न करने का प्रयास करते हैं, जिससे शिव-पार्वतीजी से अपने जोड़े को दीर्घकाल तक साथ रहने का आशीर्वाद प्राप्त कर सकें। रोगी, गर्भवती, स्तनपान कराने वाली महिलाएं दिन में दूध, चाय आदि ग्रहण कर सकती  हैं।पीली मिट्टी से गौरा-शिव की मूर्ति बनाने का महत्व
दिन में पीली शुद्ध मिट्टी से गौरा-शिव एवं गणेशजी की मूर्ति बनाई जाती है। जिस प्रकार गणेश चतुर्थी एवं नवरात्र में गणेशजी एवं दुर्गाजी की मूर्ति प्रत्येक वर्ष नई बनाते हैं, उसी प्रकार नई मूर्ति बनाकर उन्हें पटरे पर लाल कपड़ा बिछाकर स्थापित करते हैं तथा कच्ची मूर्तियों को सजाते हैं। पूजा के दूसरे दिन उन्हें घी-बूरे का भोग लगाकर विसर्जित करते हैं। मां गौरा को सिंदूर, बिंदी, चुन्नी तथा शिव को चंदन, पुष्प, वस्त्र पहनाते हैं। श्रीगणेशजी उनकी गोद में बैठते हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में दीवार पर एक गेरू से फलक बनाकर चावल, हल्दी के आटे को मिलाकर करवाचौथ का चित्र अंकित करते हैं।शाम को कथा सुनने का महत्वदिनभर पूजा की तैयारियों के बाद शाम को घर की बड़ी-बुजुर्ग महिलाएं या पंडितजी सभी को ‘करवा चौथ’ की शुभ कहानी सुनाते हैं। सभी महिलाएं पूर्ण शृंगार करके गोल घेरा बनाकर बैठती हैं तथा बड़े मनोयोग तथा प्रेम से कथा सुनती हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि अनेकता में ही एकता है। सभी परिवार जुड़कर एक हो जाते  हैं। महिलाएं ही परिवार में एकता बनाती हैं। जब सभी साथ मिलकर त्योहार मनाते हैं तो प्रेम, स्नेह, त्याग, करुणा, दया गुण भी प्रभावी हो जाते हैं।इसकी कथा सार यह है कि- ' शाकप्रस्थपुर के वेदधर्मा ब्राह्मण की विवाहिता पुत्री वीरवती ने करकचतुर्थी का व्रत किया था। नियम यह था कि चन्द्रोदय के बाद भोजन करे। परन्तु उससे भूख सही नही गयी और व्याकुल हो गयी। तब उसके भाई ने पीपल की आड़ में महताब(आतिशबाजी) आदि का सुन्दर प्रकाश फैला कर  चन्द्रोदय दिखा दिया और वीरवती को भोजन करवा दिया। परिणाम यह हुआ कि उसका पति तत्काल अलक्षित हो गया और वीरवती ने बारह महीने तक प्रत्येक चतुर्थी का व्रत किया तब पुन: प्राप्त हुआ।
परस्पर थाली फेरना
कथा सुनने के उपरांत सभी सात बार परस्पर थालियां फेरते हैं तथा थाली में वही सामान एवं पूजा सामग्री रखते हैं, जो बयाने में सास को दिया जाएगा। पूजा के उपरांत सास के चरण छूकर उन्हें बायना भेंट स्वरूप दिया जाता है अर्थात सास, पिता श्वसुर का स्थान बहू के लिए सर्वोपरि होना चाहिए। ईश्वर के आशीर्वाद के साथ सास एवं श्वसुर के चरण स्पर्श करें, जिससे जीवन में सदैव प्रेम, स्नेह एवं यश प्राप्त हो।Karwa Chauth 2019: यह है करवाचौथ व्रत का शुभ मुहूर्त, समय व पूजा विधि, द्रौपदी ने भी रखा था यह व्रतकरवे और लोटे को सात बार फेरनाकरवे और लोटे को भी सात बार फेरने का विधान है। इससे तात्पर्य है कि घर की स्त्रियों में परस्पर प्रेम और स्नेह का बंधन है। साथ मिलकर पूजा करें और कहानी सुनने के बाद दो-दो महिलाएं अपने करवे सात बार फेरती हैं, जिससे घर में सभी प्रेम के बंधन में मजबूती से जुड़े रहें।- ज्योतिषाचार्य पंडित गणेश प्रसाद मिश्रKarwa Chauth 2019: अखण्ड सौभाग्य करवाचौथ व्रत कथा, पूजन विधि व सामग्री

Posted By: Vandana Sharma