-पिशाचमोचन कुंड पर किन्नर अखाड़े की महामंडलेश्वर के नेतृत्व में किन्नर समाज ने अपने पित्तरों का किया श्राद्धकर्म

-विभिन्न प्रांतों से जुटे किन्नरों ने पूरे विधि विधान से किया श्राद्ध, दो साल पूर्व भी किया था परंपरा का निर्वाह

समाज में किन्नरों को बहुत ही हीन भावना से देखा जाता है, असल में अब उन्होंने समाज को संदेश देना शुरू कर दिया है। यही वजह है कि मंगलवार को शहर के पिशाचमोचन कुंड पर किन्नर अखाड़े की महामंडलेश्वर के नेतृत्व में देश भर से जुटे 40-50 की संख्या में किन्नरों ने भी अपने अतृप्त पितरों की आत्मा की शांति के लिए त्रिपिंडी श्राद्ध किया। महाभारत काल में शिखंडी ने पहली बार किन्नरों का पिंडदान किया था। इसी परम्परा का निर्वहन करते हुए किन्नर अखाड़े की महामंडलेश्वर लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी के सानिध्य में जीवितपुत्रिका के दिन चारों दिशाओं से आये किन्नरों ने अतृप्त किन्नरों की आत्मा की शान्ति के लिए श्राद्ध किया। इससे पहले भी महामंडलेश्वर नारायण त्रिपाठी के सानिध्य में साल 2016 में भी किन्नरों ने पिंडदान किया था।

हम सनातन धर्मी हैं

जीवितपुत्रिका के दिन करीब पांच हजार श्रद्धालुओं ने अपने पितरों का पिंडदान किया। इसी क्रम में धर्म की नगरी काशी में किन्नरों ने भी अतृप्त किन्नरों की आत्मा की शान्ति के लिए काशी के पिशाचमोशन तीर्थ पर त्रिपिंडी श्राद्ध किया। महामंडलेश्वर लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी ने बताया कि किन्नर अखाड़ा यह मानता है कि हमारी कौम के लोगों को समाज तिरस्कृत करके निकाल देता है। हम सनातन धर्मी हैं और इस सनातन धर्म के 16 संस्कार जरूरी हैं और ये श्राद्धकर्म का संस्कार रह जाता है और लोग बस ऐसे लोगों को जला देते हैं इसलिए इस संस्कार को हम कर रहे हैं। हम सभी ने एकजुट होकर यह फैसला किया है कि हम ऐसी आत्माओं की शांति के लिए श्राद्ध करेंगे और दो साल पहले भी हमने यहां यह श्राद्ध किया था।

पिशाचमोचन कुंड के महंत मुन्ना पंडा ने बताया कि तीर्थ पर किन्नरों ने अपने पितरों की आत्मा की शांति के लिए त्रिपिंडी श्राद्ध किया है। एक त्रिपिंडी पर 44 आत्माओं को मुक्ति मिलती है। उन्होंने बताया कि किन्नर भी अपनी मां के गर्भ से जन्म लेते हैं इसलिए वो भी श्राद्ध कर्म किए।

Posted By: Inextlive