-इच्छा के अनुरुप अपनी धरती पर ही पंचतत्व में विलीन हुई वैशाली की बिटिया

-मोक्ष की भूमि कौनहारा घाट पर अंतिम दर्शन को उमड़ पड़े आम से खास तक

-घर जगन्नाथ बसंत से आ रही पावन नारायणी ने बिटिया को दिया आशीर्वाद

-हाजीपुर में सीढ़ी घाट पर बद्री बाबू के बंगले पर पुत्र निखिल को दिया था जन्म

PATNA/HAZIPUR: मोक्ष की भूमि हरिहरक्षेत्र। हरि व हर की पावन भूमि। इसी पावन भूमि पर हरि ने संकट में फंसे अपने भक्त को ग्राह के चंगुल से मुक्त कराकर नया जीवन प्रदान किया था। वहीं हरि के हाथों मर कर ग्राह को मोक्ष की प्राप्ति हुई थी। मोक्ष की इस भूमि पर हर किसी की चाहत होती है कि इस पावन मिट्टी को स्पर्श कर अंतिम सफर पर जाए। लालगंज की बिटिया की भीच्यही इच्छा थी कि वह अंतिम सफर पर यहीं सेच्जाए। इच्छा के अनुरुप किशोरी सिन्हा का अंतिम संस्कार बुधवार को हरिहरक्षेत्र की पावन भूमि गंगा-गंडक की संगम स्थली कौनहारा घाट पर हुआ। हजारों की भीड़ में आम से खास तक। नारे गूंज रहे थेकिशोरी सिन्हा अमर रहें एवं जब तक सूरज चांद रहेगा, किशोरी तेरा नाम रहेगा।

दिन के करीब क्ख् बजे हैं। मैं खड़ा हूं मोक्ष की भूमि नारायणी तट पर। कौनहारा घाट पर दर्जनों चिताएं सजी है। उधर आम और इधर खास। हालांकि मंजिल सभी की एक ही। संत कबीर की वाणी जीवन के यथार्थ का दर्शन करा रही थी, आया है सो जाएगा राजा-रंक, फकीर। पूरी सरकार घाट पर बैठी थी। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के एक ओर उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव तो दूसरी ओर शिक्षा मंत्री अशोक चौधरी। और भी बहुत से खास लोग। दर्जनों मंत्री और विधायक। ठीक सवा बारह बजे आखिर वह वेला आ ही गई जिसका सभी को इंतजार था। बेटे के कंधे पर मां की अर्थी। माता-पिता के संस्कार स्पष्ट दिख रहे थे। राज्यपाल की कुर्सी पर वर्षों आसीन रहने के बावजूद सादाच्जीवन उच्च विचार। इकलौते पुत्र निखिल। मच् की इच्छा के अनुरुप पावन भूमि पर अंतिम संस्कार। इस भूमि से मां का खास लगाव था। किशोरी सिन्हा का पैतृक गांव वैशाली के लालगंज का जगन्नाथ बसंत। यहां से उनका खास लगाव था। नारायणी के पावन तट पर ही सीढ़ी घाट के समीप बद्री बाबू बंगले में किशोरी सिन्हा को पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई थी। इस घरती से जुड़ाव को लेकर ही अंतिम सफर यहीं से तय की।

इधर नारायणी अपनी बिटिया को आशीर्वाद दे रही थी। करीब बीस किलोमीटर की दूरी पर स्थित पैतृक घर जगन्नाथ बसंत से होकर आ रही नारायणी बिटिया की अंतिम सफर की गवाह बनी। उधर गांव एवं आसपास के गांवों से हजारों की संख्या में लोग पहुंचे थे। हर कोचर्् अपनी बच्ची फुआ को अंतिम विदाई देने पहुंचा था। अंतिम विदाई के मौके पर हर चेहरे पर इस बात को लेकर उदासी झलक रही थी कि लोग बेझिझकच्जाकर बच्ची फुआ को कह दच्ते थे। बच्ची जी भी सभी को अपनों की तरह सम्मान देती थी। आज उनसे इसी लगाव एवं अपनत्व का ही परिणाम था कि हजारों की संख्या में लोग उन्हें अंतिम विदाई देने पहुच्चे थे। बच्ची जी की अपने घर से लगाव को लेकर ही छोटे साहब जब मुख्यमंत्री थे तब भी बराबर यहां आते थे। इकलौते पुत्र निखिल कुमार भी बराबर इस धरती से जुड़े रहे.राज्यपाल रहते हुए भी हर-छोटे बड़े आयोजन में यहां आते रहे। आज इसी पावन धरती पर किशोरी सिन्हा पंचतत्व में विलीन हो गईं.हमेशा-हमेशा के लिए अपनों को छोड़ कर चच्ी गईं बच्ची फुआ। अब शेष रह गई तो सिर्फ और सिर्फ उनकी यादें।

Posted By: Inextlive