भारतेन्दु हरिश्चन्द्र को आधुनिक हिंदी साहित्य का पितामह कहा जाता है। उन्‍हें मॉर्डन हिन्दी राइटिंग का ट्रेंड सेटर भी माना जाता है। सामाजिक मुद्दों को साहित्‍य से जोड़ने की परंपरा की शुरूआत हरिश्‍चंद्र जी के ही दौर की देन है। आइये जाने भारतेंदु हरिश्चन्द्र की जिंदगी की कहानी इन दस अनजाने तथ्‍यों की जुबानी।

नंबर एक: आधुनिक हिंदी के इस महान लेखक का मूल नाम 'हरिश्चन्द्र' था, और 'भारतेन्दु' उनकी उपाधि थी। उनकी लोकप्रियता से प्रभावित होकर काशी के विद्वानों ने 1880 में उन्हें ये उपाधि प्रदान की थी।
नंबर दो: भारतेन्दु हरिश्चन्द्र को काव्य-प्रतिभा अपने पिता से विरासत के रूप में मिली थी। उन्होंने पांच वर्ष की अवस्था में ही दोहा बनाकर अपने पिता को सुनाया था।
 
नंबर तीन: उन्होंने हिंदी में रीतिकाल के नाम से पहचाने जाने वाले दौर की चाटुकारिता की सामन्ती संस्कृति को बढ़ाने की परंपरा ख्ात्म करके नये दौर की शुरूआत की, इसीलिए हिन्दी साहित्य में आधुनिक काल का प्रारम्भ भारतेन्दु हरिश्चन्द्र को माना जाता है।
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नंबर चार:  भारतेन्दु हरिश्चन्द्र ने हिन्दी को राष्ट्रभाषा के रूप में प्रतिष्ठित करने की दिशा में उन्होंने महत्वपूर्ण योगदान दिया था।
नंबर पांच: भारतेन्दु बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। उन्होंने हिंदी लेखन की हर विधा जैसे पत्रकारिता, नाटक और काव्य सभी क्षेत्रों में अपना बहुमूल्य योगदान दिया। हिंदी में नाटकों का प्रारंभ तो भारतेन्दु हरिश्चंद्र से ही माना जाता है।

नंबर छह: भारतेन्दु ने नाटक लिखने की शुरुआत बंगला के विद्यासुंदर नाटक के अनुवाद से की थी। हालाकि नाटक उनके पहले भी लिखे जाते रहे थे किंतु नियमित रूप से खड़ीबोली में अनेक नाटक लिखकर उन्होंने ही हिंदी नाटक की नींव को मजबूत बनाया।
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नंबर सात: उन्होंने 'हरिश्चंद्र पत्रिका' 1867, 'कविवचन सुधा' 1873 और 1874 में स्त्री शिक्षा के लिए 'बाल विबोधिनी' जैसी पत्रिकाओं का संपादन भी किया। वे कवि, व्यंग्यकार, नाटककार, पत्रकार और कहानी लेखक होने के साथ ही संपादक, निबंधकार और कुशल वक्ता भी थे।
नंबर आठ: भारतेन्दु बनारस के प्रसिद्ध अंग्रेजी के जानकार और लेखक राजा शिवप्रसाद सितारे हिन्द को अपना गुरू मानते थे। उन्हीं से उन्होंने अंग्रेजी सीखी। इसके साथ उन्होंने स्वाध्याय से संस्कृत, मराठी, बंगला, गुजराती, पंजाबी, उर्दू भाषाएँ भी सीख लीं थी।
नंबर नौ:  वैष्णव भक्ति के प्रचार के लिए उन्होने 'तदीय समाज` की स्थापना की थी।
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नंबर दस:
मात्र 34 साल की उम्र में विशाल साहित्य की रचना करने वाले भारतेन्दु जी का निधन हो गया।

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Posted By: Molly Seth