आज मशहूर बैडमिंटन खिलाड़ी प्रकाश पादुकोण का जन्‍मदिन है हालाकि उनकी पहचान अब ज्‍यादातर लोगों के लिए बॉलीवुड एक्‍ट्रेस दीपिका पादुकोण के पिता की हो गयी है। हालाकि प्रकाश ने भारतीय बैडमिंटन के लिए जो उपलब्‍धियां हासिल की हैं उसने आज के बैडमिंटन खिलाड़ियों के लिए कामयाबी की जमीन तैयार की। आइये आज आपको इन्‍हीं के बारे में कुछ खास बातें बताते हैं और बताते हैं उस प्रेणना देने वाले खत के बारे में जो उन्‍होंने अपनी दोनों बेटियों के नाम लिखा था।

भारत में बैडमिंटन को दी पहचान
10 जून 1955 को कर्नाटक में जन्मे प्रकाश पादुकोण एक कामयाब बैडमिंटन खिलाड़ी थे। वैसे तो भारत में बैडमिंटन के कई बड़े सिंग्ल्स प्लेयर हुए हैं लेकिन इनमें से जो प्रभाव प्रकाश पादुकोण ने छोड़ा है वो कोई और नहीं कर सका। खेल पर उनका कंट्रोल और एक्युरेसी इतनी जबरदस्त थी कि वे अपने तरीके से खेल को धीमा और तेज करने का हुनर रखते थे। इसी के चलते सामने वाला खिलाड़ी हैरान रह जाता था, ये कला वर्तमान खिलाड़ियों ने प्रकाश से ही सीखी है। पहले चीन के खिलाड़ियों का बैडमिंटन कोर्ट पर दबदबा था उन्होने ही सबसे पहले यह दिखाया था कि चीनियों का मुकाबला कैसे किया जा सकता है।
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कामयाबी के हकदार
इसी विशेष खेल शैली के चलते उन्होंने 1981 में कुआलालंपुर में बैडमिंटन विश्व कप फाइनल में हान जियान को 15-0 से मात दी थी। प्रकाश लगातार नौ साल 1971 से 1979 तक सीनियर राष्ट्रीय चैंपियन रहे हैं। बॉलीवुड और हॉलीवुड में अपने झंडे गाड़ रही एक्ट्रेस दीपिका पादुकोण के अलावा अनीषा पादुकोण जो एक गोल्फ खिलाड़ी हैं भी उनकी बेटी हैं। 1972 में उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय जूनियर खिताब जीता उसी वर्ष उन्होंने इसका वरिष्ठ खिताब जीता और अगले सात वर्षों के तक लगातार उस पर कब्जा जमाये रहे। 1980 में प्रकाश ने डेनिश ओपन एवं स्वीडिश ओपन खिताब जीता। वे इंडोनेशियाई प्रतिद्वंद्वी लिएम स्वी राजा को हरा कर ऑल इंग्लैंड चैंपियनशिप का पुरुष एकल खिताब जीतने वाले पहले भारतीय बने। अपने अंतरराष्ट्रीय कैरियर का ज्यादातर समय पादुकोण ने डेनमार्क में प्रशिक्षण में बिताया। इसी वजह से कई यूरोपीय खिलाड़ियों के साथ उनके दोस्ताना सम्बन्ध थे जिनमे मोर्टेन फ्रॉस्ट भी शामिल थे। 1991 में उन्होंने एक्टिव खेल से संन्यास ले लिया था। इसके बाद पादुकोण ने थोड़े समय के लिए भारतीय बैडमिंटन संघ के अध्यक्ष के रूप में भी कार्य किया। 1993 से 1996 तक वे भारतीय राष्ट्रीय बैडमिंटन टीम के कोच भी रहे और युवा खिलाड़ियों के संरक्षक रहे। फिल्हाल वे गीत सेठी के साथ बैंगलोर में बैडमिंटन अकादमी चलाते हैं।

खास है प्रकाश की कहानी और बेटी को खत
पादुकोण के जीवन की कहानी को एक किताब 'टच प्ले' में देव एस सुकुमार ने लिखा है। यह किसी भी बैडमिंटन खिलाड़ी के जीवन पर आधारित दूसरी जीवनी है। हाल के दिनों में सबसे ज्यादा चर्चा में रहा प्रकाश का अपनी बेटियों दीपिका और अनीशा को लिखा एक खत। इस खत को दीपिका ने फिल्म पीकू में एक बेहतरीन बेटी के किरदार के लिए मिले बेस्ट एक्ट्रेस अवॉर्ड को लेने के बाद एक पुरस्कार समारोह में पढ़ कर सुनाया था। इसे सुन कर वहां मौजूद हरन शख्सकी आंख नम हो गयी और खुद दीपिका भी मंच पर सिसकने लगीं। ये खत एक खास इंसान के आम बने रहने के कमाल की कहानी हैं। ये हैं खत के कुछ अहम् हिस्से।
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प्यारी दीपिका और अनीशा,
तुम दोनों उस मोड़ पर हो जहां से जिंदगी शुरू होती है। मैं तुमसे वो सबक साझा करना चाहता हूं जो जिंदगी ने मुझे सिखाए हैं। सालों पहले बैंगलोर में एक छोटे बच्चे ने बैडमिंटन खेलना शुरू किया था, तब ना तो कोई स्टेडियम थे और ना ही कोई बैडमिंटन कोर्ट जहां ट्रेनिंग ली जा सके। मेरा बैडमिंटन कोर्ट तो घर के करीब केनरा यूनियन बैंक का एक शादी हॉल था। मैंने वहीं पर खेलना सीखा। हर रोज हम इंतजार करते कि हॉल में कोई फंक्शन तो नहीं है, अगर नहीं होता तो हम स्कूल से भागकर वहां पहुंच जाते ताकि अपने दिल की चाह पूरी कर सकें। इसके बावजूद मेरे बचपन और कच्ची उम्र की सबसे खास चीज थी कि मैंने जिंदगी में कभी किसी कमी की शिकायत नहीं की। मैं इसी बात से खुश रहा है कि हमें हफ्ते में कुछ दिन खेलने की सुविधा तो मिलती है। अपने करियर और जिंदगी दोनों से मैंने कभी कोई शिकवा नहीं किया और यही मैं तुम बच्चों को सिखाना चाहता हूं कि जुनून, कड़ी मेहनत, जिद और जज्बे की जगह कोई चीज नहीं ले सकती। दीपिका जब तुमने 18 साल की उम्र में कहा था कि तुम्हें मुंबई जाना है क्योंकि तुम मॉडलिंग करना चाहती हो तो हमें लगा था कि तुम एक बड़े शहर और एक बड़ी इंडस्ट्री के लिए बहुत छोटी हो और तुम्हें कोई तजुर्बा भी नहीं है, लेकिन आखिर में हमने तय किया कि तुम्हें तुम्हारे दिल की करने दिया जाए। क्योंकि हमें लगा कि तुम्हें वो सपना पूरा करने का मौका नहीं देना जिसके साथ तुम बड़ी हुई हो ये बहुत गलत है। तुम कामयाब हो जाती तो हमें गर्व होता और अगर नहीं होती तो तुम्हें कभी अफसोस नहीं होता क्योंकि तुमने कोशिश की थी। याद रखो कि मैंने तुम्हें हमेशा यही बताया है कि दुनिया में अपना रास्ता कैसे बनाना है बिना अपने माता-पिता से उम्मीद कियो कि वे उंगली पकड़कर तुम्हें वहां पहुंचाएंगे। मेरा मानना है कि बच्चों को अपने सपनों के लिए खुद मेहनत करनी चाहिए ना कि इस बात का इंतजार कि कोई कामयाबी उन्हें लाकर देगा। आज भी जब तुम घर आती हो तो तुम अपना बिस्तर खुद लगाती हो, खाने बाद मेज खुद साफ करती हो और जमीन पर सोती हो जब घर में मेहमान होते हैं। तुम कभी सोचती होगी कि हम तुम्हें एक स्टार समझने को क्यों तैयार नहीं हैं, तो ऐसा इसलिए है क्योंकि तुम हमारे लिए बेटी पहले हो और एक फिल्म स्टार बाद में।
तुम्हारा पिता

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Posted By: Molly Seth