अस्थमा एक गंभीर बीमारी है और सामान्‍य तौर पर इसका स्‍थायी रूप से इलाज होना मुश्किल होता है। ऐसे में अस्थमा के मरीजों का कुछ बातों का ध्यान रखना बेहद जरूरी होता है। जैसे सबसे पहले अस्थमा के लक्षणों को पहचानना इसके तीन मुख्य लक्षण हैं फेफड़ों में ज्यादा कफ होना श्वास नली और उसके आसपास की पेशियों का संकरा होना और श्वास नली में सूजन। आज वर्ल्‍ड अस्‍थमा डे पर हम आपको बता रहे इस रोग को काबू में रखने में सहायता करने वाले कुछ योगासन और उनकी विधि।

मत्स्यासन: सबसे पहले पद्मासन में बैठकर हाथों से सहारा लेते हुये पीछे कोहनियां टिकाकार लेट जाइए। हथेलियों को कंधे से पीछे टेककर उनसे सहारा लेते हुये ग्रीवा को जितना पीछे मोड़ सकते हैं मोड़िये। पीठ और छाती ऊपर उठी हो और घुटने जमीन पर टिके हुए हों। अब हाथों से पैर के अंगूठे को पकड़ कर कोहनियों को जमीन पर टिकाइये। सांस अन्दर भरें और फिर धीरे धीरे सांस छोड़ते हुए जैसे शुरू किया था ,उसी स्थिति में वापस आये और शवासन मैं लेट जायें।

सर्वांगासन: सबसे पहले अपनी पीठ के बल सीधे लेट जाएं। फिर धीरे धीरे अपने पैरों को 90 डिग्री पर ऊपर उठाएं और सिर को अपने पैरों की तरफ लाने का प्रयास करें। ठोड़ी सीने से सटा कर रखें। 30 सेकंड या उससे अधिक के लिए मुद्रा को बनाए रखने के लिए प्रयास करें और फिर धीमी गति से सामान्य स्थिति में  वापस आ जाएँ। इस प्रक्रिया को 5 बार दोहरायें।
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सिंहासन: सबसे पहले अपने पैरों के पंजों को आपस में मिलाकर उस पर बैठ जाएं।  अब दाएं हाथ को दाएं घुटने पर और बाएं हाथ को बाएं घुटने पर रखें। लंबी सांस लें उसके बाद मुंह से सांस को छोड़ें। अब गर्दन को सामने की ओर झुकाकर ठोड़ी को गले के नीचे लगाएं, अगर आपके गर्दन में दर्द हो ऐसा ना करें। सांस लेने और छोड़ने की क्रिया को दो से पांच बार करें। दोनों आंखों को इस तरह रखें ताकि नजर दोनों भौंहों के बीच में रहे। इसके बाद अपने मुंह को खोलें और जीभ को उसी अवस्था में बाहर की तरफ निकालें। इस आसन में रीढ़ की हड्डी को बिल्कुल सीधा रखना चाहिए।

योगमुद्रा: पद्मासन में बैठें इसके बाद दोनों हाथ पीछे लेकर दाहिने हाथ से बाएं हाथ की कलाई पकड़ें। अब लंबी और गहरी श्वास लें। शरीर को शिथिल करते हुए धड़ को धीरे-धीरे बाईं जांघ पर रखते हुए श्वास छोड़ें। कुछ समय तक इसी अवस्था में रहने के बाद वापस पहले वाली स्थिति में आ जायें।। अब यही क्रिया सामने की ओर झुक कर दोहरायें। इस बार माथा और नाक दोनों जमीन से स्पर्श करनी चाहिए। वापस सामान्य अवस्था में आयें। अब फिर धड़ को दाहिनी जांघ पर रखते हुए यही क्रिया दोहरायें।
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सूर्य नमस्कार: सीधे खड़े होकर अपने दोनो पंजे एक साथ जोड़ कर रखें और पूरा वजन दोनों पैरों पर समान रूप से डालें। अपनी छाती फुलायें और कंधे ढीले रखें। श्वास लेते हुए दोनो हाथ बगल से ऊपर उठायें और श्वास छोड़ते हुए हथेलियों को जोड़ते हुए छाती के सामने प्रणाम मुद्रा में ले आयें। अब श्वास लेते हुए हाथों को ऊपर उठाएँ और पीछे ले जाएँ व बाजुओं की बाइसेप्स को कानों के समीप रखें। इस आसन में पूरे शरीर को एड़ियों से लेकर हाथों की उंगलियों तक सभी अंगों को ऊपर की तरफ खींचने का प्रयास करें। इसके बाद श्वास छोड़ते हुए व रीढ़ की हड्डी सीधी रखते हुए कमर से आगे झुकें। पूरी तरह सांस छोड़ते हुए दोनो हाथों को पंजो के समीप ज़मीन पर रखें। सांस लेते हुए जितना संभव हो दाहिना पैर पीछे ले जाएँ, दाहिने घुटने को ज़मीन पर रख सकते हैं, ऊपर की ओर देखते हुए सांस खींचे और बायें पैर को पीछे ले जायें और पूरा शरीर को सीधी रेखा में रखें। Iधीरे से दोनों घुटने ज़मीन पर लायें और सांस छोडें। अब अपने कूल्हों को पीछे ऊपर की ओर उठायें। पूरे शरीर को आगे की ओर खिसकाते हुए छाती और ठुड्डी को ज़मीन से छुआयें। आगे की ओर सरकते हुए, भुजंगासन की मुद्रा में छाती को उठायें। सांस छोड़ते हुए कूल्हों और रीढ़ की हड्डी के निचले भाग को ऊपर उठायें और छाती को नीचे झुकाकर एक उल्टे वी के आकार में आ जायें। अब सांस लेते हुए दाहिना पैर दोनों हाथों के बीच ले जायें, बायें घुटने को ज़मीन पर रख लें। ऊपर की ओर देखते हुए सांस छोड़ें और बायें पैर को आगे लायें। अब हथेलियों को ज़मीन पर ही रहने दें। सांस लेते हुए रीढ़ की हड्डी को धीरे धीरे ऊपर लायें, हाथों को ऊपर और पीछे की ओर ले जायें, कुल्हों को आगे की तरफ धकेलें। सांस छोड़ते हुए पहले शरीर सीधा करें फिर हाथों को नीचे लाएँ।

कपालभाती: अपनी एड़ी पर बैठकर पेट को ढीला छोड़ दें। तेजी से सांस बाहर निकालें और पेट को भीतर की ओर खींचें। सांस को बाहर निकालने और पेट को धौंकनी की तरह पिचकाने के बीच सामंजस्य बनाये रखें। शुरू में दस बार यह क्रिया करें और धीरे-धीरे 60 तक बढ़ा दें। बीच-बीच में विश्राम ले सकते हैं।
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उज्जयी प्राणयाम: समतल जमीन पर पद्मासन, सुखासन या वक्रासन की स्थिति में बैठ जाएं। अब अपने शरीर और रीढ़ की हड्डी को सीधा रखेंगे। इसके बाद सांस को अंदर की ओर खीचें जब तक हवा फेफड़ों में भर ना जाये। फिर कुछ देर तक वायु को शरीर में रोक कर रखें। अब नाक के दायें छेद को बंद करके, बायें छेद से सांस को बाहर निकालें। वायु को अंदर खींचते और बाहर छोड़ते समय गले को सिकोड़ कर हल्के ख्सर्राटों जैसी आवाज निकालें। इस प्राणायाम को शुरुआत में 2 से 3 मिनट और प्रैक्टिस के बाद 10 मिनट तक किया जा सकता है। इस आसन को कभी भी करें लेकिन अधिक लाभ लेने के लिए इसे सुबह खाली पेट करना सबसे अच्छा होता है।

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Posted By: Molly Seth