ट्रेड यूनियनों की देशव्‍यापी हड़ताल जोरों पर है। ऐसे में देश के श्रम कानूनों में हुए बदलावों के विरोध और उन्‍हें बेहतर वेतन समेत अन्‍य 12 मांगों को लेकर 10 ट्रेड यूनियनों के करीब 15 करोड़ श्रमिकों की एक दिवसीय हड़ताल शुरू हो चुकी है। इस देशव्यापी हड़ताल से बैंकिंग पब्लिक ट्रांसपोर्ट और टेलीकॉम जैसी जरूरी सेवाओं पर जमकर असर पड़ता नजर आ रहा है। हड़ताल की इस दहकती ज्‍वाला के बीच एक सवाल मन में कौंध जाता है कि आखिर कब हुई होगी भारत की पहली हड़ताल और क्‍यों। आइए जानते हैं इसी सवाल का जवाब।


(फोटो कैप्शन - कोलकाता में शुक्रवार को हड़ताल के दौरान सड़कों पर कुछ यूं पसरा है सन्नाटा।)इन्होंने हमेशा किया समर्थन


1874 में बंगाल शशिपदा बनर्जी और मुंबई के एन एम लेखंडे ने श्रमिकों का साथ देने का प्रयास किया। इस क्रम में शशिपदा बनर्जी ने ऐसे श्रमिकों को लेकर एक नई मैग्ज़ीन पब्लिश की। इसका नाम था 'इंडियन वर्कर्स'। वहीं 1898 में लेखंडे में मुंबई में एक मैग्ज़ीन प्रकाशित की। इसका नाम था 'दीनबंधु'। ऐसे श्रमिकों की मदद करने के लिए ब्राह्मो समाज भी शशिपदा बनर्जी के नेतृत्व में आगे आया और 1884 में इन जूट वर्कर्स की मदद के लिए नाइट स्कूल और बैंकों की स्थापना की। इस तरह के काफी प्रयासों के बाद श्रमिक वर्ग के स्तर में काफी हद तक सुधार आया। मसलन, 1881 में पहला फैक्ट्री एक्ट तैयार हुआ। इसके अंतर्गत फैक्ट्रियों में 7 साल या इससे कम उम्र के बच्चों से श्रम करवाने पर प्रतिबंध लगा दिया गया। इसके अलावा सात साल से 12 साल के बीच की उम्र के बच्चों को श्रम करने पर उन्हें 4 दिन की छुट्टी देना भी निर्धारित किया गया।    

(फोटो कैप्शन - भुवनेश्वर में हड़ताल के बावजूद सड़क पर ऑटो चलाते ड्राइवर को डंडे से डरा कर रोकता एक समर्थक।) सबसे बड़ी तत्कालीन हड़ताल इसके बाद तत्कालीन सबसे बड़ी हड़ताल की गई। ये वह समय था, जब बाल गंगाधर तिलक को गिरफ्तार कर लिया गया और उन पर मुकदमा चलाया गया। प्रथम विश्व युद्ध के दिनों गांधीजी के नेतृत्व में राष्ट्रीय स्वतंत्रता आंदोलन का जनाधार हुआ। उन्होंने श्रमिकों एवं किसानों को अपने आंदोलन से जोड़ने की कोशिश की। यह वह समय था जब श्रमिकों को व्यापार संघों में संगठित करने की जरूरत महसूस हुई। 31 अक्टूबर, 1920 को ऑल इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस की स्थापना की गई।(फोटो कैप्शन - अलग-अलग व्यापारिक संगठनों के कार्यकर्ता मुंबई में सरकार के विरोध में सड़क पर प्रदर्शन करते हुए।)शाही नौसेना में विद्रोह पर हड़ताल 1947 में श्रमिकों ने युद्ध के बाद राष्ट्रीय विप्लवों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। 1945 में मुंबई और कलकत्ता के बंदरगाह मजदूरों ने इंडोनशिया भेजे जाने वाली रसद को जहाजों पर लादने से मना कर दिया। 1946 में शाही नौसेना में विद्रोह पर मजदूरों ने हड़तालें कीं। उपनिवेशी शासन के आखिरी साल में भी मजदूरों ने पोस्ट, रेलवे और  अन्य प्रतिष्ठानों में आयोजित हड़तालों में बढ़चढ़ कर भागेदारी निभाई।

Posted By: Ruchi D Sharma