पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक छठ पूजा का संबंध द्रौपदी और कर्ण से संबंधित है। कर्ण ने सबसे पहले छठ पूजा का विधान प्रारंभ किया तो द्रौपदी को इस व्रत से पांडवों का अपना राजपाठ वापस मिला।


कानपुर (इंटरनेट डेस्क)। पौराणिक कथा के अनुसार जब पांडव अपना राजपाठ कौरवों से जुए में हार गये तो द्रौपदी ने छठ मईया का व्रत किया। इस व्रत के प्रभाव से उनका संपूर्ण राजपाठ लौट आया। द्रौपदी ने अपने परिवार के साथ छठ मईया की उपासना की, जिससे उनके जीवन में उत्तम स्वास्थ्य और लम्बी उम्र का आशीर्वाद सूर्य पूजा से मिला। सूर्य देव के आशीर्वाद से सारी मनोकानाएं पूर्ण हुई। माना जाता है कि कुन्ती ने सूर्य की उपासना की जिससे प्रसन्न होकर सूर्य ने कर्ण जैसे माहबली संतान का आशीर्वाद दिया था। कुछ लोग बताते हैं कर्ण ने ही सबसे पहले छठ पूजा का विधान प्रारम्भ किया था। छठ मईया की पूजा में सूर्य की पूजा होती है। और सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। यही अर्घ्य छठ मईया को मिलता है। मईया का आशीर्वाद निरन्तर व्रती को मिलता रहता है।छठ पूजा का मुहूर्त


20 नवम्बर को छठ पर्व की शुरुआत होगी। इसी दिन सूर्योदय सुबह 6.48 बजे पर होगा। सूर्यास्त शाम 5.26 बजे पर होगा। वैसे षष्ठी तिथि के एक दिन पहले यानी 19 नवम्बर रात्री को 9.58 बजे से ही पूजा की शुरुआत हो जाती है और 20 नवम्बर रात्री 9.29 बजे तक पूजा होती रहती है। इसके अगले दिन सूर्य को सुबह अर्घ्य देने का समय सुबह 6.48 बजे का है।छठ की पाैराणिक कथाछठ पूजा कार्तिक मास के षष्ठी के शुक्ल पक्ष को होती है। माना जाता है कि छठ मईया की पूजा से द्रौपदी को आशीर्वाद मिला था। 18 नवम्बर 20 को बुधवार को नहाय-खाय के रूप में मनाया जाता है। इस दिन बहुत पवित्रता का ध्यान रखा जाता है। साफ-सुथरे ढंग से नहाकर सात्विक भोजन किया जाता है। छठ के संकल्प को नहाय-खाय कहा जाता है। 19 नवम्बर दिन गुरुवार 2020 को खरना के रूप में इस पर्व को मनाया जाएगा। इस दिन महिलाएं दिन भर उपवास रहेंगी। शाम को सूर्यास्त के बाद खीर और रोटी खाएंगी। सूर्यास्त के बाद गुड़ और दूध की खीर बनेगी। रोटी बनाकर प्रसाद स्वरूप भगवान सूर्य की पूजा करके उन्हें भोग लगाया जायेगा। खरना के साथ ही व्रतियों का 36 घंटे का उपवास शुरू हो जाता है। खरना के दिन ही भोग के लिए ठेकुआ एवं अन्य चीजें बनाई जाती है। 18 नवम्बर बुधवार को नहाय-खाय होगा। इस दिन व्रती महिलाएं नहाने के बाद नये कपड़े पहनकर सूर्य भगवान की पूजा करने के बाद सात्विक भोजन करती हैं। कुछ जगहों पर इसी दिन कद्दू की सब्जी बनायी जाती है।

किन-किन राज्यों में होती है छठ पूजाबिहार के अलावा पूर्वी उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड, पश्चिम बंगाल और नेपाल में भी यह पर्व मनाया जाता है। इसकी शुरुआत नहाय-खाय से होती है। यह हिन्दुओं का एक ऐसा त्योहार है, जिसमें डूबते सूर्य की पूजा की जाती है। छठ के तीसरे दिन शाम यानी सांझ को अर्घ्य वाले दिन शाम की पूजा की तैयारी की जाती है। इस दिन अर्घ्य 20 नवम्बर, 2020 को पड़ रहा है। नदी-तालाब में खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। पूजा के बाद फिर अगले दिन की पूजा की तैयारी शुरू हो जाती है। चौथे दिन सुबह उगते सूर्य को अर्घ्य के साथ छठ पूजा का समापन हो जाता है। सप्तमी को सुबह सूर्योदय के समय भी सूर्यास्त वाली प्रक्रिया को दोहराया जाता है। विधिवत पूजा कर प्रसाद बांटा जाता है। इस तरह छठ पूजा सम्पन्न हो जाती है। समापन की तिथि 21 नवम्बर को है।छठ व्रत का महात्म

छठ की पूजा मूल रूप से संतान की सर्वांगीण उन्नति की मनोकामना के लिए की जाती है। छठ मईया संतानों को निरोगी, दीर्घायु, सुखी एवं धन संपत्ति से संपन्न बनाती हैं। सबकी रक्षा करती हैं। परिवार में खुशी लाती हैं। संतान के साथ संपूर्ण परिवार की उन्नति होती है। बाधाएं खत्म होती है। छठ मईया के आशीर्वाद से कर्ज, रोग एवं बाधा से मुक्ति मिलती है। संपूर्ण मनोकामनाएं पूर्ण करने वाली मां का आशीर्वाद परिवार पर बना रहता है।- ज्योतिषाचार्य डॉ. त्रिलोकीनाथ

Posted By: Satyendra Kumar Singh