- ब्रिटिश आर्मी के लिए कंबल बनाने को 140 साल पहले हुई थी लाल इमली मिल की स्थापना

- अपनी क्वॉलिटी के दम पर मिल के उत्पादों ने पूरी दुनिया में जमा रखी थी अपनी धाक

KANPUR: देश में ही नहीं दुनिया भर में कानपुर का नाम रोशन करने वाली लालइमली मिल के वुलन प्रोडक्ट्स पहनना एक समय किसी शान से कम नहीं हुआ करता था। शहर घूमने या रिश्तेदार से मिलने आने वाले लोग लालइमली के कंबल, लोई, ब्लेजर और सूट लेंथ आदि जरूर खरीद कर ले जाते है। अपनी क्वॉलिटी के दम पर लालइमली ने पूरी दुनिया में अपनी धाक जमा रखी थी।

सन 1876 में हुई स्थापना

लालइमली मिल की स्थापना सन 1876 में अग्रेंजों ने एक छोटी सी कम्पनी के रूप में की। जिसमें जार्ज ऐलन, वीई कूपर, गैविन एस जोन्स, डा.कोंडोन और बिवैन पेटमैन आदि शामिल थे। पहले यह मिल ब्रिटिश सेना के सिपाहियों के कंबल बनाने का काम करती थी। इसका नाम कॉनपोरे(आज कानपुर) वुलन मिल्स रखा गया था।

इमली लाल होने से नाम बदला

बाद में मिल का नाम लालइमली पड़ा। इसके पीछे अपनी एक कहानी है। लालइमली इम्प्लाइज के मुताबिक लालइमली मिल कैम्पस में इमली के कई पेड़ लगे हुए थे। इनमें अन्य पेड़ों से इतर लाल रंग की इमली होती थी। आज भी कैम्पस में दो और कैम्पस के बाहर एक पेड़ लगा हुआ है। 24 घंटे चलने वाली इस मिल में हजारों लोग काम करते थे।

क्वॉलिटी का दूसरा नाम

ब्लैंकेट की जबरदस्त मांग के बाद लाल इमली में ब्लेजर, 60 नम्बर लोई, पश्मीना शॉल, आरपी शॉल, जीवाईजी व सी 279 टिवट व सूट का कपड़ा आदि उत्पाद तैयार होने लगे। जिन्हें लोगों ने खूब पसन्द किया। देश में नहीं रूस, अमेरिका, चीन आदि देशों में भी ये उत्पाद सप्लाई किए जाने लगे। जिससे लालइमली का विस्तार होता गया। व‌र्स्टड प्लांट, होजरी प्लांट, पॉवर करघे लगाए गए। 1910 में लालइमली में आग लग गई। जिसमें बहुत नुकसान हुआ। लालइमली का पुर्ननिर्माण किया गया। मिल की नई इमारत गोथ शैली में लाल ईंटों से बनाई गई थी। वर्ष 1920 में ब्रिटिश इंडिया कॉर्पोरेशन स्थापित किया गया और लाल इमली को एक निदेशक मंडल द्वारा प्रबंधित लिमिटेड कम्पनी के रूप में पंजीकृत किया गया। 1956 में मुद्रा घोटाले के बाद निदेशक मंडल को भंग कर दिया गया। तब अध्यक्ष हरिदास मूंदड़ा थे। 11 जून 1981 को किए गए राष्ट्रीयकरण में यह मिल भारत सरकार के अधीन हो गई। यही से मिल वर्तमान से इतिहास में जाने लगी।

पॉवर जेनरेशन भी करती थी मिल

लालइमली विश्व की पहली ऐसी मिल है। जहां महत्वपूर्ण मशीनें पहली मंजिल पर हैं और इलेक्ट्रिसिटी पोल व लाइन छत पर लगे हुए हैं। लालइमली में वूलन क्लॉथ्स के अलावा पॉवर जेनरेशन भी किया जाता था। जिससे न केवल मिल की पॉवर डिमांड पूरी होती थी बल्कि आसपास बने अफसरों के बंगले भी इसी बिजली रोशन होते थे। मिल तक कोयला लाने-ले जाने के लिए बकायदा मालगाड़ी ट्रैक था। जिसके निशान अाज भी मौजूद हैं।

शोरूम में लगती भीड़

सर्दियां आते ही लालइमली के ब्लेकेंट, ब्लेजर के कपड़े, सूटलेंथ, मफलर, शॉल, लोई के शोरूम में खरीददारों की लाइन लग जाती थी। शहर के नहीं दूसरी सिटी व स्टेट के लोग लालइमली के प्रोडक्ट खरीदकर ले जाते थे। लालइमली के प्रोडक्ट्स गिफ्ट्स के रूप में भी दिए जाते थे। आज भी गुमटी नम्बर 5, परेड बिजलीघर के सामने, एल्गिन मिल आदि जगहों पर शोरूम हैं। सर्दियों में लाल इमली के बने हुए लोई, कम्बल, शॉल आदि प्रोडेक्ट्स सर्दियों में लोगों को घरों की शोभा बढ़ाते नजर आते हैं।

उत्पादन का रिकॉर्ड

फा.ई.-- प्रोडक्शन

2003-04 14 करोड़

2004-05 27 करोड़

2005-06 50 करोड़

ये प्रोडक्ट रहे मशहूर

-ब्लेंकेट

-वूलेन सूट लेंथ

-ब्लेजर का कपड़ा

-60 नम्बर लोई

-शॉल, मफलर

Posted By: Inextlive