कहते हैं बड़े लोग बड़ी बातें यानि इंसान जितना बड़ा होता है उसके विचार उतने ही अच्‍छे होते हैं। कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो छोटी छोटी साधारण बातों में भी ऊंचे आदर्शों की बातें कह जाते हैं। ऐसे ही एक शख्‍स थे भारतीय राजनीति के नामचीन नेता लाला लाजपत राय। उनकी पुण्‍यतिथि पर आज हम उनकी ऐसी ही प्रेणनादायक सीख के बारे में बता रहे हैं जो उन्‍होंने लाल बहादुर शास्‍त्री को दी थी।

खुद शास्त्री जी ने किया था खुलासा
भारत के दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री अपनी सादगी और सरलता के लिए जाने जाते थे। उनकी किसी प्रकार की अपेक्षा के बिना सेवा करने की प्रवृत्ति के बारे में लोग हमेशा जानना चाहते थे और उसके बारे में सवाल करते रहते थे। एक बार ऐसे ही एक प्रश्न का उत्तर देते हुए शास्त्री जी ने बताया था कि उनके जीवन के इस पहलू को मजबूत करने के लिए उन्हें लाला लाजपत राय से भी एक महत्वपूर्ण शिक्षा मिली थी जिसे उन्होंने जीवन भर याद रखा। जानें कि क्या थी वो सीख।  
ये थी लाला जी की सलाह
शास्त्री जी से पूछा गया था कि वे अपरेजल और अभिनन्दन समारोह से दूर क्यों रहते हैं। इस पर उन्होंने कहा कि ये बातें उनके लिए तबसे महत्वपूर्ण नहीं रहीं जबसे उन्हें लाला लाजपत राय ने एक शिक्षा दी है। लालजी ने एक बार शास्त्री जी से कहा कि ताजमहल पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है। उसके निर्माण में दो तरह के पत्थर इस्तेमाल हुए। एक सफेद खूबसूरत संगमरमर जो सारी दुनिया को दिखाई देते हैं। इन सफेद पत्थरों की सुंदरता की सभी तारीफ करते हैं। दूसरे वो सामान्य पत्थर हैं जो इसकी नींव में लगे हैं जिनकी बदौलत ताजमहल समय और मौसम के हर आघात को सह कर भी इतने बरसों से मजबूती से खड़ा है। इन पत्थरों को कोई प्रशंसा नहीं मिलती। इसके बावजूद वो अपने कर्तव्य को नहीं छोड़ते।
कहानी का सार
लालाजी की इस कहानी का सार ये था कि इंसान को नींव के उसी पत्थर से प्रेणना लेनी चाहिए और बिना लाभ और प्रशंसा के अपना कर्तव्य करना चाहिए। शास्त्री जी ने कहा तभी से वो अभिनंदन समारोह और प्रशंसा से दूर रह कर केवल अपने दायित्व पर ही ध्यान देते हैं। लाला जी की ये सीख शास्त्री जी ने जीवनभर अपने साथ रखी और उस पर ही चलते रहे।   

 

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Posted By: Molly Seth