संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार की दूसरी पारी का आख़िरी संसद सत्र बुधवार से आरंभ हो रहा है जिसके 21 फ़रवरी तक जारी रहने की उम्मीद है.


अगला सत्र 16वीं लोकसभा के लिए होने वाले चुनावों के बाद तब होगा जब नई सरकार बन जाएगी. लोकसभा चुनाव अगले चार महीनों में सम्पन्न हो जाने की उम्मीद है.परम्परा रही है कि किसी भी सरकार के आख़िरी संसद सत्र में उस अवधि के लिए अंतरिम बजट पारित किया जाता है जब तक कि नई सरकार अपना ज़िम्मा नहीं संभाल लेती. लेकिन अन्य विधायी क्रियाकलापों पर कोई रोक नहीं होती है.कांग्रेस नेतृत्व वाली गठबंधन सरकार इस सत्र में लगभग 39 विधेयकों को दोनों सदनों में पारित कराना चाहती है जिनमें भ्रष्टाचार निरोधक संबंधी विधेयक भी शामिल हैं. लेकिन यह एक असंभव कार्य प्रतीत हो रहा है.मुख्य विपक्षी दल भारतीय जनता पार्टी और अन्य विपक्षी दलों का मानना है कि ये विधेयक क़ानून की शक्ल में आने पर चुनावों में कांग्रेस को फ़ायदा पहुंचा सकते हैं.


संसदीय कामकाज पर चर्चा के लिए संसदीय कार्य मंत्री कमलनाथ ने सोमवार को जो सर्वदलीय बैठक बुलाई थी, उससे यह एकदम स्पष्ट हो गया कि विपक्षी दल सरकार को अंतरिम बजट पारित करने के अलावा व्यवस्थापिका संबंधी कोई और कार्य नहीं करने देंगे.

तृणमूल कांग्रेस सहित कम से कम तीन विपक्षी दलों ने तो यहां तक कहा कि मौजूदा सत्र को 13 दिन से भी छोटा कर दिया जाए. तृणमूल कांग्रेस ने सुझाया कि संसद सत्र 17 फ़रवरी से 21 फ़रवरी के दौरान आयोजित किया जाए.वहीं समाजवादी पार्टी और  जनता दल यूनाइटेड का कहना है कि यह अवधि 12 फ़रवरी से 21 फ़रवरी होनी चाहिए.सहयोग का विरोधसर्वदलीय बैठक के बाद कमलनाथ ने सभी राजनीतिक दलों से दलगत राजनीति से ऊपर उठने और भ्रष्टाचार निरोधक छह विधेयकों को पारित कराने के लिए सहयोग मांगा.यह कहा जाता है और ऐसा दावा किया जाता है कि संसदीय कामकाज के पीछे कुछ पाने और कुछ देने की भावना होती है.लेकिन मौजूदा सरकार के बीते पांच वर्षों में सत्रों के दौरान सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच ज़बर्दस्त टकराव ही देखने को मिला है.लोकपाल और लोकायुक्त समेत जो अहम विधेयक बीते पांच वर्षों में पारित हुए हैं, उनमें से अधिकतर के पारित होने की वजह आम जनता की तगड़ी मांग और ज़बर्दस्त दबाव था.खाद्य सुरक्षा विधेयक तो पारित ही इसी वजह से हो सका कि किसी राजनीतिक दल में इसका विरोध करने का साहस नहीं था क्योंकि इससे देश की आबादी के एक बड़े हिस्से में ग़लत संदेश जाता.

इतना ही नहीं, सिलसिलेवार घोटालों की वजह से कामकाज का माहौल इतना ख़राब हो गया कि सरकार और विपक्ष के बीच भरोसा एक तरह से हमेशा नदारद रहा जिसकी बहुत ज़रूरत होती है.संसदीय इतिहास और यूपीए सरकारआंध्र प्रदेश से पृथक  तेलंगाना राज्य बनाने में हुई देरी की वजह से राजनीतिक माहौल और बिगड़ा क्योंकि विपक्षी दलों ने सियासी फ़ायदे की चाहत में इस क़दम की राह में न केवल बाधा पहुंचाई बल्कि आंध्र प्रदेश के कांग्रेसी सांसदों में दरार भी पैदा कर दी.सीपीएम के सांसद सीताराम येचुरी ने तो यहां तक कहा कि सरकार को पहले अंतरिम बजट पर ध्यान देना चाहिए क्योंकि तेलंगाना विधेयक को पेश किए जाने से सदन की कार्यवाही में बाधा पड़ सकती है.मौजूदा सूरत-ए-हाल में नहीं लगता कि इस सत्र में व्यवस्थापिका संबंधी कोई कामकाज हो पाएगा. संवैधानिक ज़रूरत न होती तो अंतरिम बजट तक ख़तरे में पड़ सकता था.यह एक तथ्य है कि मौजूदा सरकार के बीते पांच साल विधायी कार्यों के हिसाब से बर्बाद हुए हैं. भारत के संसदीय इतिहास में यह सरकार विधायी कार्यों के लिहाज से सबसे कम उपयोगी सरकार साबित हो रही है.
आज की तारीख़ तक केवल 165 विधेयकों को संसद की मंज़ूरी मिली है जबकि भारत में पांच साल पूरे करने वाली हर सरकार ने कम से कम 215 विधेयक पारित किए हैं.

Posted By: Subhesh Sharma