-एचआईएमएस के आंकड़ों के अनुसार 12 परसेंट बेबीज की डिलीवरी हो रही टाइम से पहले

-पूरी दुनिया में 60 परसेंट प्रीमेच्योर डिलीवरीज होती हैं

आगरा। करियर बनाने के चक्कर में युवा आजकल लेट शादी कर रहे हैं। लेकिन, इसका लेट शादी होने का असर होने वाले बच्चे पर पड़ सकता है। शादी में देरी से प्रीमेच्योर डिलीवरीज को बढ़ावा मिल रहा है। यूपी में प्रीटर्म डिलीवरीज के आंकड़ों में वृद्धि हुई है। एचआईएमएस यानि हॉस्पीटल इंफोर्मेशन मैनेजमेंट सिस्टम के मुताबिक 2017-2018 से पहले प्रीटर्म डिलीवरीज आठ परसेंट होती थीं, लेकिन 2018-19 में ये बढकर 12 परसेंट तक पहुंच गई है, यानि अब प्रीटर्म डिलीवरीज पहले से चार परसेंट ज्यादा हो रही हैं।

नहीं हो पाते बेबी के ऑर्गन डेवलप

आमतौर पर 37 से 38 सप्ताह की डिलीवरी सबसे सुरक्षित मानी जाती है, लेकिन आजकल 34 सप्ताह में ही डिलीवरी की नौबत आ जाती है। कभी-कभी तो डॉक्टर्स को 28 सप्ताह होने पर ही डिलीवरी करनी पड़ती है। इससे बेबी को खतरा है। इस कंडीशन में बेबी के ऑर्गन्स पूरी तरह से डेवलप नहीं हो पाते हैं। इसका परिणाम ये होता है कि उन्हें एनआईसीयू (नियोनेटल इंटेसिव केयर यूनिट) और एसएनसीयू (सिक न्यू बॉर्न केयर यूनिट) में एडमिट रखना पड़ता है। इससे प्रीमेच्योर बेबीज में जन्म के बाद आम बच्चों के मुकाबले रोगों से लड़ने की क्षमता कम हो जाती है। वे जल्दी ही संक्रमण की जद में आ जाते हैं।

डॉक्टर्स बताते हैं कि आमतौर पर 20 से 32 की एज में बेबी की प्लानिंग कर लेनी चाहिए, वरना प्रीटर्म डिलीवरी जैसे केसेज का खतरा बढ़ने की संभावना बढ़ जाती है। डॉक्टरों का कहना है कि आजकल देरी से शादी करने के कारण भी इन प्रीटर्म डिलीवरीज के मामले सामने आ रहे हैं। एज बढ़ने के स्थिति में मां को डायबिटीज, थॉयरॉयड, बीपी ओबेसिटी जैसी समस्याएं हो जाती हैं। इस कंडीशन में मां के गर्भ में पल रहे बच्चे पर भी इसका असर पड़ता है। बच्चे के विकास में इसका प्रभाव पर पड़ता है।

ये है प्रीटर्म डिलीवरी

समय से पहले बच्चे का जन्म होना प्रीटर्म डिलीवरी कहलाता है। आमतौर पर 37 से 38 सप्ताह को बच्चे की डिलीवरी स्टैंडर्ड टाइम माना जाता है। लेकिन आजकल 24 से 36वें सप्ताह में ही डिलीवरी हो जाती है। प्रीटर्म बर्थ पर ग्लोबल एक्शन रिपोर्ट कहती है कि भारत में तकरीबन 3500,000 डिलीवरीज प्रीटर्म होती हैं। यह कुल जन्म का लगभग 24 प्रतिशत है। जैसा कि आंकडे़ बताते हैं भारत दुनिया की समयपूर्व डिलीवरी में 60 परसेंट योगदान देने वाले 10 देशों की सूची में सबसे ऊपर है। अमेरिका में यह दर 12.5 परसेंट है। पिछले दस साल से दुनिया भर में प्रीटर्म डिलीवरी की दर 9.4 हो गई है, जो लगातार बढ़ रही है। यह एक बड़ी समस्या के रूप में उभर रही है।

ये हैं कारण

प्रीटर्म डिलीवरी की कोई निश्चित वजह नहीं है। लेकिन इसके प्रमुख कारणों में 18 से कम और 40 वर्ष से अधिक आयु में गर्भावस्था, वेजिना में इंफेक्शन, जुड़वां बच्चे, मां एंटीनेटल के लिए न जाए, मां को किसी तरह की बीमारी होना, धूम्रपान, बच्चेदानी की कोई खराबी, प्लेसेंट की कोई खराबी, बुखार, टायफायड, निमोनिया, यूरिन इनफेक्शन आदि कई हो सकते हैं।

प्रीटर्म डिलीवरी तेजी से बढ़ने वाली एक समस्या है। इससे बचने के लिए प्रेगनेंट वुमेंस को प्रेगनेंसी के दौरान रेग्यूलर चैकअप के लिए गायनोकॉलिजिस्ट के पास जाना चाहिए।

-डॉ। नरेंद्र मल्होत्रा, सीनियर गायनोकॉलिजस्ट रेनबो हॉस्पीटल

Posted By: Inextlive