विधि आयोग ने देश में फांसी की सजा में एक बड़ा फेरबदल कराने की दिशा में मांग की है। जिसमें विधि आयोग ने आतंकवाद एवं देशद्रोह को छोड़कर सभी मामलों में फांसी की सजा समाप्त करने की सिफारिश की है। आयोग का मानना है कि फांसी की सजा की जगह पर आजीवन कारावास की सजा दिए जाना बेहतर कदम होगा। हलांकि विधि आयोग की सभी सदस्‍यों की इसमें सहमति नहीं होगी।


गुनाहों का अहसासजानकारी के मुताबिक हाल ही में नौ सदस्यीय विधि आयोग ने केंद्र सरकार से फांसी के मामलों में फेरबदल करने की सिफारिश की है। जिसमें आतंकवाद से जुड़े मामलों को छोड़कर अन्य मामलों में तेजी से मौत की सजा को खत्म होनी चाहिए। विधि आयोग का मानना है कि दोषी को मौत की सजा की जगह पर अगर आजीवन कारावास की सजा दी जाए तो वह भी बेहतर होगी। उसे उसके गुनाहों का अहसास उस सजा के दौरान होगा। इस संबंध में न्यायमूर्ति अजित प्रकाश शाह का कहना है कि आयोग सभी मामलों में फांसी की सजा समाप्त करने का पक्षधर है। वह इसका विरोध नहीं कर रहा है लेकिन आतंकवाद एवं देशद्रोह के मामले में राष्ट्रीय सुरक्षा पर प्रश्नचिह्न खड़ा हो जाने की आशंका के मद्देनजर इसे बरकरार रखने की सिफारिश की गई है। पूरी तरह से बंद
इतना ही नहीं इसके साथ ही आयोग ने पुलिस सुधार, गवाह सुरक्षा और पीड़ितों को मुआवजा देने की योजनाओं के त्वरित क्रियान्वयन के लिए कई सुझाव दिए हैं। इस दौरान उनका यह भी कहना है कि दुनिया में करीब 140 देशों में फांसी की सजा लगभग पूरी तरह से बंद हो गई है। भारत में में भी इस सजा को रेयर केसेज में ही दिए जाने की दिशा में पहल होना जरूरी है। हालांकि इस दौरान विधि आयोग के नौ सदस्यों में तीन सदस्य इस सिफारिश से असहमत हैं। विधि आयोग के एक पूर्णकालिक सदस्य (न्यायमूर्ति उषा मेहरा) तथा दो पदेन सदस्य (विधि सचिव पी के मल्होत्रा और सचिव (विधायिका) डॉ. संजय सिंह) आदि शामिल हैं। ये सदस्यों विधि आयोग के 6 सदस्यों की रिपोर्ट से पूरी तरह से असहमति जता रहे हैं।

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Posted By: Shweta Mishra