नंबर खेल

मोबाइल टावर- 4000

वैध- 1000

अवैध- 3000

प्रति माह लगने वाले टावर- 5

- दो वर्ष से नहीं कि ए गये मोबाइल टावरों के आवेदन

- बिना एनओसी के चल रहे टावरों

lucknow@inext.co.in

LUCKNOW: शहर में खुले आम इमारतों पर अवैध मोबाइल टावरों का धंधा फल-फूल रहा है। एलडीए इसपर कार्रवाई करने की बजाए आंख बंद किए बैठा है। इसकी वजह से यह धंधा दिनोंदिन बढ़ता चला जा रहा है। इससे निकलने वाली विकरण से जहां स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ता है, वहीं आंधी-तूफान में टावरों के गिरने का खतरा भी बना रहता है। उधर जर्जर भवनों पर भी धड़ल्ले से टावर लगाए जा रहे हैं जबकि इसको लगाने से पूर्व एलडीए से अनापत्ति प्रमाण पत्र लेना पड़ता है। सूत्रों के अनुसार 3000 टावर मानकों के विपरीत खड़े हैं, लेकिन अभी तक एलडीए ने इन पर ठोस कार्रवाई नहीं की।

नहीं जमा कर रहें आवेदन

सिटी को डेवलप करना ही लखनऊ विकास प्राधिकरण का मूल काम है, लेकिन वर्तमान समय में प्राधिकरण अपने मूल काम से भटक गया है। प्राधिकरण की अनदेखी की वजह से अवैध टावरों का जाल लगातार बढ़ता जा रहा है। सिटी में 4000 मोबाइल टावर खड़े हैं, इनमें 25 प्रतिशत टावर ही वैध हैं शेष 3000 टावर मानकों के विपरीत लगाए गए हैं। ऊंची-ऊंची इमारतों में खड़े मोबाइल टावर बिना एलडीए की एनओसी के संचालित हो रहे हैं। मानकों के विपरित चल रहे यह अवैध टावर जहां लोगों के स्वास्थ्य पर बुरा असर डाल रहे हैं वहीं जर्जर इमारतों में संचालित होने की वजह से हमेशा इनके गिरने का खतरा बना रहता है। जबकि बिल्डिंग रेगुलेशन एक्ट के तहत इस पर कार्रवाई का प्रावधान हैं। हैरानी की बात यह है कि प्राधिकरण में दो वर्ष से मोबाइल टावर लगाने के आवेदन ही नहीं दिए गए जबकि सिटी में हर माह चार से पांच टावर खड़े हो रहे हैं। हालांकि एलडीए के पूर्व वीसी राजीव अग्रवाल ने अवैध टावरों की रिपोर्ट तलब की थी, लेकिन उनके जाते ही मामला दब गया।

इंजीनियरिंग रिपोर्ट बिना लगे टावर

इमारत पर टावर लगाने वाली कंपनी को एलडीए में टावर लगाने वाले स्थल व बिल्डिंग का मैप जमा करना होता। इसके बाद एलडीए उस जगह का भौतिक सर्वे कर रिपोर्ट तैयार करता है। रिपोर्ट के आधार पर इसे लगाने की अनुमति दी जाती है। एलडीए के अधिशाषी अभियंता राहुल श्रीवास्तव ने बताया कि आवेदन आने के बाद स्ट्रक्चरल इंजीनियरिंग की रिपोर्ट लेनी आवश्यक है।

पैसा देने से कतराती हैं कंपनियां

अधिकतर मोबाइल कंपनियां टावर लगाने के लिए पैसा जमा करने से कतराती हैं। मैप जमा करने के दौरान कंपनी को एक लाख रुपए की धनराशि एलडीए के खाते में जमा करनी होती है। सूत्रों के अनुसार टावर कंपनियां किराए वाली बिल्डिंग को टारगेट बनाती है जिससे वह कानूनी दांव पेंच से बच सकें। प्राप्त जानकारी के अनुसार अक्सर जमा आवेदन रिपोर्ट के दौरान निरस्त हो जाते हैं। ऐसे में कंपनियां अनुमति लेने के झंझट से छुटकारा पाने के लिए आवेदन जमा ही नहीं करतीं।

ये हैं मानक

- इंजीनियरिंग स्ट्रक्चरल रिपोर्ट

मकान में कालम आरआरसी के निर्मित हों

- टावर संबंधित मैप का सत्यापन और पर्यावरण से एनओसी होनी जरूरी

- आरडब्लूए से अनापत्ति रिपोर्ट

व सेफ्टी सार्टिफिकेट होना जरूरी

बिल्डिंग्स पर मोबाइल टावर धड़ल्ले से लग रहे हैं, लेकिन टावर लगाने से संबंधित आवेदन बीते दो वर्षो से मेरे पास नहीं आए। टावर पर कार्रवाई करने का कार्य आरओबी करता है। इसकी जानकारी वही दे सकते हैं।

राहुल श्रीवास्तव, अधिशाषी अभियंता, एलडीए मैप विभाग

टावरों का रेगुलेटरी बॉडी एलडीए है, अगर बिना अनुमति के टावर लगाए गए हैं तो अधिकारियों से दिखवाया जाएगा।

अरुण कु मार, सचिव एलडीए

Posted By: Inextlive