कोराेना वायरस के लिए लागू लाॅकडाउन से गंगा काफी स्वस्थ्य होती जा रही है क्योंकि इन दिनों औद्योगिक कचरा नहीं डंप हो रहा है। रियल टाइम वाॅटर माॅनिटरिंग में गंगा नदी का पानी ज्यादातर माॅनिटरिंग सेंटर्स में नहाने के लिए उपयुक्त पाया गया है। कानपुर समेत कई जगहों पर औद्योगिक इलाकों के करीब गंगा के पानी में काफी सुधार देखा गया है।

नई दिल्ली (पीटीआई)। कोरोना वायरस को रेाकने के लिए लागू लाॅकडाउन की वजह से गंगा नदी के स्वास्थ्य में सुधार हो रहा है। इन दिनों उसका प्रदूषण कम हो रहा है। लाॅकडाउन की वजह से गंगा नदी में औद्योगिक कचरे के डंपिंग में कमी आई है। भारत को 25 मार्च से तीन सप्ताह के लॉकडाउन के तहत रखा गया है। देश की 100 करोड़ से अधिक आबादी कोरोना वायरस के प्रकोप के मद्देनजर घर में रहने का निर्देश दिया है। कोरोना वायरस ने भारत में अब तक 1,965 से अधिक लोगों को अपनी चपेट में ले लिया है। वहीं इसकी वजह से अब तक 50 लोगों की जान जा चुकी है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) के आंकड़ों के मुताबिक गंगा नदी का पानी ज्यादातर माॅनिटरिंग सेंटर्स में नहाने के लिए उपयुक्त पाया गया।

27 बिंदुओं पर पानी की क्वालिटी वाइल्ड लाइफ और फिशेज के लिए सुटेबल

सीपीसीबी के रियल टाइम वाॅटर माॅनिटरिंग डाटा के अनुसार गंगा नदी के विभिन्न बिंदुओं पर रखी गई 36 माॅनिटरिंग यूनिट् से, 27 बिंदुओं के आसपास पानी की क्वालिटी वाइल्ड लाइफ और फिशेज के लिए सुटेबल मिली है। इससे पहले, जब गंगा नदी के पानी की माॅनिटरिंग हुई थी तब उत्तराखंड से उत्तर प्रदेश में कुछ एंट्री प्वांट्स, पश्चिम बंगाल की खाड़ी में जाने तक पूरे रास्ते नदी का पानी नहाने के लिए अयोग्य मिला था। विशेषज्ञों का मानना है कि देश में लाॅकडाउन के बाद से गंगा नदी की वाॅटर क्वाॅलिटी में काफी इंप्रूमेंट हुआ है।

कानपुर में औद्योगिक इलाकों के आसपास गंगा में काफी सुधार देखा गया

पर्यावरणविद मनोज मिश्रा ने कहा कि सीपीसीबी के लिए उद्योग से आने वाले प्रदूषण के स्तर का अध्ययन करने का यह बहुत अच्छा समय है। उन्होंने कहा, जो सुधार दिखाई दे रहा है, उसे उचित आंकड़ों के साथ सत्यापित करने की आवश्यकता है। पर्यावरणविद् विक्रांत तोंगड़ ने कहा कि सुधार विशेष रूप से औद्योगिक समूहों वाले एरिया में देखा गया है जो कचरा डंपिंग करते थे। उन्होंने कानपुर में औद्योगिक इलाकों के आसपास गंगा में काफी सुधार देखा गया है, जहां से भारी औद्योगिक कचरा उत्पन्न होता है और नदियों में फेंक दिया जाता है।

Posted By: Shweta Mishra