-वर्ष 2013 में साढ़े छह सौ एप्लीकेशंस आई थीं, इस वर्ष नाम मात्र 15 कंप्लेंस

देहरादून, सूबे में लोकायुक्त की नियुक्ति कब होगी या नहीं होगी, यह प्रदेश सरकार पर निर्भर है. हालांकि केंद्र में लोकपाल की नियुक्ति के बाद स्टेट में भी लोकायुक्त की नियुक्ति की उम्मीदों को भी बल मिलने की संभावनाएं जताई जा रही हैं. लेकिन, ऐसा लगता है कि आम लोगों का लोकायुक्त की नियुक्ति पर विश्वास टूट चुका है. यही वजह है कि अब प्रदेश लोकायुक्त कार्यालय में कंप्लेन भी नहीं पहुंच रही हैं. शिकायतों पर धीरे-धीरे ब्रेक लगता दिख रहा है. इस वर्ष केवल 15 कंप्लेन ही भूले-भटके प्रदेश लोकायुक्त कार्यालय पहुंच पाई हैं. मुख्यालय के अधिकारी बताते हैं कि यकीनन अब मिलने वाली कंप्लेंस न के बराबर हो चुकी हैं.

वर्षवार कंप्लेंस

वर्ष--कंप्लेंस

2013---645

2014--422

2015--181

2016--97

2017--86

2018--54

2019--15

जारी है नियुक्ति की मांग

9 नवंबर 2000 को उत्तराखंड राज्य गठन के बाद वर्ष 2002 में पहली बार लोकायुक्त का गठन हुआ. पांच साल तक यानि 2008 तक राज्य के पहले लोकायुक्त की जिम्मेदारी जस्टिस एचएसए रजा ने संभाली. उनके रिटायरमेंट होने के बाद उनके स्थान पर नैनीताल हाईकोर्ट के जस्टिस रह चुके जस्टिस एमएम घिल्डियाल को राज्य का दूसरा लोकायुक्त बनाया गया. उनका कार्यकाल वर्ष 2013 तक रहा. लेकिन, तब से लेकर अब तक उत्तराखंड में नए लोकायुक्त की नियुक्ति नहीं हो पाई. दरअसल, वर्ष 2013 में भाजपा सरकार के दौरान तत्कालीन सीएम मेजर जनरल भुवन चंद्र खंडूड़ी ने जब दोबारा सीएम की कुर्सी संभाली तो उन्होंने स्टेट में पावरफुल लोकायुक्त की एक्सरसाइज की. सदन से पारित होने के साथ राष्ट्रपति तक भेजा गया. लेकिन चुनाव हो जाने के बार राज्य में आई कांग्रेस की सरकार ने कुछ संशोधन के साथ आगे बढ़ाने के प्रयास किया, लेकिन सफलता नहीं मिल पाई. ऐसे में तब से लेकर अब तक राज्य में करीब छह साल से नए लोकायुक्त की नियुक्ति नहीं हो पाई है. जबकि पॉलिटिकल इश्यू के साथ राज्य आंदोलनकारी भी करप्शन पर ब्रेक लगाने के लिए लोकायुक्त की नियुक्ति की मांग कर रहे हैं.

छह साल से खाली है कुर्सी

करीब छह साल से लोकायुक्त की नियुक्ति न हो पाने के कारण अब आम लोगों को लोकायुक्त कार्यालय में कोई विश्वास नहीं रह गया है. यही कारण बताया जा रहा है कि वर्ष 2013 में जहां 645 कंप्लेंस लोकायुक्त कार्यालय में थी, अब वर्तमान में उन कंप्लेंस की संख्या महज 15 रह गई है. अंदाजा लगाया जा सकता है कि अब राज्यभर से लोकायुक्त कार्यालय में करप्शन पर कोई भी शिकायतें नहीं पहुंच पा रही हैं.

2004 में हो चुका है नेशनल सेमिनार

पहले लोकायुक्त के दौरान वर्ष 2004 में दून में लोकायुक्त का नेशनल सेमिनार आयोजित हुआ, जिसमें उत्तराखंड लोकायुक्त ने मेजबानी की. इस सेमिनार में देशभर के तमाम लोकायुक्तों के अलावा तत्कालीन राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम, तत्कालीन पीएम डा. मनमोहन सिंह ने भी शिरकत की थी. इसमें कर्नाटक की तर्ज पर दूसरे राज्यों में लोकायुक्तों पर पावर दिए जाने पर जोर दिया गया.

Posted By: Ravi Pal