RANCHI : तमिलनाडु की राजधानी चेन्नई का मछली घर पूरे देश में सबसे फेमस है। इस मछली घर को देखने के लिए पूरे देश से लोग यहां पहुंचते हैं। इसी मछली घर की तरह रांची के ओरमांझी स्थित भगवान बिरसा बायोलॉजिकल पार्क (बिरसा जू) में भी मछली घर बनाने की प्लानिंग साल 2011 में हुई थी। इसका नक्शा और प्रपोजल जू एडमिनिस्ट्रेशन ने बनाया था। इसके लिए बजट भी तैयार हो चुका था, लेकिन तीन साल गुजरने के बाद भी यहां मछली घर बनाने का प्लान फाइलों में ही कैद है। यहां अभी तक मछली घर नहीं बन पाया है।

चेन्नई से आई थी टेक्निकल टीम

बिरसा जू में जब मछली घर बनाने की योजना बनी थी, उस समय बिरसा जू के डायरेक्टर पीके वर्मा थे। उन्होंने मछली घर कैसा बनेगा, इसकी स्टडी के लिए एक टीम को चेन्नई भी भेजा था। इस टीम के साथ बिरसा जू में चेन्नई की टेक्निकल टीम भी आई थी। मछली घर बनाने के लिए जू में जगह बनाने का सर्वे भी किया गया। झारखंड के प्रधान मुख्य वन संरक्षक एके मल्होत्रा को इसकी रिपोर्ट भी सौंपी गई, लेकिन इसके बाद कोई काम आगे नहीं बढ़ पाया।

पांच करोड़ की थी योजना

बिरसा जू में मछली घर बनाने के लिए पांच करोड़ रुपए खर्च किए जाने थे। इसके लिए 60 परसेंट झारखंड गवर्नमेंट को खर्च करना था और 40 परसेंट केंद्रीय वन और पर्यावरण मंत्रालय की मदद से जू अथॉरिटी ऑफ इंडिया की ओर से जू को मिलता। लेकिन, यह योजना प्रपोजल बनकर ही रह गई। न झारखंड गवर्नमेंट ने पैसे एलॉट किए और न ही सेंट्रल गवर्नमेंट से पैसे मिले।

तितलियों को भी नहीं मिला बसेरा

बिरसा जू में रंग-बिरंगी हजारों तितलियों का बसेरा बनाने के लिए बटरफ्लाई पार्क बनाने की तैयारी भी पिछले दो साल से हो रही है। बटरफ्लाई पार्क बनाने के लिए पिछले साल टेंडर तक हो चुका था। बाद में इस टेंडर में गड़बड़ी के कारण इसे कैंसिल करके नया टेंडर जारी करना था। लेकिन, आज तक यह नहीं हो पाया है। जमशेदपुर जू में एक छोटा सा बटरफ्लाई पार्क है। उस पार्क में भी जानकारी लेने के लिए एक टीम जमशेदपुर जू भेजी गई थी। उस टीम ने वहां पर रिसर्च करके जानकारी दी थी, लेकिन उसके बाद सारा कुछ ठंड बस्ते में डाल दिया गया और बटरफ्लाई पार्क बनाने की योजना हवा में ही रह गई।

सैकड़ों प्रजातियों की तितलियों को बसाना था

देश में लगभग 1500 प्रजाति की तितलियां पाई जाती हैं। इनमें झारखंड में भी सैकड़ों प्रजाति की तितलियां पाई जाती हैं। इन तितलियों को बिरसा जू में बटरफ्लाई पार्क में रखा जाना था। झारखंड में आमतौर पर इमीग्रेंट, मॉरमून, ब्लैक पेंसिल, कामन टाइगर, ग्रास ज्वैल, लेमन पेंसी, कामन सैलर और कामन जैम जैसी प्रजाति की तितलियां पाई जाती हैं। इन तितलियों को बिरसा जू में बननेवाले बटरफ्लाई पार्क में रखा जाना था। तितलियां स्वच्छ परिवेश की सूचक होती हैं। तितली मधुमक्खी के बाद दूसरी ऐसी कीट है, जो परागण का कार्य करती है। ग्लोबल वार्मिग के कारण तितलियों जैसी नाजुक प्रजातियों पर खतरा मंडरा रहा है। जूलॉजिस्ट्स का मानना है कि अगर क्लाइमेट में ऐसा ही चेंज आता रहा, तो तितलियां एक दिन विलुप्त हो जाएंगी। तितलियों पर रिसर्च कर रहे एसएस मेमोरियल कॉलेज के टीचर आनंद ठाकुर कहते हैं कि तितलियां फूलों, झाडि़यों, दलदली जमीनों और घने जंगलों में रहना पसंद करती हैं। तितलियों का बड़ी संख्या में बाहर आना खेती के लिहाज से अच्छा संकेत है। तितलियों के लिए बिरसा जू में बटरफ्लाई पार्क की योजना को धरातल पर उतारना चाहिए।

तितलियां नहीं बचीं, तो फूल-पौधे भी नहीं बचेंगे

बटरफ्लाई पॉलिनेशन में मेजर रोल प्ले करती हैं। एक फूल से दूसरे फूल पर यह परागकण को ले जाती हैं। ऐसे में अगर तितलियां समाप्त हो जाएंगी, तो कई प्लांट्स और फ्लावर्स पर खतरा आ जाएगा। ऐसे में तितलियों को बचाना जरूरी हो गया है। रेडिएशन के कारण भी तितलियों पर खतरा उत्पन्न हो गया है। ऐसे में कई प्रजातियों की तितलियां अब बहुत कम दिखती हैं।

ई-टिकटिंग भी नहीं शुरू हो पाई जू में

बिरसा जू में आनेवाले विजिटर्स को लंबी लाइन में लगना न पड़े, इसके लिए ई-टिकटिंग की शुरुआत भी जू में की जानी थी। लेकिन, इस दिशा में भी कोई काम नहीं हो पाया। हालांकि, अब टिकट के लिए मशीन लगाई गई है, जबकि पहले यह मैनुअल मिलत था।

Posted By: Inextlive