हर महीने अमावस्या से पहले आने वाली रात को शिवरात्रि कहा जाता है। यह रात महीने की सबसे अँधेरी रात होती है। उत्तरायण के समय जब धरती के उत्तरी गोलार्ध में सूरज की गति उत्तर की ओर होती है तो एक ख़ास शिवरात्रि को मानव शरीर में उर्जाओं में कुदरती तौर पर एक प्राकृतिक उछाल आता है। इस रात को महाशिवरात्रि कहा जाता है। योग विज्ञान के अनुसार शून्य डिग्री अक्षांश से यानि विषुवत–रेखा इक्वेटर से तैंतीस डिग्री अक्षांश तक शरीर के मेरुदंड को सीधा रखते हुए जो भी साधना की जाती है वह सबसे ज्यादा असरदार होती है।

ये है 'शिव' शब्द की शक्ति

शिव शब्द की ध्वनि और मतलब: शिव शब्द का मतलब है ‘वह जो नहीं है’। सृष्टि वह है – “जो है”। सृष्टि के परे, सृष्टि का स्रोत वह है – “जो नहीं है’। शब्द के अर्थ के अलावा, शब्द की शक्ति, ध्वनि की शक्ति बहुत अहम पहलू है। हम संयोगवश इन ध्वनियों तक नहीं पहुंचे हैं। यह कोई सांस्कृतिक चीज नहीं है, ध्वनि और आकार के बीच के संबंध को जानना एक अस्तित्वगत प्रक्रिया है। हमने पाया कि ‘शि’ ध्वनि, निराकार या रूपरहित यानी जो नहीं है, के सबसे करीब है। शक्ति को संतुलित करने के लिए ‘व’ को जोड़ा गया।

 

अगर कोई सही तैयारी के साथ ‘शि’ शब्द का उच्चारण करता है, तो वह एक उच्चारण से ही अपने भीतर विस्फोट कर सकता है। इस विस्फोट में संतुलन लाने के लिए, इस विस्फोट को नियंत्रित करने के लिए, इस विस्फोट में दक्षता के लिए ‘व’ है। ‘व’ वाम से निकलता है, जिसका मतलब है, किसी खास चीज में दक्षता हासिल करना। इसलिए सही समय पर जरूरी तैयारी के साथ सही ढंग से इस मंत्र के उच्चारण से मानव शरीर के भीतर ऊर्जा का विस्फोट हो सकता है। ‘शि’ की शक्ति को बहुत से तरीकों से समझा गया है। यह शक्ति अस्तित्व की प्रकृति है।

 

 

सृष्टि के उल्लास को प्रस्तुत करने की कोशिश में हमने उसे कई अलग-अलग रूपों में नाम दिया शिव आदि-योगी हैं: आदि-योगी को हम शिव भी कहते हैं। हिमालय के बहुत ऊंचाई वाले इलाकों में एक योगी प्रकट हुए। किसी को पता नहीं था कि वह कहां से आए थे। किसी को उनके अतीत की कोई जानकारी नहीं थी, न ही उन्होंने खुद अपना परिचय देने की जरूरत समझी। लोग बस उनका तेजस्वी रूप और भव्य मौजूदगी को देखते हुए उनके इर्द-गिर्द जमा हो गए। लोगों को समझ नहीं आ रहा था कि वे उनसे क्या उम्मीद रखें। वह बिना कुछ कहे, बिना कुछ बोले, बिना हिले-डुले बस वहां बैठे रहे। दिन, सप्ताह, महीने गुजर गए, वह बस वहां बैठे रहे। फिर आम लोग अपनी दिलचस्पी खो बैठे क्योंकि वे किसी चमत्कार की उम्मीद में थे। केवल सात लोग वहां लगातार बैठे रहे और इन सात लोगों को आज सप्तऋषि – इस धरती के विख्यात ऋषियों – के नाम से जाना जाता है। ये सात ऋषि शिव की शिक्षा के सात आयामों को दुनिया के अलग-अलग कोनों तक ले जाने के साधन बने। उनका कार्य अब भी दुनिया के कई हिस्सों में मौजूद है, भले ही वह विकृत हो गया हो मगर मौजूद है। - सद्गुरु जग्गी वासुदेव, ईशा फाउंडेशन

 

एक योगी, दिव्यदर्शी, सद्गुरु, एक आधुनिक गुरु हैं। सद्गुरु आपको 13फरवरी को ईशा योग केंद्र, कोयंबटूर में योग के मूलदाता - आदियोगी - की उपस्थिति में मनाए जाने वाले महाशिवरात्रि महोत्सव में आमंत्रित करते हैं। यह महोत्सव isha.sadhguru.org/MSR/ पर सीधा प्रसारित किया जाएगा।

Posted By: Chandramohan Mishra