- महाशिवरात्रि को लेकर जिले के प्रसिद्ध मंदिरों पर की गई है विशेष व्यवस्था

GORAKHPUR: महाशिवरात्रि पर माहौल भक्तिमय हो गया है। सोमवार को सुबह से ही भक्त भोलेनाथ का जलाभिषेक व पूजन अर्चन करेंगे। सभी शिव मंदिरों को शिवरात्रि की पूर्व संध्या तक सजाया धजाया जा रहा था। देर रात तक तैयारियां की गई। प्रसिद्ध मंदिर जहां महाशिवरात्रि पर अधिक भीड़ होती है, वहां विशेष व्यवस्था की गई है। आई नेक्स्ट ने जिले के प्रसिद्ध मंदिरों के बारे में जानकारी ली। आप भी जानिए, क्या है इन मंदिरों का इतिहास, कैसे पहुंचे वहां तक।

महादेव झारखंडी शिवमंदिर

जिले में भगवान शिव का यह सबसे प्रसिद्ध मंदिर है। कहा जाता है कि यहां बाबू पुरुषोत्तम दास रहते थे। उनको स्वप्न आया कि इस जगह पर शिव की महिमा है। वे इसकी पूजा करें। पुरुषोत्तम दास अन्य लोगों के साथ मिलकर 1928 में अरघा बनाकर भगवान शिव की पूजा करने लगे। धीरे-धीरे लोगों की मुरादें पूरी होती गई और यहां आने वाले श्रद्धालुओं की संख्या भी बढ़ती चली गई। मंदिर के महंत भगवती दास का कहना है कि यहां महाशिवरात्रि पर जिले ही नहीं, बाहर से भी श्रद्धालु जलाभिषेक के लिए आते हैं।

कैसे पहुंचे: जिला मुख्यालय से मंदिर की दूरी छह किमी है। गोरखपुर शहर के शास्त्री चौक, कचहरी चौराहा, गोलघर व विश्वविद्यालय चौराहा से मंदिर जाने के लिए ऑटो मिलता है। ऑटो आपको आवास विकास कॉलोनी, महादेव झारखंडी के मुख्य गेट तक पहुंचाता है। वहां से डेढ़ किमी। पैदल चलना पड़ता है। यदि आप निजी वाहन से जाते हैं तो सीधे मंदिर तक पहुंचने के लिए सुगम रास्ता है।

मुक्तेश्वरनाथ मंदिर, राजघाट पुराना चुंगी

इस मंदिर के प्रति लोगों की अपार श्रद्धा है। मंदिर के दरवाजे पर कुछ मंत्र गूदे हुए हैं। कहा जाता है कि कभी इस मंदिर के पास से होकर रोहिन और राप्ती नदी बहती थी। पुजारी पं। झिनक उपाध्याय बताते हैं शुरू-शुरू में मंदिर का गर्भ गृह व बाहर घंटा टांगने के लिए छत्र बना था। इस समय जो मंदिर है, उसका निर्माण महाराष्ट्र के ब्राह्माण पं। काशीनाथ ने कराई थी। विशेष बात यह है कि मंदिर के गर्भ गृह की छत एक ही पत्थर की बनी हुई है। मान्यता है कि यहां आने वाले की मुराद भोलेनाथ जरूर पूरी करते हैं।

कैसे पहुंचे : जिला मुख्यालय से मंदिर की दूरी लगभग तीन किमी है। श्रद्धालुओं को मंदिर जाने के लिए निजी या रिजर्व साधन का उपयोग करना होगा। पब्लिक ट्रांसपोर्ट की सुविधा नहीं है। यहां नॉर्मल टैक्सी स्टैंड, बर्फखाना होते हुए या फिर घंटाघर, बसंतपुर चौराहा होते हुए पहुंचा जा सकता है। हार्वर्ट बांध होते हुए भी रास्ता है। तीनों रास्ते राजघाट के पुराना चुंगी पर मिल जाते हैं। वहां से दस फीट चौड़ी गली से 50 मीटर अंदर जाने पर मंदिर है।

मानसरोवर, गोरखनाथ

मानसरोवर मंदिर प्रसिद्ध गोरखनाथ मंदिर से कुछ ही दूरी पर है। मंदिर का कोई लिखित इतिहास तो नहीं है, लेकिन मंदिर के अंदर एक पत्थर है जिस पर हिन्दी और संस्कृत भाषा के अलावा कई अन्य भाषाओं में इसके बारे में लिखा हुआ है। एक पत्थर पर 1310 अंकित है। मंदिर के पुजारी प्रेमनाथ योगी का कहना है कि ब्रह्मालीन मंहत अवैद्यनाथ कहते थे कि महाराज कहते थे कि राजा मानसिंह के सपने में एक बार भगवान शंकर आए। उन्होंने राजा को इस जगह के बारे में बताया और कहा कि यहां शिवलिंग है। सुबह सपने की जानकारी राजगुरु को दी। राजा मानसिंह ने उस स्थान पर खुदाई कराई। उन्होंने ही यहां मंदिर बनवाया था। मंदिर से भी पुराना यहां का पोखरा है। पोखरे में स्नान कर लोग शिव का जलाभिषेक करते हैं।

कैसे जाएं: यह मंदिर जिला मुख्यालय से पांच किमी दूर है। धर्मशाला बाजार, टैक्सी स्टैंड से ऑटो पकड़कर गोरखनाथ ओवरब्रिज के नीचे से होकर जाना होगा। ओवरब्रिज के पास ऑटो से उतरकर सूरजकुंड जाने वाले रास्ते पर 100 मीटर पैदल चलने के बाद यह मंदिर पड़ता है। एक और रास्ता गोरखनाथ मंदिर से रसूलपुर होते हुए भी है।

गौरीशंकर मंदिर, कैंपियरगंज

कैंपियरगंज तहसील के भैसला के राजस्व ग्राम महदेवा कटवा में प्रसिद्ध गौरीशंकर मंदिर है। कहा जाता है कि यहां पहले जंगल हुआ करता था और थारू जनजाति के लोग रहते थे। थारुओं का एक झुंड लकड़ी काट रहा था। टहनी शिवलिंग पर गिरी तो उससे खून निकलने लगा। तभी से यहां पूजा की जाने लगी। दूसरी मान्यता के अनुसार, यहां पहले पीपल का पेड़ था। राहगीर आराम करते थे। मूसाबार निवासी निसंतान बलदेव पांडेय आराम करते हुए पुत्र के बारे में सोच रहे थे। तभी आकाशवाणी हुई कि यहां भगवान शिव का मन्दिर बनवा दो तुम्हे पुत्र की प्राप्ति होगी। लगभग 150 साल पहले बलदेव पांडेय ने यह मंदिर बनवाया।

कैसे जाएं : जिला मुख्यालय से 40 किमी और कैंपियरगंज तहसील मुख्यालय से मंदिर की दूरी सात किमी है। जिला मुख्यालय से जाने के लिए कैंपियरगंज जाना होगा। वहां से करमैनी जाने वाले ऑटो, जीप या बस पकडि़ए। करमैनी रोड पर सात किमी। जाने पर शिवपुर कारखाना है। वहां से 100 मीटर पैदल जाने पर यह मंदिर है।

मोटेश्वरनाथ मंदिर, पिपराइच

मोटेश्वरनाथ मंदिर में महाशिवरात्रि पर दूर-दूर से श्रद्धालु आते हैं। मान्यता है कि करीब सौ साल पहले खझवा के एक व्यक्ति अपने खेत की जुताई करा रहे थे तो शिवलिंग मिला। उसके बाद यहां शिव मंदिर का निर्माण कराया गया। 1885 में बाबा हंसनाथ गिरी ने बड़हलगंज से पैदल कांवरिया जल लेकर यहां जलाभिषेक किया। तभी से महाशिवरात्रि पर विशेष जलाभिषेक करने दूर-दूर से लोग आते हैं।

कैसे जाएं : यह मंदिर जिला मुख्यालय से लगभग 18 किमी दूर है। धर्मशाला ओवरब्रिज के नीचे से पिपराइच के लिए ऑटो मिलता है। ताज पिपरा चौराहे पर उतरकर सरैया वाले रास्ते पर 500 मीटर दूर यह मंदिर है। यहां ताज पिपरा चौराहे से भी ऑटो मिलता है। वहीं पिपराइच रेलवे स्टेशन से मंदिर की दूरी तीन किमी। है।

बालेश्वरनाथ मंदिर, कौड़ीराम : राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या-29 पर कौड़ीराम के बलुआ गांव में बाबा बालेश्वरनाथ मंदिर है। कहा जाता है कि प्राचीन समय में यहां जंगल हुआ करता था। व्यापारी आवागमन के लिए बैलगाड़ी का उपयोग करते थे। एक व्यापारी देर रात बाजार से सामान लेकर लौट रहा था। बैलगाड़ी का पहिया फंस गया तो यहीं सो गया। सपा देखा कि यहां शिवलिंग है। उसने खुदाई कराई तो शिवलिंग निकला। बाद में ग्रामीणों के सहयोग से भगवान यह मंदिर बना।

कैंसे जाएं : जिला मुख्यालय से मंदिर की दूरी 31 किमी। है। मंदिर जाने के लिए ऑटो, बस पकड़कर कौड़ीराम पहुंचना होगा। मुख्य चौराहे से एक किमी। दक्षिण की ओर ऑटो, रिक्शा से मंदिर पहुंचा जा सकता है। मंदिर मेन रोड के किनारे ही है। इससे वाहन से सीधे मंदिर तक पहुंचा जा सकता है।

Posted By: Inextlive