इन दिनों महाराष्‍ट्र सूखे की मार से परेशान है। बीते कुछ सालों में बार बार ऐसे हालात बने हैं और महाराष्‍ट्र को गर्मियों के मौसम में पानी की कमी से जूझना पड़ा है। ऐसे में महाराष्‍ट्र सरकार इस समस्‍या का स्‍थायी समाधन खोजने का प्रयास कर रही ताकि भविष्‍य में ऐसे हालात पैदा ना हों। यही वजह है कि सरकार ने अब राज्‍य में क्‍लाउड सीडिंग करने की योजना बनायी है यानि अब कृत्रिम बादल तैयार किए जायेंगे।


महाराष्ट्र में क्लाउड सीडिंग महाराष्ट्र सरकार इस साल के मॉनसून सीजन में कम बारिश के चलते दोबारा सूखे का खतरा नहीं उठाना चाहती। इसीलिए सरकार ने क्लाउड सीडिंग यानि बादलों का बीजारोपण करने की योजना तैयार की है। सरकार का प्रयास है कि ये कार्यक्रम मानसून की शुरूआत से ही प्रारंभ हो जाए ताकि भविष्य में पानी की कमी न होने पाए और मराठवाड़ा जैसे क्षेत्रों में पीने का पानी लोगों को र्प्याप्त मात्रा में उपलब्ध हो सके। हालाकि यह प्रयोग पिछले साल अगस्त से नवंबर के दौरान भी किया गया था, पर पता चला है कि उस समय ये बहुत ज्यादा कामयाब नहीं हो सका था। देरी और नमी की कमी थी विफल होने के कारण


वैसे सरकार के सूत्रों से मिल रही खबर की माने तो पिछली बार हुए प्रयास के विफल होने का मुख्य कारण थ्ज्ञा कि तब योजना लागू करने में देर हो गयी थी और बादलों में आर्द्रता यानि नमी लग्भग खत्म हो गयी इसे ध्यान रखते हुए राज्य सरकार का प्रयास है कि वे इस साल मॉनसून की शुरुआत के साथ ही क्लाउड सीडिंग का कार्य शुरू कर देंगे। क्या है और कैसे होती है क्लाउड सीडिंग

दरसल क्लाउड सीडिंग यानि बादलों को बोना एक ऐसी तकनीक है जिसकी मदद से कृत्रिम वर्षा के लिए बादल बनाये जाते हैं। इन बादलों को बनाने के लिए कृत्रिम नाभिकों या केंद्रकों को तैयार किया जाता है। जिनके ऊपर छोटे छोटे हिमकण एकत्रित किए जाते हैं। जिससे धीरे धीरे उनके आकार में वृद्धि होती जाती है और जल की बूंदों निर्माण होता है और उसके बाद बारिश शुरू हो जाती है। हालाकि क्लाउड सीडिंग के बारे में पहली बार 19वीं शताब्दी के आखिर में पता चला था इसका वास्तविक प्रयोग 20वीं शताब्दी के चौथे दशक में सफलतापूर्वक किया गया था।

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Posted By: Molly Seth