Bareilly: मां बनना हर औरत का सपना होता है. मातृत्व की अनुभूति हर मां को खुशियों के एक ऐसे ख्वाबगाह की ओर ले जाती है जहां हर पल हंसता खेलता बच्चा होता है. पर आज हम आपको एक ऐसी मां से मिलवाने जा रहे हैं जिसकी कहानी सबसे जुदा है. उसके पास बच्चे हैं. हंसता खेलता परिवार है. अधिक बच्चे न हो इसके लिए उसने फैमिली प्लानिंग भी करवा ली. बावजूद इसके वो मां बन गई है. विडंबना की बात यह है कि इस कड़वी हकीकत से सामना उस वक्त हुआ है जब हेल्थ डिपार्टमेंट जोर-शोर से जनसंख्या स्थिरता पखवाड़ा चला रहा है.

मां बनना तो नहीं चाहती थी फिर भी प्रेगनेंट हो गई हूं
यह कहानी है बरेली के चकमहमूद निवासी निशा की। निशा की कहानी से डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटल में ट्रीटमेंट की सच्चाई और डॉक्टर्स की संजीदगी को एक बार फिर से उजागर कर दिया है। निशा का भरा पूरा परिवार है। परिवार में पांच बच्चे हैं। अब और बच्चे नहीं हों इसके लिए निशा ने 6 मंथ पहले महिला डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटल से नसबंदी करवा ली। बावजूद इसके निशा प्रेगनेंट हो गई है। हद तो तब है कि जब वह इसकी शिकायत लेकर हॉस्पिटल एडमिनिस्ट्रेशन के पास पहुंची तो पिछले तीन दिनों से उसे इधर-उधर भेजा जा रहा है। जिम्मेदार अधिकारी कुछ भी कहने से कतरा रहे हैं। ऐसा तब है जब पूरे प्रदेश में इन दिनों हेल्थ डिपार्टमेंट का जनसंख्या नियंत्रण के मेगा कैंपेनिंग चल रही है।
 
बोली सबूत क्या है
निशा ने 13 जनवरी 2012 को डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटल से अपनी नसबंदी करवाई थी। निशा का ऑपरेशन डॉ। पीएल शम्मी के अंडर हुआ था। निशा का आरोप है कि नसबंदी होने के बावूजद पीरियड रुक गए। पीरियड रुकते ही उसने दोबारा महिला डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटल से संपर्क किया। निशा ने आरोप लगाए कि महिला हॉस्पिटल की डॉक्टर्स ने उसकी प्रॉब्लम को कंसीडर ही नहीं किया। उन्होंने पूछा जो कह रही हो उसका सबूत क्या है?
जब test आया poitive 
निशा ने ठान रखी है कि उसे न्याय के लिए लड़ाई लडऩी है। इसके लिए निशा ने निशा ने डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटल की ही पैथालॉजी से अपना प्रेगनेंसी टेस्ट करवाया। पैथालॉजी रिपोर्ट में भी यह साफ हो गया कि वह प्रेगनेंट है। निशा दोबारा अपनी प्रेगनेंसी रिपोर्ट लेकर डॉ। शम्मी से मिली। निशा ने आरोप लगाए कि डॉ। शम्मी ने उसे अबॉर्शन कराने की सलाह दे डाली। जब निशा ने डॉ। शम्मी की बात का विरोध किया तो उसके साथ अभद्रता की गई और उसे कमरे से बाहर निकाल दिया। निशा ने अपने साथ हुई घटना की जानकारी सीएमएस ऑफिस में देने की कोशिश की, लेकिन वहां कोई अधिकारी नहीं मिल सका।
सभी आरोप बेबुनियाद हैं
वहीं इस संबंध में जब महिला डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटल की सीनियर गायनकोलॉजिस्ट डॉ। प्रेमलता शम्मी से बात की गई तो उन्होंने साफ तौर से इनकार किया और कहा कि निशा नाम की कोई पेशेंट उनसे नहीं मिली है। डॉ। शम्मी ने कहा कि निशा द्वारा लगाए गए सभी आरोप बेबुनियाद हैं। उन्होंने कहा कि निशा उनके पास आई ही नहीं है। अगर वो आती है तो उसका प्रॉपर तरीके से ट्रीटमेंट किया जाएगा। सौ केस में से एक केस में ऐसी संभावना होती है कि नसबंदी के बाद भी महिला प्रेगनेंट हो जाए। अगर महिला बच्चे को कंसीव करती है तो उसे गवर्नमेंट रुल्स के अनुसार मुआवजा देने का प्रावधान भी है। अगर कोई अबॉर्शन कराना चाहता है तो उसके रुल्स भी हैं। डॉ। शम्मी ने यह भी बताया कि महीने में एक-दो केस ऐसे आते रहते हैं।
Operation के बदले लिया पैसा
निशा ने आरोप लगाए हैं कि नसबंदी के लिए भी उससे 500 रुपए की डिमांड की गई थी। यह रकम चुकाने के बाद ही उसका ऑपरेशन हो सका था। डॉ। शम्मी से जब इस संबंध में बातचीत की गई तो उन्होंने स्वीकार किया कि ऐसा संभव है कि किसी ब्रोकर ने उससे पैसे ऐंठ लिए हों। अक्सर ऐसा सुनने में आता है कि दूर दराज की महिलाओं को ब्रोकर बहला फुसला कर इलाज के नाम पर पैसे ऐंठ लेता है. 
यह हकीकत आपको हैरान कर देगी
लगातार बढ़ रही जनसंख्या से राहत दिलाने के लिए पूरे देश में कई योजनाएं चल रही हैं। इसी क्रम में लोगों को अवेयर कराने के उद्देश्य से स्टेट के सभी डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटल में इन दिनों जनसंख्या स्थिरता पखवाड़ा मनाया जा रहा है। लोगों को अवेयर करने के लिए एग्जीबिशन, रैलियों और समारोह का आयोजन किया जा रहा है। इनमें अधिकारी लंबे-लंबे भाषण देकर अपनी जिम्मेदारी निभाने के खोखले दांवे भी कर रहे हैं। मगर हकीकत तो निशा जैसी महिलाएं भुगत रही हैं। जहां नसबंदी के बाद भी वो प्रेगनेंसी को झेलने पर विवश हैं। इससे भी खराब स्थिति तब होती है जब नसबंदी के दौरान महिलाओं की मौत हो जाती है।

एक सच्चाई यह भी है

निशा का केस तो एक नजीर है। नसबंदी का दूसरा पहलू और भी भयावह है। डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटल में नसबंदी करवाना कितना असुरक्षित है इसकी गवाही सीएमएस ऑफिस के आंकड़े देते हैं। डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटल में पिछले तीन सालों में 636 महिलाएं असमय मौत का शिकार हो चुकी हैं। इसमें सर्वाधिक मौत 2009 के दौरान हुई हैं। सीएमएस ऑफिस के रिकॉर्ड के अनुसार 2009 में 246 महिलाओं की मौत नसबंदी के दौरान हुई है। ये तो वे आंकड़े हैं जो फाइलों में दर्ज हैं। ना जाने कितनी महिलाओं ने हॉस्पिटल के बाहर दम तोड़ दिया होगा।
डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटल में नसबंदी के दौरान मौत
वर्ष        मौतें

2009    246
2010    204
2011    86
(यह ऑफिशियल रिकॉर्ड है)


क्या नसबंदी इतनी खतरनाक है?

नसबंदी से जुड़ी तमाम भ्रांतियों और उसके कारण होने वाले खतरों पर आई-नेक्स्ट ने शहर की रिनाउंड गायनकोलॉजिस्ट डॉ। भारती सरन से बात की।
-नसंबदी के दौरान क्यों होती है मौत?
-नसबंदी के दौरान होने वाली मौतों का कारण कभी भी नसबंदी नहीं होती है। लेप्रोस्कोपी से पहले एनेस्थिसिया दिया जाता है। इस प्रोसेस में पेट में गैस भरते हैं। यह गैस कभी-कभी एम्बूलाइज हो जाती है। मौत का एक्चुअल रीजन यही होता है। नसबंदी से पहले यह जरूरी होता है कि महिला की प्रॉपर तरीके से जांच करवाई जाए कि उसका शरीर नसबंदी करवाने के लिए पूरी तरह तैयार है कि नहीं।
-क्यों होता है खतरा?
-नसबंदी बिलकुल खतरनाक नहीं होती है। पेशेंट्स के प्री एनेस्थेटिक टेस्ट नहीं किए जाते हैं। प्री एनेस्थेटिक टेस्ट नहीं होने के कारण नसबंदी खतरनाक साबित हो सकती है।
-केस के फेल्योरनेस के क्या कारण हैं?
-नसबंदी करते समय दूरबीन विधि से एक रिंग डाली जाती है, जो कभी कभार स्लिप हो सकती है। अगर ये रिंग स्लिप हो जाए तो नसबंदी फेल्योर हो जाती है और महिला नसबंदी के बावजूद प्रेगनेंट हो जाती है।
-महिलाओं को क्या सावधानी बरतनी चाहिए?
-वैसे तो गवर्नमेंट कई अवेयरनेस प्रोग्राम चलाती रहती है, लेकिन जब तक महिलाएं खुद अवेयर नहीं होंगी ऐसे खतरों को कम नहीं किया जा सकता है। अगर कोई महिला नसबंदी करवाती है तो उसे प्री टेस्ट जरूर करवाना चाहिए, ताकि उसे पता चल सके कि उसका शरीर इसके लिए तैयार है कि नहीं।
फेल्योरनेस के बाद क्या प्रावधान है?
महिला हॉस्पिटल की सीनियर गायनकोलॉजिस्ट डॉ। शम्मी ने बताया कि नसबंदी की फेल्योरनेस आम बात है। हालांकि ऐसे केसेज कम आते हैं। अगर किसी महिला की नसबंदी फेल हो जाती है और वो दोबारा प्रेगनेंट हो जाती है तो उसे प्रावधानों के अनुसार मुआवजा दिया जाता है। अगर वो महिला बच्चे को नहीं रखना चाहती है तो नियमानुसार उसका अबॉर्शन भी किया जाता है।


Report by: Abhishek Mishra

Posted By: Inextlive