हॉकी के जादूगर कहे जाने वाले मेजर ध्यानचंद का आज 114वां बर्थडे है। ध्यानचंद ने हॉकी मैदान में कई बड़े-बड़े कारनामे किए मगर उनसे जुड़े कई किस्से हैं जो आज भी याद किए जाते हैं। पढ़ें पूरी खबर...


कानपुर। भारत को तीन बार ओलंपिक मेडल दिलाने वाले महान हॉकी प्लेयर ध्यानचंद का जन्म 29 अगस्त 1905 को इलाहाबाद में हुआ था। उनकी बर्थ एनिवर्सरी पर भारत में हर साल नेशनल स्पोर्ट्स डे मनाया जाता है। कहते हैं वो खिलाड़ी उतना ही महान होता है जिसके खूब किस्से होते हैं। ध्यानचंद से जुड़ी तमाम रोचक कहानियां है। आइए आज आपको उन्हीं पांच खास कहानियों से रूबरु करवाते हैं।चांद की रोशनी में खेलने पर मिला ध्यानचंद नाम


हाॅकी के जादूगर कहे जाने वाले मेजर ध्यानचंद का असली नाम ध्यानसिंह था। इनकी ध्यानसिंह से ध्यानचंद बनने की कहानी काफी रोचक है। बात 1922 की है, जब 16 साल के ध्यानसिंह ने ब्रिटिश सेना ज्वाॅइन की। तब ध्यानसिंह एक अदने से सिपाही थे जोकि साथी जवानों के साथ सुबह-सुबह परेड पर जाते थे। उस वक्त आर्मी के जवानों का हाॅकी और फुटबाॅल जैसे खेलों की ओर रुझान बढ़ रहा था। ध्यानसिंह भी साथी जवानों को हाॅकी खेलते देखते थे हालांकि ध्यानसिंह को हाॅकी खेलने में कोई दिलचस्पी नहीं थी। इस बात का जिक्र किताब 'द लाइफ एंड टाइम्स ऑफ मेजर ध्यानचंद' में भी किया गया है जिसकी लेखक रचना भोला यामिनी हैं। इस किताब में बताया गया कि एक बार ध्यानसिंह ऐसे ही हाॅकी लेकर बाॅल को मार रहे थे, वहीं पास खड़े सूबेदार बाले तिवारी यह सब देख रहे थे। सूबेदार बाले ने ध्यानसिंह को बताया कि हाॅकी कोई बच्चों का खेल नहीं, इसके बाद उन्होंने ध्यानसिंह को हाॅकी की टेक्निक बताई। धीरे-धीरे समय गुजरता गया, ध्यानसिंह हाॅकी की कड़ी ट्रेनिंग लेते रहे। वह दिन-रात की परवाह किए बगैर, बस हाथ में हाॅकी स्टिक लेकर मैदान में जुट जाते थे। यही नहीं चांद की रोशनी में भी ध्यानसिंह हाॅकी की प्रैक्टिस करना नहीं भूलते थे। ध्यानसिंह के इस खेल के प्रति जुझारूपन देखकर एक दिन बाले तिवारी ने हाॅकी के जादूगर को अपने पास बुलाया और कहा आज से हम तुम्हें ध्यानचंद बुलाएंगे क्योंकि ध्यान तुम्हारा नाम है और तुम चांद की तरह चमकने वाले हो, बस फिर क्या ध्यानचंद का नाम हाॅकी जगत में स्वर्ण अक्षरों से लिख गया।जूते उतारकर नंगे पैर खेलने लगे मैच

बर्लिन में आयोजित ओलंपिक के खिताबी मैच में इंडिया का सामना जर्मनी से था। मैच शुरू होते ही टीम ने गोल दागने का सिलसिला भी शुरू कर दिया। हॉफ टाइम तक इंडियन टीम ने मेजबान के पाले में 2 गोल ठोक दिये। इसमें सबसे दिलचस्प बात यह है कि मैच से पहले वाली रात को बर्लिन में जमकर बारिश हुई थी, जिसकी वजह से मैदान गीला हो गया था। दूसरे दिन भारतीय टीम जब मैदान पर खेलने उतरी तो टीम के पास स्पाइक वाले जूतों की सुविधा नहीं थी और सपाट तलवे वाले रबर के जूते लगातार फिसल रहे थे। उस समय टीम के कैप्टन ने इस समस्या का समाधान निकालते हुये हॉफ टाइम के बाद जूते उतारकर नंगे पैर खेलना शुरू कर दिया। इसके बाद इंडियन टीम ने जल्द ही लीड मजबूत कर ली और जीत की तरफ कदम बढ़ा दिये। जर्मनी को हारता देख हिटलर मैदान छोड़ कर चला गया। इसके बाद ध्यानचंद ने अपने आकर्षक खेल की बदौलत जर्मनी को 8-1 से रौंदकर गोल्ड मेडल पर कब्जा किया।हिटलर को किया भयभीत

मैच के अगले दिन हिटलर ने इंडियन कैप्टन ध्यानचंद को मिलने के बुलाया। हालांकि ध्यानचंद ने हिटलर की क्रूरता के कई किस्से सुन रखे थे। इसलिये वो हिटलर का इन्वीटेशन लेटर देखकर चिंतित हो गये कि आखिर तानाशाह ने उन्हें क्यों बुलाया है। इसके बाद ध्यानचंद डरते-डरते हिटलर से मिलने पहुंच गये। इस मीटिंग के दौरान लंच करते हुये हिटलर ने उनसे पूछा कि वे इंडिया में क्या करते हैं। तब ध्यानचंद ने बताया कि वे भारतीय सेना में मेजर हैं। इस बात को सुनकर हिटलर बहुत खुश हुये और उन्होंने ध्यानचंद को जर्मनी सेना में जुड़ने का प्रस्ताव रखा। हालांकि अचानक मिले इस तरह के प्रस्ताव से ध्यानचंद हतप्रभ रह गये। इसके बाद उन्होंने हिटलर के इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया। गौरतलब है कि हिटलर ने यह प्रस्ताव ध्यानचंद के खेल से भयभीत होकर दिया था।जितने गोल मारे ध्यानचंद ने, उतने साॅन्ग गाने पड़े केएल सहगल को
हाॅकी प्लेयर ध्यानचंद और बाॅलीवुड सिंगर केएल सहगल से जुड़ा एक रोचक किस्सा है। मशहूर फिल्म एक्टर पृथ्वीराज कपूर हाॅकी के जादूगर के जबरदस्त फैन थे। एक दिन पृथ्वीराज गायक सहगल को लेकर मुंबई में एक मैच देखने गए। इस मैच में ध्यानचंद और उनके भाई रूप सिंह भी खेल रहे थे। मैच शुरु हुए जब ज्यादा वक्त बीत गया तो सहगल ने कहा कि, ये कैसे नामी खिलाड़ी हैं अब तक एक गोल नहीं कर पाए। यह बात रूप सिंह को पता चली तो उन्होंने सहगल से शर्त लगाई कि हम जितने गोल करेंगे उतने गाने क्या आप गाएंगे, सहगल ने हां कह दिया। बस फिर क्या ध्यानचंद और रूप सिंह ने मिलकर मैच में 12 गोल दागे। लेखक निकेत भूषण की किताब 'ध्यानचंद द लीजेंड लिव्स ऑन' में इस घटना का जिक्र है। मैच खत्म होने के बाद सहगल अपने वादे से मुकर गए और बिना गाना गए घर चले गए, इस बात से ध्यानचंद काफी नाराज हुए। मगर अगले दिन केएल सहगल खुद भारतीय हाॅकी टीम के पास आए और वहां उन्होंने 14 गाने गए।लाइन में लगकर खरीदी थी टिकटआज भले ही ध्यानचंद को काफी सम्मान दिया जा रहा, मगर एक वक्त ऐसा भी आया जब हॉकी का यह जादूगर एक मैच देखने के लिए खुद लाइन में लगा रहा। ओलंपिक गोल्ड मेडलिस्ट और पूर्व भारतीय हॉकी टीम के कप्तान गुरबख्श सिंह ने अपनी ऑटोबॉयोग्राफी 'मॉय गोल्डन डेज' में इस घटना का जिक्र किया है। गुरबख्श लिखते हैं कि, यह मामला 1962 का है तब ध्यानचंद नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ स्पोर्ट्स (पटियाला) के कोच हुआ करते थे। उनकी टीम एक टूर्नामेंट खेलने अहमदाबाद आई थी उनके साथ ध्यानचंद भी थे। एक मैच के दौरान ध्यानचंद जब स्टेडियम जा रहे थे तो एक पुलिसवाले ने उन्हें गेट पर रोक दिया था। तब इंट्री पाने के लिए ध्यानचंद को लाइन में लगकर टिकट खरीदना पड़ा। गुरबख्श बताते हैं यह काफी हैरान करने वाला था मगर 60-70 के दशक में खेल में इतनी राजनीति होने लगी थी कि उन्होंने ध्यानचंद जैसे खिलाड़ी को भी नहीं बख्शा।

Posted By: Abhishek Kumar Tiwari