मालदीव के पूर्व राष्ट्रपति ने मांगी मदद, भारत पहले भी मालदीव में कर चुका है सैन्य कार्रवाई 'ऑपरेशन कैक्टस'
1988 में मालदीव की राजधानी पर लिट्टे आतंकियों का कब्जाश्रीलंका के एलटीटीई यानी लिट्टे के 200 आतंकियों ने मालदीव पर हमला करके राजधानी माले पर कब्जा कर लिया। वहां के एक व्यापारी अब्दुल्ला लुथूफी ने राष्ट्रपति अब्दुल गय्यूम के खिलाफ लिट्टे आतंकियों के साथ मिलकर तख्तापलट का षड्यंत्र रचा था। 1988 में लिट्टे के आतंकी शहर में जगह-जगह गोलीबारी करते हुए अपना कब्जा जमा चुके थे। किसी तरह राष्ट्रपति ने नेशनल सिक्योरिटी सर्विस के घेरे में पनाह ले रखी थी। राष्ट्रपति ने यूएस, ब्रिटेन, भारत, श्रीलंका, पाकिस्तान समेत कई पश्चिमी देशों से गोहार भी लगाई लेकिन पश्चिमी देशों ने कोई दखल न देने का फैसला किया। श्रीलंका ने अपनी सेना को स्टैंडबाई मोड पर रखा जबकि भारत ने तुरंत प्रतिक्रिया दी और मालदीव में अपनी सेना भेज दी।
भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने तत्परता दिखाते हुए तुरंत भारतीय सेना को विदेशी धरती पर जाकर ऑपरेशन की इजाजत दे दी। 3 नवंबर, 1988 को भारतीय सेना के पैराशूट रेजीमेंट के 300 जवान मालदीव पहुंचे और सबसे पहले हुलहुले एयरपोर्ट को अपने कब्जे में लिया। इसके बाद धीरे-धीरे आगे बढ़ते हुए उन्होंने लिट्टे आतंकियों से लोहा लेते हुए राष्ट्रपति अब्दुल गय्यूम को सुरक्षित निकाला। इसके बाद भारतीय सेना की और टुकडि़यां कोच्ची से मालदीव रवाना हुईं और आतंकियों का तख्तापलट को नाकाम कर दिया। भारतीय सेना का विदेशी धरती पर यह पहला ऑपरेशन था। भारतीय सेना इस सैन्य अभियान को बड़ी ही कुशलता से बिना किसी नुकसान के अंजाम तक पहुंचाया। भारतीय सैन्य कार्रवाई की पूरी दुनिया में सराहना की गई।