आप ने काशी मथुरा उज्‍जैन हरद्वार जैसी देवनगरियों के बारे में तो सुना होगा। आप वहां गए भी होंगे क्‍योंकि भारतीय संस्‍कृति में इन सभी स्‍थानों का बहुत महत्‍व है। लेकिन क्या आप भारत की गुप्त काशी के बारे में जानते हैं। हम आप को बताएंगे भारत की गुप्‍त काशी के बारे में। झारखंड के दुमका ज़िले में शिकारीपाड़ा के पास बसे एक छोटे से गांव मलूटी में आप जिधर नज़र दौड़ाएंगे आपको हर ओर सिर्फ प्राचीन मंदिर ही मंदिर नज़र आएंगे। मंदिरों की अधिक संख्या होने के कारण इस क्षेत्र को गुप्त काशी कहा जाता है। अनेकों मंदिर होने की वजह से इस गांव का नाम मंदिरों का गांव हो गया है।


बिहार पुरातत्व विभाग ने शुरु किया संरक्षण कार्यमलूटी गांव में इतने सारे मंदिर होने के पीछे एक रोचक कहानी है। यहां के राजा महल बनाने की बजाए मंदिर बनाना पसंद करते थे और राजाओं में अच्छे से अच्छा मंदिर बनाने की होड़-सी लग गई। परिणाम स्वरूप यहां हर जगह खूबसूरत मंदिर ही मंदिर बन गए और यह गांव मंदिर के गांव के रूप में जाना जाने लगा। यहां 74 मंदिर जीर्णावस्था में है। उनमें से 42 मंदिरों के संरक्षण का कार्य पूरा हो चुका है। बिहार के पुरातत्व विभाग ने 1984 में पूरे गांव को पुरातात्विक प्रांगण के रूप में विकसित करने की योजना के तहत मंदिरों का संरक्षण कार्य शुरू किया था। आज पूरा गांव पर्यटन स्थल के रूप में विकसित हो रहा है।। लेकिन मूलभूत सुविधाओं के अभाव के कारण पर्यटक यहां रात में नहीं ठहरते।


प्राचीन स्थापत्य कला के दुर्लभ प्रमाण हैं ये मंदिर

मंदिरों की पाषाण मूर्तियां और फलक प्राचीन स्थापत्य कला के अनोखे और दुर्लभ प्रमाण हैं। यहां स्थित देवी मौलिक्षा मंदिर तो अभी भी एक जीवंत शक्तिपीठ माना जाता है। मलूटी का पश्चिम बंगाल की प्रसिद्ध तांत्रिक शक्तिपीठ तारापीठ से सीधा सम्बंध है। कहा जाता है कि वामाखेपा की जीवन लीला मां तारा से जुड़ी थी और उनकी समाधि तारापीठ में है। आज भी वामाखेपा का त्रिशूल मलूटी में स्थापित है। यहां के मंदिरों में रामायण के विभिन्न दृश्य उकेरे हुए हैं। कृष्ण लीलाएं भी चित्रित हैं। एक प्रतिमा ऐसी भी है जिसमें राम-कृष्ण-शंकर और विष्णु को एकाकार दिखाने का अनोखा  प्रयास किया गया है।ये है राजा बाज बसंत राजवंश की कहानीयह गांव सबसे पहले ननकार राजवंश के समय में प्रकाश में आया था। उसके बाद गौर के सुल्तान अलाउद्दीन हसन शाह 1495–1525 ने इस गांव को बाज बसंत रॉय को इनाम में दे दिया था। राजा बाज बसंत शुरुआत में एक अनाथ किसान थे। उनके नाम के आगे बाज शब्द कैसे लगा इसके पीछे एक अनोखी कहानी है। एक बार सुल्तान अलाउद्दीन की बेगम का पालतू पक्षी बाज उड़ गया। बाज को उड़ता देख गरीब किसान बसंत ने उसे पकड़कर रानी को वापस लौटा दिया। बसंत के इस काम से खुश होकर सुल्तान ने उन्हें मलूटी गांव इनाम में दे दिया था। जिसके बाद बसंत किसान से राजा बाज बसंत के नाम से पहचाने जाने लगे।

Posted By: Prabha Punj Mishra